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जानें इनके मन की बातें

कभी आपने सोचा है कि दूसरों के मन की उलझनें सुलझाने वाले विशेषज्ञों को भी कई बार ऐसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है। फिर वे अपना भावनात्मक संतुलन कैसे बनाए रखते हैं, आइए जानते हैं उन्हीं की जुबानी।

By Edited By: Published: Wed, 25 Jan 2017 04:21 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jan 2017 04:21 PM (IST)
जानें इनके मन की बातें
लगातार काउंसलिंग के कई सेशंस एंग्जायटी, स्ट्रेस, डिप्रेशन...के अलावा कई गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों की दुख भरी बातें पूरे धैर्य के साथ सुनते हुए उनका समाधान ढूंढने का निरंतर प्रयास कई बार विशेषज्ञों को भी थका देता है। हालांकि उन्हें ऐसी स्थितियों में भी संयत रहने की ट्रेनिंग दी जाती है। बावजूद इसके कई बार उनका मन भी तनावग्रस्त हो जाता है। ऐसी स्थितियों में वे अपना भावनात्मक संतुलन कैसे बनाए रखते हैं। आम लोगों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है। यहां कुछ विशेषज्ञों से की गई बातचीत के जरिये आपके मन में उठने वाले ऐसे सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे। मरीज की मुस्कान देती है संतुष्टि डॉ. आशीष मित्तल, सीनियर कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गुडग़ांव मानसिक परेशानी की स्थिति में आमतौर पर हम दूसरों को जो सलाह देते हैं, निजी जिंदगी में खुद भी उसी पर अमल करने की कोशिश करते हैं। यह जरूरी नहीं है कि मरीजों की काउंसलिंग से हमें हमेशा तनाव ही मिले, कई बार हमारे ऊपर इसका सकारात्मक असर भी पडता है। हम कई तरह के लोगों से मिलते हैं। उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढते हुए हमारे लिए यह समझना बहुत आसान हो जाता है कि अगर कभी मेरे सामने ऐसी स्थिति आए तो मुझे क्या करना चाहिए? हम अपनी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच कभी भी घालमेल नहीं करते। अपने पेशेंट की हालत देखकर हमें दुख तो जरूर होता है पर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए हम उन्हें उनकी समस्या से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। जहां तक मेरे अनुभवों का सवाल है तो मैं टाइम मैनेजमेंट का विशेष ध्यान रखता हूं ताकि काम और निजी जीवन के बीच हमेशा संतुलन बना रहे। जब कोई मरीज हमसे यह कहता है कि अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूं तो उसका यह पॉजिटिव रिस्पॉन्स हमारे लिए टॉनिक का काम करता है। उसके चेहरे पर मुस्कान देखकर हमें भी बेहद संतुष्टि मिलती है और हमारे काम का असली रिवॉर्ड यही होता है। पेरेंट्स से भी सीखती हूं पूनम कामदार, चाइल्ड काउंसलर अपने करियर के शुरुआती दौर में बच्चों की समस्याएं सुनकर कई बार मैं बेहद तनावग्रस्त हो जाती थी लेकिन समय के साथ मैंने खुद को समस्याओं से डिटैच करना सीख लिया है। अब मेरे सामने चाहे कितना ही मुश्किल केस क्यों न आए, मैं तटस्थ भाव से उसका समाधान ढूंढ लेती हूं। मेरी एक ही बेटी है और शुरू से मेरी, यही कोशिश रही है कि मैं उसे बहुत अच्छी परवरिश दूं। जब वह छोटी थी तो मेरे स्कूल में पेरेंट्स के लिए अकसर वर्कशॉप का आयोजन होता था। तब वहां उनके अनुभवों से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता था। साथ ही उन्हें मैं जो भी सुझाव देती थी, उन पर खुद भी अमल करने की पूरी कोशिश करती थी। तब काउंसलिंग के दौरान मैं हमेशा सभी पेरेंट्स को यही सलाह देती थी कि उन्हें दूसरों से अपने बच्चे की तुलना नहीं करनी चाहिए लेकिन कई बार मैं भी मन ही मन आसपास के बच्चों से अपनी बेटी की तुलना करने लगती थी। बाद में जब मुझे गलती का एहसास होता तो अपनी ऐसी सोच पर उसी वक्त अंकुश लगा देती। हालांकि, व्यावहारिक रूप से यह इतना आसान नहीं होता। परिवार को क्वॉलिटी टाइम डॉ. नंद कुमार, एडिशनल प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ साइकिएट्री एम्स दिल्ली अगर किसी मरीज की जीवन स्थितियां मनोचिकित्सक के निजी जीवन से मिलती-जुलती हों तो ऐसे मामलों में न चाहते हुए भी पेशेंट के साथ उसका थोडा भावनात्मक जुडाव हो ही जाता है। आम लोगों की तरह हमें भी तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्याएं होती हैं। ऐसी स्थिति में हम कलीग्स से अपनी परेशानियां शेयर करते हैं। वैसे भी करीबी लोगों के साथ बातें करने पर मन हलका हो जाता है। कई बार जब कोई मरीज बीच में ही ट्रीटमेंट अधूरा छोड देता है तो इससे बाद में उसकी स्थिति बहुत खराब हो जाती है। यह देखकर हमें बहुत दुख होता है। मेरा एक पेशेंट डिप्रेशन का शिकार था। वह कई तरह की पारिवारिक और प्रोफेशनल परेशानियों से घिरा था। उपचार से उसकी स्थिति में सुधार हो रहा था लेकिन उसने बीच में ही ट्रीटमेंट छोड दिया और कुछ महीने बाद मुझे मालूम हुआ कि उसने आत्महत्या कर ली। इससे मुझे बहुत दुख हुआ पर अपनी प्रोफेशनल जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हमें ऐसी मनोदशा से बहुत जल्दी उबरना होता है, तभी हम दूसरे पेशेंट्स का ध्यान रख पाते हैं। हम अपने मरीजों की निजता का पूरा सम्मान करते हैं। इसलिए किसी केस के बारे में मैं अपनी पत्नी से भी डिस्कस नहीं करता। कई बार जब हमारा मन बहुत परेशान होता है तो हमें भी आम लोगों की तरह काउंसलिंग लेने की जरूरत पडती है। काम खत्म होने के बाद खुद को रिलैक्स करना हमारे लिए बेहद जरूरी होता है। इसलिए हॉस्पिटल से लौटने के बाद मैं अपना मोबाइल ऑफ कर देता हूं और परिवार के सदस्यों के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताता हूं। इससे मन तनावमुक्त हो जाता है। ट्रेनिंग और अनुभव का साथ विचित्रा दर्गन आनंद, मनोवैज्ञानिक सलाहकार इस प्रोफेशन में दिमागी सुकून बहुत जरूरी है। इसीलिए मैं एक दिन में दो से ज्य़ादा केसेज नहीं लेती। दो सेशन के बीच कम से कम दो-तीन घंटे का गैप जरूर रखती हूं। मुझे ऐसा नहीं लगता कि मनोवैज्ञानिक समस्या से ग्रस्त लोगों की सोच हमेशा नकारात्मक होती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी किसी समस्या का हल ढूंढ रहा है तो यह भी अपने आप में बहुत अच्छी बात है। कुछ मरीजों की सोच इतनी सकारात्मक होती है कि उनसे हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हां, साइको एनालिसिस के दौरान अगर मरीज का काउंसलर या डॉक्टर अपोजिट सेक्स का हो तो अकसर हमें एक व्यावहारिक दिक्कत का सामना करना पडता है। कई बार मरीजों का अपने/अपनी काउंसलर के साथ गहरा भावनात्मक लगाव हो जाता है और वह उसके प्रति आकर्षित होने लगता है। मनोविज्ञान की भाषा में इसे ट्रांस्फेरेंस कहा जाता है। कुछ चिकित्सक भी अनजाने में मरीज के साथ इमोशनल अटैच्मेंट महसूस करने लगते/लगती हैं तो उसे काउंटर ट्रांस्फेरेंस कहा जाता है। हमें ऐसी स्थितियों का सामना करने के लिए खास तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है। काउंटर ट्रांस्फेरेंस की स्थिति को नियंत्रित करना पूरी तरह हमारे हाथों में होता है। इसलिए इसकी आशंका बहुत कम होती है कि हम किसी मरीज के प्रति आकर्षित हो जाएं। हां, ट्रास्फेरेंस की स्थिति का सामना अकसर मुझे भी करना पडता है। कई बार काउंसलिंग के लिए आने वाले पुरुष सेशन खत्म होने बाद बेवजह फोन या मेसेज करके मुझसे बातें करने की कोशिश करते हैं। हम ऐसे लोगों को जानबूझ कर इस ढंग से इग्नोर करते हैं कि उनकी भावनाएं आहत न हों और वे यह बात समझ जाएं कि 'मेरे साथ काउंसलर का रिश्ता पूरी तरह प्रोफेशनल था और अब मुझे भी काउंसलिंग की जरूरत नहीं है। फिल्म 'डियर जिंदगी में इस अवस्था को बडी खूबसूरती से दर्शाया गया है। आखिरी सेशन के बाद जब कायरा डॉ.जहांगीर से दोबारा मिलने की इच्छा जाहिर करती है तो वह उसे बहुत प्यार से मना कर देते हैं। काउंसलिंग के दौरान मुझे भी अकसर ऐसी स्थितियों का सामना करना पडता है पर ट्रेनिंग और अनुभव की वजह से कोई परेशानी नहीं होती।

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