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ख्वाहिशों का समंदर डायरी

तुम्हें अपने पास पाकर हर दुख-दर्द भूल जाती हूं। अपनी हर खुशी और गम तुम्हारे साथ बांट कर काफी सुकून महसूस करती हूं।

By Edited By: Published: Tue, 04 Apr 2017 01:34 PM (IST)Updated: Tue, 04 Apr 2017 01:34 PM (IST)
ख्वाहिशों का समंदर डायरी

जैसे-जैसे मैं बडी होती जा रही हूं, मेरे आसपास सब कुछ बदलता सा जा रहा है। क्या यह सिर्फ मेरे साथ ही हो रहा है या इस उम्र की हर लडकी को ऐसा महसूस होता है? क्यों मुझे ऐसा लगता है कि सब कुछ होते हुए भी किसी चीज की कोई कमी है? मैं सारा दिन पढाई और असाइनमेंट्स में व्यस्त रहती हूं, उसके बाद जितना भी समय बचता है, उसे परिवार और दोस्तों के साथ बिताती हूं। उसके बावजूद अगर थोडा सा भी टाइम अकेले रहना पड जाए तो लगता है कि जैसे कोई साथ ही नहीं है मेरे। उस समय तो फोन या लैपटॉप को भी हाथ लगाने की बिलकुल इच्छा नहीं होती। बस ऐसा लगता है कि किसी का हाथ थाम कर कुछ-कुछ बोलती जाऊं।

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पता है, आज मेरा मन कुछ उदास था। सुबह से ही अटपटा सा लग रहा था। लंच में मेरा फेवरिट खाना था, फिर भी वह मुझे स्वादिष्ट नहीं लग रहा था। कॉलेज में टेस्ट था, रिजल्ट भी आज ही पता चल गया था। मुझे खुश होना चाहिए था कि मेरे माक्र्स काफी अच्छे आए थे। हर कोई सेलिब्रेट कर रहा था पर मैं कुछ गुमसुम थी। मेरा मन कर रहा था कि उस शोर से दूर कहीं अकेले बैठ जाऊं। सबसे अजीब बात तो यह थी कि इस मायूसी का कारण भी मुझे समझ नहीं आ रहा था।

कॉलेज की छुट्टी के बाद आज दोस्तों के साथ गोलगप्पे खाने के लिए भी मैं नहीं रुकी। मैं जल्द से जल्द घर पहुंच कर मां से इस बारे में बात करना चाहती थी। घर आई तो मां किचन में थी। उनको अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने कहा कि बदलते मौसम में अकसर मन अनमना सा हो जाता है। वे शाम का नाश्ता और रात का खाना तैयार करने में व्यस्त थीं तो मैंने उन्हें ज्यादा परेशान करना सही नहीं समझा। बुझे मन से मैं अपने रूम में आ गई, फिर मैंने अपनी बेस्ट फ्रेंड को कॉल किया। वह मेरी बात सुन तो रही थी पर उसकी आवाज से मुझे लगा कि जैसे वह बात करने के साथ ही कुछ और काम भी कर रही थी। तब मैंने फोन को साइड में रखकर तुम्हें अपने हाथ में उठा लिया। मैंने अकसर लोगों को कहते सुना है कि जब कोई साथ न हो तो तुमसे बातें कर लेनी चाहिए। मैं तो वैसे भी अपने मन की हर बात सबसे पहले तुमसे ही कहती हूं। तुम्हें अपने पास पाकर हर दुख-दर्द भूल जाती हूं। अपनी हर खुशी और गम तुम्हारे साथ बांट कर काफी सुकून महसूस करती हूं। ऐसा लगता है कि मानो मन का कोई भारी बोझ हलका हो गया हो।

मैं तुमसे लगभग 7 साल पहले मिली थी, तब से ही हमारी दोस्ती गहराती जा रही है। स्कूल से कॉलेज में आई, नए दोस्त बने, मैंने सबका परिचय तुमसे करवाया। मगर कभी कोई तुम्हारे करीब नहीं आ पाया, उसकी इजाजत तो घर में भी किसी को नहीं है। अकसर लोग कोशिश करते हैं कि तुमसे मेरे राज जान सकें मगर उन्हें वह मौका मिल ही नहीं पाता। जब मैं हॉस्टल में थी, एक नए शहर की सैर करवाने के लिए तुम्हें भी अपने साथ ले गई थी। एक बार दोस्तों ने तुम्हें कहीं छुपा दिया था, मैं बहुत घबरा गई थी। मेरे रोने पर उन लोगों को हमारी गहरी दोस्ती का एहसास हुआ था और तुम मेरे पास वापस आ गई थी।

कई बार मन में कुछ ऐसी बातें होती हैं, जो हम दूसरों के साथ बांट पाने में हिचकते हैं। वह कोई भी बात हो सकती है, कॉलेज में डांट पडी हो, दोस्तों से झगडा हुआ हो, किसी ने दिल दुखाया हो, माक्र्स कम आए हों... या कुछ और..। ऐसी कितनी ही बातें मैं बेहिचक, कभी भी तुमसे कह लेती हूं क्योंकि तुम मुझे कभी जज नहीं करती हो। तुम सिर्फ शांति से मेरी बातें सुनती रहती हो। सबसे अच्छी बात तो यह है कि भले ही तुम मुझे कोई सुझाव नहीं दे पाती हो मगर तुमसे अपने राज और परेशानियां बांटते ही मुझे एक नई और सही राह नजर आने लगती है। जैसे अभी ही देखो, तुमसे बातें करते-करते मुझे अपने मूड स्विंग का कारण समझ में आ गया। मैं बिना मतलब ही अपना टेम्पर हाई कर रही थी।

कितनी बेवकूफ हूं न मैं! मैं यह कैसे भूल जाती हूं कि हर कोई हर समय मेरे लिए फ्री नहीं हो सकता है। सबकी अपनी प्राथमिकताएं होती हैं, कोई उन्हें हर समय तो मेरे लिए नहीं बदल सकता न। सब लोग मुझसे इतना प्यार करते हैं, अभी बर्थडे पर मेरे खास दोस्तों ने मेरे लिए कितने सारे सरप्राइज प्लैन किए थे, मुझे कितना स्पेशल फील करवाया था। मैं कैसे भूल जाती हूं कि मेरी एक मुस्कुराहट के लिए मेरी फैमिली और फ्रेंड्स कुछ भी कर जाते हैं। फिर मेरी भी तो जिम्मेदारी बनती है न कि मैं भी उन्हें खुश रख सकूं, उनके लिए कुछ ऐसा करूं, जिससे वे मुस्कुराएं। सबके जीवन में सबके लिए एक निश्चित जगह होती है, उसे चाह कर भी कोई और नहीं बदल सकता। किसी से ईष्र्या कर या किसी के बारे में कुछ गलत सोचने का कोई फायदा नहीं होता है।

इससे व्यक्ति का अपना ही मन खराब होता है। आइंदा से मैं इन बातों को समझूंगी, किसी के व्यस्त रहने पर उसकी स्थिति को समझने की पूरी कोशिश करूंगी, बात-बात पर शिकायत नहीं करूंगी। पर इसका यह मतलब भी नहीं है कि बातों को अपने मन में रखूंगी, सही समय आने पर सामने वाले को बता दिया करूंगी। उन पर अपना हक जताते हुए बाद में उस समय की भरपाई करने को जरूर कहूंगी, जिससे रिश्ता मजबूत बन सके।


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