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पहचानें अपनी कीमत

दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना निश्चित रूप से बहुत अच्छी बात है लेकिन स्वयं को औरों से कमतर समझने की आदत व्यक्ति को नाकामी और निराशा के गर्त में धकेल देती है। इसलिए चाहे हमारे सामने कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं पर हमें हर हाल में हीन भावना से बचने की कोशिश करनी चाहिए।

By Edited By: Published: Wed, 28 Dec 2016 05:48 PM (IST)Updated: Wed, 28 Dec 2016 05:48 PM (IST)
पहचानें अपनी कीमत
न के हारे हार है, मन के जीते जीत। आपने भी यह कहावत जरूर सुनी होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर हम अपने बारे में अच्छा सोचेंगे तो निश्चित रूप से हमारे साथ भी अच्छा ही होगा लेकिन आमतौर पर ऐसा कम ही हो पाता है। व्यावहारिक जीवन में लोग दूसरों से अपनी तुलना करके खुद को कमतर समझने लगते हैं। यही सोच व्यक्ति को हीनभावना और कुंठा का शिकार बना देती है। इससे धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास कमजोर पडऩे लगता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमें ईमानदारी से आत्म मूल्यांकन करते हुए सचेत तरीके से अपनी कमियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। तुच्छ भावनाओं का त्याग क्रोध और अहंकार की तरह आत्म-हीनता भी एक ऐसी तुच्छ भावना है, जो इंसान के व्यक्तित्व को खोखला बना देती है। इसलिए जहां तक संभव हो, हमें इस भावना से बचने की कोशिश करनी चाहिए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी यही कहा है, 'क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप:' अर्थात हमें हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर आत्मविश्वास के साथ उठकर खडे हो जाना चाहिए।' हालांकि जीवन का एक कडवा सच यह है कि आज ज्य़ादातर लोग हीनभावना से ग्रस्त हैं। केवल आध्यात्मिक ज्ञान का दीपक ही हमें हीनता के इस अंधकार से मुक्ति दिला सकता है। अकसर लोग ऐसा सोचते हैं कि पद, प्रतिष्ठा और धन हासिल कर लेने से हमारी हीन भावना दूर हो जाएगी। यह बहुत बडी गलतफहमी है। भौतिक वस्तुओं और सांसारिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति हमारी हीनभावना को दूर नहीं कर सकती। अज्ञान के इस अंधकार को आप सुगंध या सुमधुर ध्वनि से नहीं बल्कि आत्मज्ञान के प्रकाश से ही हटा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि 'अहं अमृतस्य पुत्रं।' अर्थात मैं उसी ईश्वर की संतान हूं, जो अमृत के समान शाश्वत है। हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि ईश्वर ने हमें जो कुछ भी दिया है, वह अमूल्य है। सत्य तो यह है कि आज हमारे पास जितनी सुख-सुविधाएं हैं, हमारे पूर्वजों ने उसकी कल्पना भी नहीं की होगी। अगर आप एक बार अपने आसपास के लोगों पर नजर डालें तो आपको खुद ही महसूस होगा कि सभी को एक साथ सब कुछ नहीं मिलता। किसी के पास धन है तो उसकी सेहत खराब है। कोई पूर्णत: स्वस्थ है तो उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हैं। कोई सुशिक्षित है तो उसकी शक्ल-सूरत अच्छी नहीं है। कोई बहुत सुंदर है पर उसमें जरा भी समझदारी नहीं है। किसी के पास सब कुछ है तो वह पारिवारिक कलह से परेशान है। ईश्वर भी जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए सभी को एक साथ सारे सुख नहीं देता। अब भलाई इसी में है कि सबसे पहले हम अपने गुणों और अच्छी जीवन-स्थितियों को पहचानकर अपने व्यक्तित्व को संवारने में उन सभी अच्छाइयों का बखूबी इस्तेमाल करें। न छोडें अपनों का साथ हर व्यक्ति अपने लिए अच्छे जीवन की कामना करता है। फिर भी कई बार जाने-अनजाने में वह हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में उसके परिवार के सदस्यों और दोस्तों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे उसे अकेला न छोडें और अपनी सकारात्मक बातों से निरंतर उसका मनोबल बढाने की कोशिश करें। हीनभावना के शिकार व्यक्ति को अपनों के सहारे की जरूरत होती है। इसलिए अगर आपके परिवार या पास-पडोस में कोई ऐसा व्यक्ति हो तो आप उसे पूरा सहयोग दें। अगर कभी आपके मन में अपने लिए हीनता का भाव पैदा हो तो अकेले रहने के बजाय इस समस्या के बारे में अपने करीबी लोगों, मनोवैज्ञानिक सलाहकार या आध्यात्मिक गुरु से बातचीत करें। विचार-विमर्श से ही हमारी समस्याओं का हल निकलता है। अगर आप अपनी समस्या के बारे में दस लोगों से बातचीत करते हैं तो संभव है कि उनमें से कोई न कोई ऐसा व्यक्ति जरूर होगा, जिसका सुझाव आपके अनुकूल हो। जिस तरह शारीरिक कष्ट होने पर आप बेझिझक डॉक्टर की सलाह लेते हैं, उसी तरह मानसिक परेशानी की स्थिति में भी हमें नि:संकोच अपने करीबी लोगों से मदद लेनी चाहिए। समस्या की जडें अगर हम गहराई से सोचें तो हीन भावना किसी बाहरी वजह से पैदा होने वाली समस्या नहीं है बल्कि इसकी जडें पहले से ही हमारे मन के भीतर हैं। हम पहले से ही यह सोचकर हिम्मत हार जाते हैं कि मेरी तो किस्मत ही खराब है, मेरे पास कार और बडा मकान नहीं है, मेरा चेहरा सुंदर नहीं है, मुझे अंग्रेजी बोलना नहीं आता....वगैरह-वगैरह। व्यक्ति का मन ऐसी ही नकारात्मक बातों में उलझकर रह जाता है। लोग अकसर यह भूल जाते हैं कि कोई भी व्यक्ति सर्वगुण-संपन्न नहीं होता। हम सब में कोई न कोई कमी अवश्य होती है। अगर आप अपनी खामियों को नजरअंदाज करके अपने गुणों को तराशने की कोशिश करें तो आपको निश्चित रूप से कामयाबी मिलेगी। यह विशेषज्ञता हासिल करने का जमाना है। अगर आप किसी एक फील्ड में कामयाब हैं तो लोग आपसे किसी दूसरे विषय पर बात भी नहीं करेंगे। मसलन आज कोई लता मंगेशकर से यह नहीं पूछता है कि आपको खाना बनाना आता है या नहीं? कोई सचिन तेंदुलकर से यह नहीं पूछता कि दसवीं की बोर्ड परीक्षा में आपका रिजल्ट कैसा था? अत: भलाई इसी में है कि ऑलराउंडर बनने की कोशिश में समय बर्बाद के करने बजाय अपनी रुचि से जुडे क्षेत्र में कडी मेहनत करके पहचान बनाएं। जैसे, एम.एफ. हुसैन कानाम लेते ही पेंटिंग का खयाल आता है, अमिताभ बच्चन का नाम सुनते ही फिल्मों का ध्यान आता है...उसी तरह आपको भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि आपका नाम सुनते ही लोगों के मन में किस बात का खयाल आता है? इसलिए आप अपने अच्छे गुणों को पहचान कर उनमें से किसी एक ऐसी प्रतिभा को निखारने की कोशिश करें, जिसमें आपकी गहरी दिलचस्पी हो। एक बार कामयाबी हासिल करने के बाद आपके दूसरे अवगुण अपने आप छिप जाएंगे। न खोएं अपनी मौलिकता ईश्वर सबसे बडा कलाकार है। वह कभी भी डुप्लीकेट चीजें नहीं बनाता। हर पेड-पौधे और फल-फूल का आकार-प्रकार दूसरे से अलग होता है। यहां तक कि हर व्यक्ति का रंग-रूप और शारीरिक संरचना भी दूसरे से अलग होती है। इसी वजह से पहचान के लिए लोगों के फिंगर प्रिंट को ही प्रामाणिक माना जाता है। इसलिए आप अपने ही गुणों के साथ आगे बढें, किसी भी दूसरे व्यक्ति की नकल करने की कोशिश न करें क्योंकि नकल करने से आपकी मौलिकता नष्ट हो जाएगी। हर व्यक्ति में कोई न कोई ऐसी अच्छी बात जरूर होती है, जो उसे दूसरों से अलग करती है। आप अपने किसी ऐसे ही गुण को पहचान कर उसे निखारने की कोशिश करें। कहने का तात्पर्य यह है कि आलस्य और असुविधा के बहाने को त्याग कर अपनी रुचि के क्षेत्र में तेजी से आगे बढें। अपने सद्गुणों को दूसरों के बीच खुले दिल से बांटें क्योंकि ज्ञान बांटने से घटता नहीं, बल्कि बढता है। यह प्रक्रिया कुछ वैसी ही है, जैसे एक बीज से बडा वृक्ष तैयार होता और उस पर असंख्य फल लगते हैं, फिर उन्हीं फलों से बीजों का बडा ढेर तैयार हो जाता है। आज संचार के सभी माध्यम ज्ञान के प्रचार-प्रसार से मनुष्य को पूर्णता तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। हम सब पूर्ण यानी ईश्वर के अंश हैं। अत: स्वाभाविक रूप से हम भी पूर्ण हैं। कोई भी हमें पूर्णता प्रदान नहीं कर सकता। हम सभी को स्वयं अपने भीतर छिपे परमात्मा को तलाशना है। आपको कोई प्रमाणपत्र नहीं चाहिए क्योंकि वह तो कागज का एक टुकडा मात्र है। सच तो यह है कि अहंकार और हीन भावना ये दोनों ही हमारे लिए समान रूप से नुकसानदेह हैं। इस संसार में जो व्यक्ति जिस भी स्थिति में है, वही उसके लिए श्रेष्ठ है। यदि आपमें कोई गुण नहीं है तब भी कुछ ऐसी खूबियां जरूर होंगी, जो दूसरों में नहीं हैं। यह सोच कर दुखी होना गलत है कि मैं अमुक काम नहीं कर सकता/सकती। हीनता की तुच्छ भावना को त्याग कर सबसे पहले आत्मसम्मान के साथ सिर उठा कर जीना सीखें। जरा सोचिए, जब हम खुद को इज्जत नहीं देंगे तो दूसरों से सम्मान पाने की उम्मीद कैसे रख सकते हैं? आचार्य शिवेंद्र नागर वेदांत दर्शन और श्रीमदभागवत गीता के प्रभावशाली वक्ता, ऋषिकेेश स्थित गीता के बहुमूल्य ज्ञान को आधुनिक समाज तक पहुंचाना है। नागर जी विदेशों में जाकर भी गीता के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते हैं। इनका संपूर्ण जीवन वेदांत दर्शन को समर्पित है। बात एक बार की एक बार किसी व्यक्ति को यह भ्रम हो गया कि मैं बकरा हूं और कसाई मुझे मार डालेगा। घरवालों ने उसे लाख समझाया पर उसे किसी की भी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। अंत में कोई उपाय नहीं सूझने पर उस व्यक्ति को मनोचिकित्सालय भेज दिया गया। डॉक्टर ने काफी लंबे समय तक उपचार के कई तरीके अपना कर उसे विश्वास दिलाया कि तुम भी हमारी तरह मनुष्य हो। एक रोज उसने डॉक्टर से कहा कि अब मैं समझ गया कि मैं बकरा नहीं, इंसान हूं तब डॉक्टर ने उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी पर उसे जब वापस भेजा गया तो थोडी देर बाद ही वह व्यक्ति भागता हुआ दोबारा अस्पताल में वापस आ गया और उसने डॉक्टर से कहा, 'मुझे तो पता है कि मैं बकरा नहीं हूं लेकिन क्या कसाई को भी यह बात मालूम है कि मैं इंसान हूं?' कहने का तात्पर्य यही है कि कोई भी डॉक्टर व्यक्ति की हीन भावना को दूर नहीं कर सकता। इसके लिए उसे स्वयं मेहनत करनी होगी।

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