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भ्रांतियां छोड़ें समग्रता में अपनाएं योग

योग भारत के लिए नया नहीं है, लेकिन बदली स्थितियों में यह हमारे लिए नए सिरे से प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो गया है। इसीलिए इसकी लोकप्रियता भी तेज़ी से बढ़ी है। इससे बहुत लोगों को पूरा लाभ मिला है तो कुछ लोगों को नहीं भी मिल सका। जानें वे कारण

By Edited By: Published: Sat, 01 Aug 2015 02:10 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2015 02:10 PM (IST)
भ्रांतियां छोड़ें समग्रता में अपनाएं  योग

योग भारत के लिए नया नहीं है, लेकिन बदली स्थितियों में यह हमारे लिए नए सिरे से प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो गया है। इसीलिए इसकी लोकप्रियता भी तेजी से बढी है। इससे बहुत लोगों को पूरा लाभ मिला है तो कुछ लोगों को नहीं भी मिल सका। जानें वे कारण जो साधक को योग का पूरा लाभ नहीं मिलने देते।

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उम्र के बत्तीसवें पडाव पर पहुंचते ही कॉस्ट अकाउंटेंट प्रियरंजन मिश्र हाइपरटेंशन के शिकार हो चुके थे। कई एक्सपट्र्स से मिलने और लगातार दवाएं लेने के बावजूद उन्हें कुछ ख्ाास फायदा नहीं हुआ। नियमित दवाएं लेने और हिदायतें मानने के बाद भी स्वास्थ्य बिगडता जा रहा था। इससे भी ज्य़ादा परेशान वे भविष्य की आशंकाओं के चलते हो गए थे। यह बात उन्हें कई लोग बता चुके थे कि हाइपरटेंशन अकेले आने वाला रोग नहीं है। आगे इससे भी ज्य़ादा ख्ातरनाक स्थितियां आ सकती हैं। हर तरफ से उन्हें सिर्फ भय मिल रहा था, कोई समाधान या सुकून कहीं से भी नहीं। उम्मीद की किरण उन्हें दिखी अपने चित्रकार दोस्त ललित से मिलकर। ललित ने उन्हें न सिर्फ योग की सलाह दी, बल्कि एक अच्छे इंस्ट्रक्टर से मिलवाया भी। हालांकि इंस्ट्रक्टर ने उनसे कोई वादा नहीं किया। बात करने पर उन्होंने इतना ही कहा, 'सब कुछ आप पर निर्भर करता है। अगर आपने पूरी ईमानदारी से और नियमित प्रयास किए तो शायद दो-चार साल बाद आपको दवा की जरूरत न रह जाए। प्रियरंजन ने पूरी ईमानदारी से नियमित प्रयास किए। इसका ही नतीजा है जो आज दो साल बाद वह कह पाते हैं, 'टच वुड, आज मुझे वाकई दवाओं की जरूरत लगभग नहीं है।

हालांकि योग के नाम पर लंबे समय तक बहुत कुछ करने के बावजूद इस स्थिति में आ कम ही लोग पाते हैं। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो यह शिकायत करते मिलते हैं कि बहुत दिन यह सब करके देख लिया, फायदा कुछ न हुआ। कुछ लोग यह भी बताते हैं कि कुछ दिन तो फायदा हुआ, पर बाद में हमने देखा कि कुछ ख्ाास फायदा नहीं है, तो छोड दिया। इन्हीं में से कुछ लोग डायबिटीज के शिकार आइटी इंजीनियर पुनीत मित्तल जैसे भी हैं, जो मान लेते हैं, 'गलती हमारी ही थी। थोडे दिनों बाद जब आराम मिला तो हम ख्ाुद ढीले पड गए और उसके बाद फिर आराम की नौबत न आई।

बुनियादी जरूरतें

लोगों के बिलकुल अलग-अलग तरह के अनुभवों का जिक्र इसलिए किया गया है ताकि आप योग की बुनियादी जरूरतों को ठीक से समझ सकें। किसी क्रॉनिक रोग से परेशान व्यक्ति यदि उससे उबरने के लिए योग करने जा रहा हो तो यह बहुत अच्छी बात है। संभावना बहुत हद तक इस बात की ही है कि वह कुछ दिन निरंतर प्रयास के बाद स्वयं को स्वस्थ महसूस करने लगे। लेकिन, अगर प्रयास निरंतर न रहा, या योग को समग्रता में समझने के बजाय उसके किसी एक हिस्से को ही लेकर जुट गए, या फिर कहीं किसी नीम हकीम के हत्थे चढ गए तो फिर संभावना की जगह आशंकाएं भी ले सकती हैं और यह किसी भी स्थिति में अच्छी बात नहीं होगी। इसलिए यदि आप योग का अभ्यास करने जा रहे हैं तो सबसे पहले तो उसे समग्रता में समझें और कुछ बातों का ख्ायाल जरूर रखें। सबसे पहले जिक्र उन बातों का ही जो योग के लिए अनिवार्य हैं। ये हैं - धैर्य, संयम, नियमितता और स्वत: अनुशासन। योग में किसी क्रिया का परिणाम तुरंत मिलना शुरू नहीं हो जाता। आपको अपेक्षित परिणाम मिल सके, इसके लिए अधीरता दिखाने के बजाय कुछ दिन धैर्य रखना होगा। खाने-पीने से लेकर दिनचर्या तक के मामले में संयम बरतना अपरिहार्य है। नियमित अभ्यास तो योग में सफलता की कुंजी ही है और यह कडे स्वत: अनुशासन के बगैर संभव नहीं है। वैसे अगर योग को समग्रता में समझा और बरता जाए तो ये चारों तत्व स्वयं ही सध जाते हैं।

भ्रांतियों से मुक्ति जरूरी

इधर कुछ वर्षों में योग के प्रति बढी चेतना ने लोगों की रुचि तो जगाई है, लेकिन इसने एक ख्ातरा भी उत्पन्न किया है। वह है इसका व्यवसायीकरण और इस क्षेत्र में कुछ अगंभीर लोगों के आने के चलते आम लोगों के मन में उत्पन्न होने वाला भ्रम। योग का पूरा लाभ उन्हें ही मिल पाता है जो इसे समग्रता में समझते हुए पूरी तरह निभाने की ईमानदार कोशिश करते हैं। जब हम समग्रता में योग की बात करते हैं तो इसका आशय यह है कि हम इस बारे में सभी तरह की भ्रांतियों और तमाम प्रचलित धारणाओं से मुक्त होकर इसके वास्तविक स्वरूप को समझें। यह जान लेना जरूरी है कि आज के प्रचलित अर्थों के अनुरूप योग केवल एक्सरसाइज, कुछ उछल-कूद या प्राणायाम तक सीमित नहीं है। आजकल स्वयं को योग प्रशिक्षक बताने वाले कुछ लोग 'योगा एंड प्राणायाम के नाम पर पैकेज बेच रहे हैं तो कुछ 'योगा एंड मेडिटेशन करवा रहे हैं और कुछ लोग और भी नए-नए नामों का इस्तेमाल केवल अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कर रहे हैं। इससे ऐसे लोगों के कनफ्यूज होने की आशंका सबसे ज्य़ादा होती है जो योग के बारे में सही जानकारी नहीं रखते। ऐसे लोग प्राय: इन नामों से ही 'योग शब्द का अर्थ केवल आसन या प्राणायाम तक सीमित समझ लेते हैं। जबकि यह वास्तविकता नहीं है। सच यह है कि योग की दोनों मूल और प्राचीन पद्धतियों का केवल एक अंग है - आसन। आसन की ही तरह प्राणायाम और ध्यान (मेडिटेशन) भी इसके अंग ही हैं।

योग की आम जन के बीच सर्वाधिक प्रचलित पद्धति अष्टांग योग के ऐसे ही कुल आठ अंग हैं। ये आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। योग के नए शिक्षार्थी के लिए वस्तुत: ये क्रमबद्ध चरण हैं। इनमें क्रमश: एक को साधे बिना दूसरे का सधना मुश्किल तो है ही, उसका पूरा लाभ मिलना भी संभव नहीं है। लेकिन, जैसे-जैसे आप इसमें आगे बढते जाते हैं आपको मालूम होता है कि ये केवल चरण ही नहीं, आपस में एक-दूसरे से बहुत गहरे स्तर पर जुडे हुए भी हैं। अनुभवी लोग मानते हैं कि एक के बगैर दूसरे का कोई अर्थ नहीं है और यह भी कि क्रमश: आगे बढऩे पर सब आपस में अपने-आप सधे मिलते हैं। तब इनमें से एक-एक के लिए अलग से प्रयास की आवश्यकता नहीं होती। इनमें प्रारंभिक चरण यम और नियम की आम तौर पर चर्चा ही नहीं होती। अधिकतर प्रशिक्षक सीधे आसन से शुरुआत कराते हैं, जिसका आपको लाभ तो मिलता है, लेकिन पूरा नहीं।

आसान हो जाए जीवन

ऐसे ही कुछ लोग आसन-प्राणायाम के बाद सीधे ध्यान पर जा पहुंचते हैं। यह भी न तो सही है और न फायदेमंद। अकसर ऐसे लोगों को या तो काल्पनिक प्रतीतियों से संतुष्ट होना पडता है, या फिर कुछ दिन प्रयास के बाद निराशा हाथ लगती है। योग की इन क्रियाओं का जो लाभ मिलना चाहिए, वह उन्हें नहीं मिल पाता। जिस तरह आसन के पहले यम और नियम के दो चरण हैं, उसी तरह आसन और प्राणायाम के बाद ध्यान के बीच भी दो और चरण आते हैं। ये हैं प्रत्याहार और धारणा। प्राय: योग करने वाले यम-नियम की तरह प्रत्याहार और धारणा को भी नजरअंदाज कर देते हैं। यह अलग बात है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इनका जिक्र और इन्हें पूरा करने की अपेक्षा सभी योग्य इंस्ट्रक्टर करते हैं, लेकिन आम तौर पर इस पर जोर नहीं देते। जबकि इन चारों ही तत्वों के लिए न तो अलग से समय की जरूरत है और न ही इनमें आसनों को साधने जैसी कठिनाई है। इतना जरूर है कि इन्हें साधना बहुत आसान भी नहीं है, पर अगर ईमानदारी से प्रयास किया जाए तो न सिर्फ इन्हें साधना आसान है, बल्कि सध जाने के बाद ये जीवन को इतना आसान बना सकते हैं कि जटिलता के सारे कारण अलविदा हो जाएं।

फिर भी इन पर जोर शायद इसलिए नहीं दिया जाता क्योंकि इन सभी तत्वों का संबंध सीधे हमारे चरित्र और आचरण से है। इनके अंतर्गत जिन बातों को अपनाने की बात की गई है, छल-छद्म के इस उपभोक्तावादी युग में, जहां इंद्रिय भोग ही सब कुछ हो, इनका अनुपालन लोगों को बहुत कठिन लगता है। लोग यह भूल जाते हैं कि यह भोगवृत्ति है, जिसने हमें कई तरह के रोगों के साथ-साथ सामाजिक वंचना का भी शिकार बनाती है। आज जीवनशैली के चलते पैदा होने वाली जो बीमारियां बताई जा रही हैं, उनमें से अधिकतर के मूल में सामाजिक वंचना का भय ही होता है। अगर इन नियमों को जीवन में अपनाते हुए हम योग की साधना करें तो हमें न केवल स्वास्थ्य, बल्कि सुख-समृद्धि भी की प्राप्ति भी होगी। यह जरूर ध्यान रहे कि दूसरी चीजों की तरह इस मामले में भी किसी प्रकार की अति से बचें।

आचरण की शुद्धता है यम

अहिंसा : मन, वचन और कर्म द्वारा किसी को नुकसान न पहुंचाना

सत्य : झूठ न बोलना

अस्तेय : किसी दूसरे की वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा न करना, चोरी न करना

ब्रह्मचर्य : किसी व्यक्ति को वासना भरी नजर से न देखना और किसी के बारे में कुत्सित सोच न रखना

अपरिग्रह : आवश्यकता से अधिक धन-संपत्ति का संग्रह न करना

इष्ट देव सांकृत्यायन

(योगाचार्या प्रतिष्ठा शर्मा से बातचीत पर आधारित)


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