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हलके में न लें इसे

खर्राटों की समस्या से ग्रस्त लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। उन्हें ऐसा लगता है कि अगर इससे मुझे नहीं, दूसरों को परेशानी होती है तो मैं इसका उपचार क्यों कराऊं? ऐसा सोचना गलत है। खर्राटे भले ही अपने आप में कोई बीमारी न हों पर ये कई गंभीर बीमारियों

By Edited By: Published: Mon, 28 Sep 2015 03:16 PM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2015 03:16 PM (IST)
हलके में न लें इसे

खर्राटों की समस्या से ग्रस्त लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। उन्हें ऐसा लगता है कि अगर इससे मुझे नहीं, दूसरों को परेशानी होती है तो मैं इसका उपचार क्यों कराऊं? ऐसा सोचना गलत है। खर्राटे भले ही अपने आप में कोई बीमारी न हों पर ये कई गंभीर बीमारियों का संकेत देते हैं। इसलिए इनका उपचार बेहद जरूरी है।

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खर्राटे अकसर लोगों के लिए मजाक का विषय बन जाते हैं। इसे लेकर कई तरह के जोक्स प्रचलित हैं। मिमिक्री ऑर्टिस्ट तरह-तरह के खर्राटों की आवाज निकाल कर लोगों को हंसाते हैं। फिल्मों में भी अगर किसी को लापरवाह इंसान के रूप में चित्रित करना होता है तो उसे खर्राटे लेते हुए दिखाया जाता है। इसे लेकर लोगों के मन में ऐसी भ्रामक धारणा बनी हुई है कि खर्राटे का मतलब है चैन की नींद सोना, लेकिन सच्चाई यह है कि इसकी आवाज से कई बार खर्राटा लेने वाले व्यक्ति की भी नींद खुल जाती है। इतना ही नहीं खर्राटे कई गंभीर बीमारियों का संकेत देते हैं, इसीलिए डायबिटीज की तरह इन्हें भी साइलेंट किलर कहा जाता है।

कैसे आते हैं खर्राटे

जीभ और नाक के पीछे स्थित मांसपेशियां अगर किसी वजह से शिथिल पड जाती हैं तो इससे सांस के रास्ते में रुकावट होती है। इसी वजह से यह आवाज पैदा होती है। दरअसल हमारे गले में एक फ्लॉपी जैसी संरचना होती है, जिसे यूवुला (1ह्वद्यड्ड) कहा जाता है। सांस लेने की प्रक्रिया के दौरान गले के इस हिस्से से हवा इस अंदाज में टकराती है, जैसे कोई व्यक्ति पंचिंग बैग पर घूंसा मार रहा हो। इसी वजह से खर्राटे की ध्वनि वाइब्रेट करती हुई बहुत तेज सुनाई देती है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह तथ्य भी सामने आया है कि स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को खर्राटे ज्य़ादा परेशान करते हैं। 40 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को अधिक खर्राटे आते हैं। टॉन्सिल या एडनॉयड (्रस्रद्गठ्ठशद्बस्र) बढऩे की स्थिति में बच्चे भी खर्राटे भरते हैं, लेकिन यह समस्या अस्थायी होती है और इन स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के बाद ख्ार्राटे आने बंद हो जाते हैं।

क्या है वजह

ठ्ठसांस की नली का संकुचित होना

ठ्ठफ्लू, साइनस या एलर्जी की वजह से नाक बंद होने की स्थिति में भी खर्राटे आते हैं क्योंकि ऐसे में व्यक्ति नाक के बजाय मुंह से सांस लेता है और इससे खर्राटे की ध्वनि पैदा होती है।

ठ्ठगले में इन्फेक्शन, सूजन या टॉन्सिल की वजह से भी हवा के मार्ग में रुकावट पैदा होती है, जिससे खर्राटे सुनाई देते हैं। हालांकि इस वजह से पैदा होने वाले खर्राटे एलर्जी के लक्षण ख्ात्म होने के साथ अपने आप दूर हो जाते हैं।

ठ्ठनाक की हड्डी बढऩे की स्थिति में भी ऐसी समस्या हो सकती है।

ठ्ठओबेसिटी यानी अत्यधिक मोटापे की समस्या से ग्रस्त लोगों की सांस की नली में फैट जमा होने की वजह से भी यह परेशानी हो सकती है।

ठ्ठजो लोग नियमित रूप से एल्कोहॉल का सेवन करते हैं, उन्हें भी यह समस्या होती है क्योंकि इसकी अधिक मात्रा सांस की नली की मांसपेशियों को शिथिल कर देती है।

ठ्ठडायबिटीज से ग्रस्त लोगों को भी खर्राटे की समस्या हो सकती है क्योंकि शुगर लेवल बढऩे पर ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और वहां से अधिक मात्रा में स्ट्रेस हॉर्मोन का सिक्रीशन होने लगता है। इस हॉर्मोन के प्रभाव से शरीर के अन्य हिस्सों की तरह सांस की नली की मांसपेशियां संकुचित होने लगती हैं, जो खर्राटे की वजह बन जाती हैं।

ठ्ठआनुवंशिक कारणों से अगर एक परिवार के लोगों के नाक की भीतरी संरचना में समानता हो तो इससे भी खर्राटे की समस्या हो सकती है।

सेहत पर प्रभाव

खर्राटे लोगों की सेहत पर कई तरह से नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ऐसी समस्या से ग्रस्त लोगों में से ज्य़ादातर स्लीप एप्निया यानी अनिद्रा के मरीज होते हैं क्योंकि खर्राटे भरने वाले लोगों की सांस की नली में रुकावट होती है। इससे बार-बार उनकी नींद बाधित होती है। खर्राटे इस बात का संकेत देते हैं कि शरीर की मांसपेशियों में फैट जमा हुआ है। यही फैट हृदय की रक्तवाहिका नलियों में भी जमा हो सकता है, जो हार्ट अटैक की वजह बन सकता है। इसके अलावा खर्राटे की वजह से डायबिटीज या स्ट्रोक की समस्या हो सकती है। खर्राटों को ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) का संकेत माना जाता है। रात को सोते समय सांस में रुकावट की स्थिति को ओएसए कहा जाता है। ऐसे में जब रात को सोते समय सांस नली में पूरी तरह रुकावट आती है। हमारा श्वसन-तंत्र ख्ाून में ऑक्सीजन की आवश्यक मात्रा बनाए रखने के लिए सांस लेने का अतिरिक्त प्रयास करता है। मस्तिष्क शरीर का वह हिस्सा है, जो ऑक्सीजन के प्रति सबसे ज्य़ादा संवेदनशील होता है। ख्ाून में जैसे ही ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है, ब्रेन को तुरंत पता चल जाता है। फिर वह सभी संबंधित अंगों को तत्काल ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए सक्रिय होने का निर्देश देता है। सांस को सामान्य बनाने के लिए यह क्रिया बहुत छोटे अंतराल पर लगातार दोहराई जाती है। इसी वजह से खर्राटों की ध्वनि में एक ख्ाास तरह का लय होता है। कभी खर्राटों की आवाज धीरे-धीरे बढती जाती है, फिर कुछ समय बाद अचानक बंद हो जाती है। यानी, जब खर्राटे की आवाज सुनाई देती है, उस वक्त व्यक्ति का श्वसन तंत्र ब्रेन तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहा होता है। ओएसए की स्थिति में अगर ब्रेन तक ऑक्सीजन पहुंचने में देर हो जाए तो इससे व्यक्ति को पैरालिटिक अटैक या ब्रेन स्ट्रोक जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके अलावा खर्राटे लेने वालों की नींद बाधित होती है। इससे याद्दाश्त में कमी, सिरदर्द, चिडचिडापन और डिप्रेशन जैसी समस्याएं परेशान करने लगती हैं। अब तक किए गए अध्ययनों से यह भी साबित हो चुका है कि ख्ार्राटे की वजह से पति-पत्नी के आपसी रिश्ते भी तनावपूर्ण हो जाते हैं।

क्या है उपचार

अगर खर्राटे की समस्या हो तो स्लीप िफजिशियन से सलाह लेनी चाहिए। इस समस्या से ग्रस्त लोगों के उपचार से पहले पॉलीसॉम्नोग्राफी (क्कशद्य4ह्यशद्वठ्ठशद्दह्म्ड्डश्चद्ध4) के माध्यम से उनकी स्लीप स्टडी की जाती है। इस जांच में सोते समय मस्तिष्क गतिविधियों, सांस की गति, ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल और श्वसन तंत्र द्वारा लगाए जाने वाले बल को रिकॉर्ड किया जाता है। यह जांच अस्पताल में या घर पर भी किसी प्रशिक्षित तकनीशियन द्वारा की जा सकती है। इस समस्या से ग्रस्त लोगों के उपचार के लिए सीपीएपी(कंटिन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर) नामक डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है। यह डिवाइस मास्क की तरह होता है, जिसमें एक सक्शन मशीन लगी होती है और उसकी मदद से सांस की नली में मौजूद रुकावट को हटाया जाता है, जिससे खर्राटे आने बंद हो जाते हैं। अगर समस्या बहुत ज्य़ादा हो तो इसे दूर करने के लिए सर्जरी की भी जरूरत पड सकती है। हालांकि, यह प्रक्रिया काफी जटिल और महंगी होती है। साथ ही इसके साइड इफेक्ट की भी आशंका बनी रहती है।

इसलिए बेहतर यही होगा कि नियमित दिनचर्या, सही खानपान और एक्सरसाइज की आदतें अपना कर इस समस्या से बचाव किया जाए।

विनीता

(आर्टिमिज हॉस्पिटल, गुडग़ांव के रेस्परेटरी क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. हिमांशु गर्ग से बातचीत पर आधारित)


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