Move to Jagran APP

वर दे वीणा वादिनी...

परमात्मा की अनेक शक्तियों में से एक हैं, वाग्देवी सरस्वती। यह देवी ज्ञान-विज्ञान एवं कला-कौशल की अधिष्ठात्री हैं। यह साक्षात ब्रह्मï स्वरूपा मानी जाती हैं। देवी सरस्वती प्रतीक हैं-प्रत्येक मानव में निहित उस चैतन्य शक्ति की, जो उसे ज्ञान और चेतना के मार्ग पर ले जाती है।

By Edited By: Published: Wed, 20 Jan 2016 04:23 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2016 04:23 PM (IST)
वर दे वीणा वादिनी...

षट्तिला एकादशी 4 फरवरी

loksabha election banner

शनि प्रदोष व्रत 6 फरवरी

मौनी अमावस्या 8 फरवरी

वसंत पंचमी 12 फरवरी

जया एकादशी 18 फरवरी

माघी पूर्णिमा 22 फरवरी

फाल्गुन मास प्रारंभ 23 फरवरी

परमात्मा की अनेक शक्तियों में से एक हैं, वाग्देवी सरस्वती। यह देवी ज्ञान-विज्ञान एवं कला-कौशल की अधिष्ठात्री हैं। यह साक्षात ब्रह्म स्वरूपा मानी जाती हैं। देवी सरस्वती प्रतीक हैं-प्रत्येक मानव में निहित उस चैतन्य शक्ति की, जो उसे ज्ञान और चेतना के मार्ग पर ले जाती है। भौतिक विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि देवी सरस्वती सदैव एवं सर्वत्र व्याप्त हैं। ध्वनि की सूक्ष्म तरंगों के कारण ही आज दूरसंचार के विविध उपकरण जैसे-मोबाइल, कंप्यूटर, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि लोगों के साथ संपर्क के सबसे सशक्त माध्यम बन चुके हैं। ये ध्वनि-तरंगें नाद ब्रह्म का ही रूप हैं और देवी सरस्वती की वीणा की झंकार की गंूज हैं, जो संपूर्ण विश्व में सदैव व्याप्त रहती है।

विद्या एवं कला से जुडा पर्व

प्राचीन काल से विद्या, कला एवं संगीत की अधिष्ठात्री के रूप में देवी सरस्वती वंदनीय हैं। शिक्षा और संगीत से जुडे सभी कार्यक्रमों में देवी सरस्वती का आह्वान निश्चित रूप से किया जाता है। शास्त्रों में विद्या को सर्वोत्तम धन माना गया है। इसीलिए नीतिशास्त्र के विद्वान चाणक्य ने भी कहा है कि विद्याहीन मनुष्य पशु के समान है। अपनी विद्या के बल पर ही मनुष्य सर्वत्र पूजनीय बन जाता है। महाकवि कालिदास इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं, जो महामूर्ख माने जाते थेे, लेकिन उन्होंने काली के रूप में मां सरस्वती की उपासना की थी। उसके बाद माता के आशीर्वाद से वह महाकवि कालिदास के नाम से

जग-विख्यात हो गए।

देवी का प्राकट्य दिवस

माघ मास की शुक्ल पक्ष पंचमी को सरस्वती माता प्रकट हुई थीं। श्रीकृष्ण के कंठ से उत्पन्न होने के कारण ही इन्हें सरस्वती कहा जाता है। इस दिन इनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। देश के कुछ हिस्सों में इसी दिन से बच्चों के विद्यारंभ की औपचारिक शुरुआत की जाती है। लोगों का ऐसा मानना है कि इससे बच्चे कुशाग्र बुद्धि के होते हैं। वसंंत पंचमी को श्रीपंचमी तथा ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। भगवती सरस्वती की उत्पत्ति सत्वगुण से हुई है। इसलिए इनके पूजन में अधिकांशत: श्वेत वर्ण की वस्तुएं अर्पित की जाती हैं। सरस्वती माता के पूजन में सफेद वस्त्र, फूल, फल और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। पुस्तक और लेखनी को देवी सरस्वती का निवास स्थान मानते हुए उसकी भी पूजा की जाती है। विद्यार्थी वर्ग को विशेष रूप से मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इनकी कृपा से ही मनुष्य मेधावी बनता है। मां सरस्वती अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का

मार्ग प्रशस्त करती हैं और अपने भक्तों को ज्ञान प्रदान करके सदैव उनका कल्याण करती हैं।

यह भी जानें

सूर्य ग्रहों के स्वामी और पंचदेवों में एक हैं। सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा गया है। सनातन संस्कृति में अघ्र्य देना श्रद्घा का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य को अघ्र्य देते समय गिरने वाली पानी की बूंदें वज्र बनकर रोग रूपी राक्षसों का विनाश करती हैं। जल देने से सूर्य की रश्मियों का प्रभाव जल देने वाले पर पडता है, जिससे रोग दूर भागते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य को बिना अन्न ग्रहण किए जल देना चाहिए। प्रात:काल पूर्व और सांय:काल पश्चिम की ओर मुख करके सूर्य देवता को अघ्र्य देना चाहिए। सूर्य को जल अर्पित करने से हमारे पितरों की आत्मा तृप्त हो जाती है। सूर्यदेव काल के नियामक हैं। हमारे जीवन को सूर्य से ही व्यवस्था मिलती है। पुराणों के अनुसार इनकी उपासना करने से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।

संध्या टंडन


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.