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कुछ तो लोग कहेंगे

दूसरों के बारे में टीका-टिप्पणी करना सहज मानवीय स्वभाव है। कई बार हमें खुद भी अंदाज़ा नहीं होता कि हमारी ऐसी नकारात्मक बातों से किसी की भावनाएं आहत हो सकती हैं।

By Edited By: Published: Thu, 28 Apr 2016 03:21 PM (IST)Updated: Thu, 28 Apr 2016 03:21 PM (IST)
कुछ तो लोग कहेंगे
परवाह नहीं करती सोनिका रस्तोगी, लखनऊ मैं संयुक्त परिवार में रहती हूं। परिवार सहित पास-पडोस में भी कई ऐसे लोग होते हैं, जो दूसरों के निजी जीवन में अकसर ताक-झांक और रोक-टोक करते रहते हैं। मुझे भी अकसर ऐसे लोगों का सामना करना पडता है। मेरी बेटी की डंास में बहुत ज्यादा रुचि है और वह कई नृत्य प्रतियोगिताओं में पुरस्कार भी जीत चुकी है। उसके इसी शौक को देखते हुए मैंने डांस स्कूल में उसका एडमिशन करवाया। चूंकि, स्कूल घर से थोडा दूर है। इसलिए मैं उसे खुद ही छोडने और वापस लाने जाती हूं। हालांकि, मैं घर के सभी काम ख्ात्म करने के बाद बाहर निकलती हूं। फिर भी पास-पडोस की कुछ स्त्रियां अकसर मुझसे कहती हैं कि यह तो बच्ची को स्कूल छोडने के नाम पर अकसर बाहर घूमने निकल जाती हैं। पहले यह सब सुनकर मुझे बहुत दुख होता था, लेकिन अब मैं ऐसी बेकार बातों की परवाह नहीं करती। अपने परिवार के लिए मुझे जो सही लगता है, वही करती हूं। आज भी है अफसोस नीतिका सीधर, हिसार दूसरों के बारे में टीका-टिप्पणी करना सहज मानवीय स्वभाव है। कई बार हमें खुद भी अंदाजा नहीं होता कि हमारी ऐसी नकारात्मक बातों से किसी की भावनाएं आहत हो सकती हैं। एक बार मुझसे भी ऐसी गलती हो गई थी, जिसका मुझे आज भी बहुत अफसोस होता है। मैं एक स्कूल में हिंदी की टीचर हूं। एक बार मैंने क्लास की लडकियों से संज्ञा के प्रकार याद करके आने को कहा। दूसरे दिन जब मैंने एक-एक करके क्लास की लडकियों से पूछना शुरू किया तो कुछ ने तो सही जवाब दिया, पर एक लडकी कुछ भी नहीं बोल पाई। मैंने उससे दोबारा याद करके क्लास में आने को कहा, फिर भी उसने पाठ याद नहीं किया। यह सिलसिला कई दिनों तक चला। एक बार हमारे स्कूल के वार्षिक समारोह के एक नाटक में उस लडकी ने भी हिस्सा लिया था। हैरत की बात तो यह थी कि वह अपने डायलॉग की एक भी लाइन नहीं भूली थी। अगले दिन जब वह मुझे स्कूल के ग्राउंड में मिली तो मैंने उससे व्यंग्यात्मक लह•ो में कहा कि तुम नाटक की एक भी लाइन नहीं भूली, पर किताब की बातें तुम्हें कैसे याद नहीं होतीं? यह बोलने के बाद मैं अपने काम में व्यस्त हो गई। थोडी देर बाद एक टीचर ने मुझे बताया कि वह लडकी बुरी तरह रो रही थी। तब मुझे अपनी गलती पर बहुत अफसोस हुआ। बाद में मैंने उसे अपने पास बुलाकर समझाया कि सचमुच तुमने नाटक में बहुत अच्छा अभिनय किया था और उसी तरह अगर पढाई पर भी ध्यान दोगी तो तुम्हारा रिजल्ट बहुत अच्छा होगा।

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