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मकर संक्रांति का महापर्व

जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इसी दिन से सूर्यदेवता उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को रात्रि कहा गया है। त्योहार एक रूप अनेक

By Edited By: Published: Wed, 23 Dec 2015 01:13 PM (IST)Updated: Wed, 23 Dec 2015 01:13 PM (IST)
मकर संक्रांति का महापर्व

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जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इसी दिन से सूर्यदेवता उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को रात्रि कहा गया है।

त्योहार एक रूप अनेक

मकर संक्रांति के दिन स्नान-दान, जप-तप और अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। इस दिन घी और कंबल के दान की भी परंपरा है। उत्तर भारत में गंगा-यमुना के तट पर बसे गांवों-नगरों में मेले का आयोजन होता है। इलाहाबाद स्थित प्रयाग के संगम-स्थल पर प्रतिवर्ष लगभग एक मास तक माघ मेला लगता है, जिसे कल्पवास कहा जाता है। तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर मकर संक्रांति के पर्व स्नान के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उत्तर प्रदेश में इसे खिचडी भी कहा जाता है। इस दिन खिचडी के साथ तिल से बनी चीजें दान करने और खाने का विधान है। महाराष्ट्र में पहली संक्रांति के अवसर पर नवविवाहिताएं तेल, कपास और नमक आदि वस्तुएं सौभाग्यवती स्त्रियों को भेंट करती हैं। तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन चावल, दाल और तिल की खिचडी अर्पित करके कृषि देवता के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है। तमिल पंचांग का नया वर्ष इसी दिन से शुरू होता है। असम में इस दिन बिहू नामक त्योहार मनाया जाता है। राजस्थान में इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां तिल के लड्डू, घेवर और रुपये आदि सास को उपहार स्वरूप भेंट करती हैं, जिसे बायना कहा जाता है। वहां इस दिन 14 की संख्या में पकवान, फल और अन्य वस्तुएं दान करने की परंपरा है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की गति तिल-तिल बढती है। इसीलिए इस दिन तिल से बने मिष्ठानों के दान एवं सेवन का प्रचलन है। गुजरात में इस दिन पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहडी नामक त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहित ा नामक राक्षसी को गोकुल भेजा था, लेकिन श्रीकृष्ण ने उस राक्षसी का संहार कर दिया था और इसी की याद में लोहडी का पर्व मनाया जाता है।

प्रचलित कथा

मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में भव्य मेला लगता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन गंगाजी स्वर्ग से उतरकर सागर में मिल गई थीं। गंगा जी के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हज्ाार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इसी घटना की याद में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर पश्चिम बंगाल स्थित गंगा सागर में मेले का आयोजन होता है।

ज्योतिष और मकर संक्रांति

भारतीय ज्योतिष के अनुसार इसी दिन से सूर्य एक से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इस खगोलीय घटना को अंधकार से प्रकाश की ओर बढऩे का संकेत माना जाता है। इसी दिन से रात्रि की अवधि कम होने लगती है और दिन बडा होने लगता है। यह स्वाभाविक है कि दिन बडा होने से प्रकाश अधिक होगा और रात्रि छोटी होने से अंधकार की अवधि कम होने लगती है। सूर्यदेव ऊर्जा के प्रत्यक्ष स्रोत हैं। इनके अधिक देर तक चमकने से व्यक्ति की चेतना और कार्य-क्षमता में वृद्घि होती है। इसलिए हमारी संस्कृति में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है।

संध्या टंडन


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