मामूली मर्ज नहीं है थायरॉयड
थायरॉयड अपने आप में कोई बीमारी नहीं, बल्कि ग्लैंड की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी की वजह से पैदा होने वाली समस्या है। चूंकि यह अपने साथ कई अन्य बीमारियां भी ले आती है, अत: इस मामले में सजगता बहुत जरूरी है। आजकल ज्यादातर स्त्रियां थायरॉयड की समस्या से परेशान हैं, पर सही
थायरॉयड अपने आप में कोई बीमारी नहीं, बल्कि ग्लैंड की कार्यप्रणाली में गडबडी की वजह से पैदा होने वाली समस्या है। चूंकि यह अपने साथ कई अन्य बीमारियां भी ले आती है, अत: इस मामले में सजगता बहुत जरूरी है।
आजकल ज्यादातर स्त्रियां थायरॉयड की समस्या से परेशान हैं, पर सही जानकारी के अभाव में वे इसके लक्षणों को पहचान नहीं पातीं। इस समस्या का सही ढंग से समाधान करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि पहले हमें इसकी पूरी जानकारी हो।
क्या है मर्ज
थायरॉयड ग्लैंड हमारे गले के निचले हिस्से में स्थित होता है। इससे ख्ाास तरह के हॉर्मोन टी-3, टी-4 और टीएसएच (थायरॉयड स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन) का स्राव होता है, जिसकी मात्रा के असंतुलन का हमारी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। शरीर की सभी कोशिकाएं सही ढंग से काम कर सकें, इसके लिए इन हॉर्मोंस की जरूरत होती है। इसके अलावा मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया को नियंत्रित करने में भी टी-3 और टी-4 हॉर्मोन का बहुत बडा योगदान होता है। इसीलिए इनके सिक्रीशन में कमी या अधिकता का सीधा असर व्यक्ति की भूख, वजन, नींद और मनोदशा पर दिखाई देता है।
एक समस्या के दो रूप
आमतौर पर दो प्रकार की थायरॉयड संबंधी समस्याएं देखने को मिलती हैं। पहले प्रकार की समस्या को हाइपोथॉयरायडिज्म कहा जाता है। इस में थॉयरायड ग्लैंड धीमी गति से काम करने लगता है और यह शरीर के लिए आवश्यक हॉर्मोन टी-3, टी-4 का निर्माण नहीं कर पाता, लेकिन शरीर में टीएसएच का स्तर बढ जाता है। दूसरी ओर हाइपरथायरॉयडिज्म की स्थिति में थॉयरायड ग्लैंड बहुत ज्य़ादा सक्रिय हो जाता है। इससे टी-3 और टी-4 हॉर्मोन अधिक मात्रा में निकल कर रक्त में घुल जाता है और टीएसएच का स्तर कम हो जाता है। अब तक हुए रिसर्च में यह पाया गया है कि ज्य़ादातर लोगों को हाइपोथायरॉयडिज्म की ही समस्या होती है। यह समस्या लगभग 1 प्रतिशत लोगों में ही देखने को मिलती है।
क्या है वजह
इस समस्या के सही कारणों के बारे में डॉक्टर और वैज्ञानिक अभी तक किसी ख्ाास निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं क्योंकि यह सर्दी-जुकाम की तरह संक्रामक बीमारी नहीं है, न ही इसका संबंध खानपान, प्रदूषण और जीवनशैली आदि से है। चिकित्सा विज्ञान की शब्दावली में इसे ऑटो इम्यून डिजीज कहा जाता है। अर्थात थायरॉयड ग्लैंड से निकलने वाले टी-3, टी-4 हॉर्मोंस और टीएसएच हॉर्मोंस के असंतुलन की वजह से शरीर के भीतर अपने आप इसके लक्षण पनपने लगते हैं। इसके अलावा इन कारणों से भी यह समस्या हो सकती है :
-आनुवंशिकता इसकी प्रमुख वजह है।
-कई बार ऐसा भी होता है कि जन्म के समय शिशु का थॉयरायड ग्लैंड अच्छी तरह विकसित नहीं होता या कुछ स्थितियों में इस ग्लैंड के विकसित होने के बावजूद इससे हॉर्मोन का स्राव नहीं होता। इससे बच्चे में जन्मजात रूप से यह समस्या हो सकती है।
-कुछ ऐसी एंटीबायोटिक और स्टेरॉयड दवाएं होती हैं, जिनके प्रभाव से भी थॉयरायड ग्लैंड से हॉर्मोन का स्राव रुक जाता है। इससे शरीर में हाइपोथायरॉडिज्म के लक्षण दिखने लगते हैं।
हाइपो-थायरॉयडिज्म
प्रमुख लक्षण
-एकाग्रता में कमी, व्यवहार में चिडचिडापन और उदासी
-सर्दी में भी पसीना निकलना
-अनावश्यक थकान एवं अनिद्रा
-तेजी से वजन बढऩा
-पीरियड्स में अनियमितता
-कब्ज, रूखी त्वचा एवं बालों का गिरना
-मिसकैरेज या कंसीव न कर पाना
-कोलेस्ट्रॉल बढऩा
-शरीर और चेहरे पर सूजन
हाइपर-थायरॉयडिज्म
प्रमुख लक्षण
-वजन घटना, बेचैनी और लूज मोशंस
-ज्य़ादा गर्मी लगना, हाथ-पैर कांपना
-चिडचिडापन और अनावश्यक थकान
-पीरियड्स में अनियमितता
बचाव एवं उपचार
-अगर यहां बताए गए लक्षणों में कोई भी लक्षण दिखाई दे तो थायरॉयड की जांच जरूर करवानी चाहिए।
-थायरॉयड की जांच हमेशा किसी विश्वसनीय लैब से करवाएं क्योंकि इसकी रिपोर्ट में गडबडी होने की आशंका रहती है।
-कंसीव करने से पहले हर स्त्री को थायरॉयड की जांच करवा कर उसके स्तर को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। गर्भावस्था में इसके असंतुलन से एनीमिया, मिसकैरेज, जन्म के बाद शिशु की मृत्यु और शिशु में जन्मजात मानसिक दुर्बलता की आशंका बनी रहती है।
-अगर किसी स्त्री में यह समस्या हो तो डॉक्टर से सलाह के बाद उसे नियमित रूप से दवाओं का सेवन करना चाहिए।
-अगर समस्या ज्य़ादा गंभीर हो तो अंतिम विकल्प के रूप में आयोडीन थेरेपी या सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है।
चाहे हाइपो हो या हाइपरथायरॉयडिज्म दोनों ही स्थितियां सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होती है। इसलिए नियमित जांच और दवाओं का सेवन बेहद जरूरी है।
दूर करें कुछ गलतफहमियां
थायरॉयड की समस्या को लेकर लोगों में कई तरह की गलतफहमियां हैं। कुछ स्त्रियां अपने मोटापे के लिए सिर्फ थायरॉयड को जिम्मेदार मानती हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। हाइपोथायरॉयडिज्म की स्थिति में आमतौर पर 3 से 4 किलोग्राम वजन बढता है और थायरॉयड का स्तर सामान्य होने पर वजन भी सामान्य अवस्था में वापस लौट आता है। इसलिए अगर आपका वजन तेजी से बढ रहा हो तो इसके लिए थायरॉयड को दोषी मानकर मोटापे को नजरअंदाज न करें, बल्कि इस विषय में डॉक्टर से सलाह लेकर नियमित एक्सरसाइज और सही खानपान की मदद से बढते वजन को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ स्त्रियों को यह गलतफहमी होती है कि इस समस्या का संबंध खानपान की आदतों से है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। पुराने समय में आयोडीन की कमी को थायरॉयड की वजह माना जाता था, पर आजकल पूरे देश में आयोडीन युक्त नमक का सेवन किया जाता है। इससे लोगों के शरीर को पर्याप्त मात्रा में आयोडीन मिल जाता है। इसी तरह कुछ स्त्रियां साइड इफेक्ट के बारे में सोचकर दवाओं के सेवन से डरती हैं, पर सच्चाई यह है कि थायरॉयड की दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और शरीर में टी-3, टी-4 और टीएसएच हॉर्मोन का स्तर संतुलित रखने के लिए दवाओं का नियमित सेवन बेहद जरूरी है। कुछ स्त्रियां डॉक्टर से सलाह लिए बिना, ख्ाुद थायरॉयड की जांच करवाकर लगातार थायरॉयड की दवा का सेवन करती रहती हैं। ऐसा करना सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। जिन स्त्रियों को यह समस्या होती है, उन्हें हर छह माह के अंतराल पर थायरॉयड की जांच करवाने के बाद डॉक्टर को रिपोर्ट जरूर दिखानी चाहिए क्योंकि थायरॉयड के घटते-बढते स्तर को ध्यान में रखते हुए दवा लेने की सलाह दी जाती है। समस्या न होने पर दवा लेना नुकसानदेह साबित हो सकता है। यह सच है कि ज्य़ादातर स्त्रियों में इसके लक्षण दिखाई देते हैं, पर पुरुषों और बच्चों को भी यह समस्या हो सकती है। इसलिए अगर डॉक्टर का निर्देश हो तो उन्हें भी थायरॉयड की जांच जरूर करवानी चाहिए।
विनीता
(मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली के इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. सुजीत झा से बातचीत पर आधारित)