हर स्थिति में संतुष्टï रहा हूं: राम वी. सुतार
पद्मभूषण-पद्मश्री प्राप्त देश के शीर्ष मूर्तिकार राम.वी. सुतार से मिलना एक यादगार अनुभव है। 95 वर्ष के इस उत्साही कलाकार से मिलकर जाना कि मेहनत के बल पर कैसे अपनी तकदीर लिखी जा सकती है और कला कैसे ज़्ामीन से जुड़े रहना सिखा सकती है।
देश के शीर्ष मूर्तिकार राम.वी. सुतार के नोएडा स्थित स्टूडियो के बाहर खडी विशालकाय मूर्तियों को देखते हुए अकसर उनके बारे में जानने की इच्छा होती थी। पिछले दिनों उनसे उनके घर पर मिलने का अवसर मिला तो न सिर्फ उनकी कला को जानने, बल्कि उनके जीवन-दर्शन से रूबरू होने का मौका भी मिला। लगभग एक-डेढ घंटे वह अपनी कलाकृतियां दिखाते रहे और कई पुरानी बातें याद करते रहे। 35-36 फुट ऊंची चंबल देवी, 20 फुटी ऊंची गंगा-यमुना, पं. गोविंद वल्लभ पंत, जवाहर लाल नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की ब्रोंज मूर्तियां, महात्मा गांधी का वुडन स्टेच्यू, सूरजकुंड बडख़ल मार्ग पर तमाम महापुरुषों से सजा आनंदवन...। लंबी सूची है उनके काम की। ये काम तो दुनिया ने देखे हैं, लेकिन छोटे-छोटे कंकडों सहित कई मेटल्स में उकेरी गई कलाकृतियां भी अद्भुत हैं। इनमें ज्िांदगी की रवानगी है, प्रकृति है, देवी-देवता हैं, स्त्री है, जो मां के रूप में है। जीवन को कैसे देखते हैं वह, बता रहे हैं।
शौक जो जुनून बना
महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव गोंडुर में कारपेंटर परिवार में मेरा जन्म हुआ। तब वहां बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं। हम भाई-बहन पैदल तीन किलोमीटर चलकर स्कूल जाते थे। मैं सुबह जल्दी उठ कर नदी से पानी भर कर लाता था, घरेलू काम निपटाता और फिर स्कूल जाता। स्कूल से वापस आकर भी पिता के साथ काम करता। बचपन से ही पेंटिंग का शौक था। शायद 10 साल का था, जब क्ले से एक फुट बडी गणेश की कलाकृति बनाई थी। यहीं से कला जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई। सातवीं कक्षा के बाद मैं आगे की शिक्षा के लिए अपने एक रिश्तेदार के घर रहा, लेकिन वहां घरेलू काम करने के बाद अकसर स्कूल देरी से पहुंचता और डांट खाता, तब मैंने स्कूल के ही पास दो रुपये प्रतिमाह किराये पर एक घर लिया, क्योंकि कला को मैं किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहता था। उस समय स्लेट पर मैंने एक चित्र बनाया, जिसमें देवी भवानी छत्रपति शिवाजी को तलवार दे रही हैं। उस चित्र के लिए मुझे शिक्षकों और सहपाठियों से बहुत तारीफ मिली।
इस उम्र में इतना काम? लोग आश्चर्य करते हैं कि मैं कैसे 8-10 घंटे काम कर लेता हूं। दरअसल कला ही मेरा काम है, यही मेरा शौक है। मैं जब काम नहीं करता, उस समय भी कुछ न कुछ बनाता रहता हूं। मेरे लिए आराम का अर्थ है, विषय में थोडा परिवर्तन।
गांधी और गुरु
मेरे जीवन पर दो लोगों का गहरा प्रभाव रहा है। मेरे कला शिक्षक श्रीराम कृष्ण जोशी और महात्मा गांधी। एक बार हमारे गांव में गांधी आए। विदेशी कपडों की होली जलाई जा रही थी। मेरे पास मखमल की एक टोपी थी। किसी ने कहा, यह विदेशी है, इसे जला दो, तो मैंने उसे जला दिया। तभी से गांधी जी का अनुयायी हो गया। स्वदेशी चीज्ों इस्तेमाल करना, स्वच्छता का ध्यान रखना, सादा जीवन-उच्च विचार मेरे सिद्धांत बन गए। मेरे ड्रॉइंग टीचर थे, राम कृष्ण जोशी। उन्होंने ही पहली बार गांधी जी की मूर्ति बनवाई, जिसके लिए मुझे सौ रुपये मिले। बाद में कई अन्य लोगों के लिए भी वैसी ही मूर्ति बनाई। आज जो भी हूं, अपने गुरु के आशीर्वाद से हूं।
कर्म करते रहें
मैं हमेशा काम करते रहना चाहता हूं। इसी में मुझे आनंद मिलता है। ऊपर वाले ने जो कुछ भी दिया है, उसमें ख्ाुश रहें। गीता के इसी उपदेश का पालन करता हूं। कई साल तक मुझे कुछ नहीं मिला। पैर में चप्पल भी नहीं होती थी, कभी कोई पैसा देता था तो कोई नहीं भी देता। एक आना भी मिल जाता था तो ख्ाुश रहता था। मुझे लगता है कि अपने काम को अच्छी तरह करें। जो है-उसमें संतुष्ट रहें। अपने सिद्धांतों पर कायम रहें, लालसाओं से दूर रहें तो दुनिया सुंदर बन सकती है।
प्रस्तुति : इंदिरा राठौर