Move to Jagran APP

संभाले खुद को

घबराहट, बेचैनी और थोड़ी देर के लिए शरीर और दिमाग का संतुलन खोना आदि पैनिक अटैक के ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें समय पर पहचान कर उनका उपचार ज़रूरी है। कई बार मरीज़्ा अपनी समस्याएं नहीं पहचान पाता, इसलिए ऐसी स्थिति में डॉक्टर की सलाह ज़्ारूरी है।

By Edited By: Published: Mon, 01 Feb 2016 04:41 PM (IST)Updated: Mon, 01 Feb 2016 04:41 PM (IST)
संभाले खुद को

घबराहट, बेचैनी और थोडी देर के लिए शरीर और दिमाग का संतुलन खोना आदि पैनिक अटैक के ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें समय पर पहचान कर उनका उपचार जरूरी है। कई बार मरीज्ा अपनी समस्याएं नहीं पहचान पाता, इसलिए ऐसी स्थिति में डॉक्टर की सलाह ज्ारूरी है।

loksabha election banner

अचानक आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, दिल की धडकन बढऩा, सांस की गति तेज होना आदि कई ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें देखकर अकसर लोगों को दिल के दौरे का भ्रम हो जाता है, पर पैनिक अटैक की वजह से भी ऐसा हो सकता है। अति व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली की वजह से आजकल 25-40 वर्ष की आयु वाले कामकाजी लोगों में भी पैनिक अटैक के लक्षण नजर आ रहे हैं।

क्या है पैनिक अटैक

अचानक किसी बात का डर हावी होने, लंबे समय तक तनावग्रस्त रहने या अधिक असहज होने की स्थिति को पैनिक अटैक माना जाता है, जो परिस्थिति विशेष में दिल की धडकन को असामान्य कर देता है। इसका असर कभी हलका होता है तो कभी यह पैनिक डिसॉर्डर या सोशल फोबिया के रूप में सामने आता है, जो एंग्जायटी डिसॉर्डर का ही एक प्रकार है। इस दौरान रक्त संचार में कमी या तेजी आना, सिहरन और शरीर कांपने जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।

क्या है वजह

इस संबंध में हुए विभिन्न अध्ययनों के अनुसार सटीक तौर पर यह कह पाना मुश्किल है कि ऐसा किस कारण होता है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन के अनुसार, 'यह मस्तिष्क में संवेदना उत्पन्न करने वाले तंतुओं की क्रिया में गडबडी होने के कारण होता है। आनुवंशिक कारणों से भी ऐसा हो सकता है। अगर समस्या की जांच की जाए तो पता चलता है कि लगभग 90 प्रतिशत लोगों में पैनिक डिसॉर्डर की समस्या निराशा, उदासीनता, गहरी चिंता या किसी दुखद याद के कारण होती है। कई बार मरीज सीधे तौर पर चिंता का कारण नहीं खोज पाता। जीवन में आने वाले किसी नए बदलाव से उपजे तनाव या किसी स्थायी चिंता की वजह से भी यह समस्या हो सकती है। ऐसे लोग, जिनमें सिरदर्द अधिक होता है, उनमें पैनिक अटैक जल्दी-जल्दी और लंंबे समय तक असर दिखाता है। कई मरीजों में पैनिक अटैक से एक-दो घंटे पहले भी ऐसे मामूली लक्षण दिखाई देते हैं। वैसे तो आजकल तनाव किसी को भी हो सकता है, लेकिन 25 वर्ष की आयु के बाद पैनिक अटैक के मामले ज्य़ादा नजर आते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार स्त्रियों में पैनिक अटैक की आशंका पुरुषों की तुलना में दोगुनी होती है क्योंकि उन्हें जीवन के हर स्तर पर पुरुषों की तुलना में अधिक तनाव का सामना करना पडता है। इतना ही नहीं ज्य़ादातर स्त्रियां अपनी सेहत के प्रति जागरूक नहीं होतीं। ऐसे में लंबे समय तक तनावग्रस्त रहना उनमें पैनिक अटैक की आशंका को बढा देता है।

कब होता है अधिक ख्ातरा

पैनिक अटैक के प्राथमिक लक्षण जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं के बाद आसनी से नजर आते हैं। जैसे-तलाक, नौकरी छूट जाना या किसी करीबी व्यक्ति की मौत आदि। लंबे समय तक बीमारी झेलने के अलावा कई बार ब्रेकअप के बाद भी युवाओं की ऐसी स्थिति हो जाती है। आमतौर पर ऐसे मामलों में तनाव प्रमुख रूप से देखने को मिलता है। बुुरे हादसे या ट्रॉमा से गुजरने वाले लोगों में भी इसकी आशंका अधिक होती है। पैनिक अटैक के पहले फोबिया से मिलते-जुलते लक्षण दिखाई देते हैं। आत्मविश्वास की कमी, बचपन का कोई बुरा अनुभव और नकारात्मक विचार प्रमुख रूप से इसके कारण हैं। ऐसे लोग पार्टी, बाजार, सिनेमा हॉल और रेलवे स्टेशन जैसी भीड वाली जगहों पर जाने से घबराते हैं। पैनिक अटैक की स्थिति में छोटी-छोटी बातों पर गला सूखना और हाथ-पैर ठंडे पड जाना जैसी समस्याएं अधिक होती हैं। पैनिक अटैक के लक्षण शरीर की अन्य समस्याओं के कारण भी उत्पन्न हो सकते हैं। मसलन हृदय रोग, एस्थमा, सांस लेने में तकलीफ, हॉर्मोन संबंधी असंतुलन, किसी संक्रामक रोग या रक्त संबंधी विकार होने पर भी पैनिक अटैक के लक्षण नजर आते हैं। कुछ दवाओं का साइड इफेक्ट भी ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देता है।

समझें ख्ातरे का संकेत

मुश्किल हालात में कभी-कभी घबराहट होना स्वाभाविक है, लेकिन बार-बार ऐसा होने पर यह पैनिक डिसॉर्डर का रूप ले सकता है। ऐसे में परिवार के सदस्यों और करीबी लोगों की जिम्मेदारी बहुत ज्य़ादा अहमियत रखती है क्योंकि इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति में इतनी समझ नहीं होती कि वह ख्ाुद अपनी बीमारी को पहचान कर उसके उपचार की कोशिश करे। इसलिए अगर आपके आसपास का कोई व्यक्ति बार-बार मृत्यु की बात करे, स्वयं को कष्ट देने लगे, आसपास के लोगों से ही डरने लगे, असामान्य व्यवहार करे या फिर उसे अपनी दिनचर्या से जुडे छोटे-छोटे कार्य करने में भी कठिनाई महसूस हो तो ऐसी स्थिति में मनोवैज्ञानिक से सलाह लेना जरूरी है। घबराहट के समय शरीर में कई बदलाव होते है, लेकिन हर स्थिति को पैनिक अटैक नहीं कहा जा सकता। ज्य़ादातर मरीजों की दशा में काउंसलिंग से ही सुधार आने लगता है। कुछ स्थितियों में एंटी डिप्रेजेंट्स और रिलेक्सेंट दवाएं भी दी जाती हैं।

अगर शुरुआत से ही सजगता बरती जाए तो इस समस्या को आसानी से दूर किया जा सकता है। कैसे करें बचाव

उपचार से बेहतर है बचाव। इसलिए बेहतर यही होगा कि अगर किसी व्यक्ति में पैनिक डिसॉर्डर के लक्षण दिखाई दें तो शुरुआत से ही इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :

-तनाव को ख्ाुद पर हावी न होने दें। पैनिक डिसॉर्डर का मूल कारण तनाव है। इससे बचने के लिए लोगों से मिलने-जुलने, सामाजिक उत्सवों में शामिल होने, घूमने-फिरने और आराम के लिए समय जरूर निकालें।

-जब भी पैनिक अटैक का एहसास हो तो शांति से बैठ कर गहरी सांस लें। इससे शरीर व दिल की धडकनें सामान्य हो जाएंगी। जल्दी-जल्दी सांस लेना शरीर को अव्यवस्थित कर देता है। लंबे समय तक ऐसा करने पर रक्त संचार भी तेज हो जाता है, जिससे उत्तेजना बढ जाती है। इसलिए सबसे पहले खुद को शांत करने की कोशिश करें।

-जब भी इस तरह की समस्या हो तो सबसे पहले एक ग्लास ठंडा पानी पीएं। इससे शरीर सामान्य स्थिति में आ जाएगा।

-अटैक के बाद जब व्यक्ति की मन:स्थिति सामान्य हो जाए तो उसे अपनी दिनचर्या पर गौर करते हुए यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ? असली कारण ढूंढना बहुत जरूरी है। इसके बाद अटैक को रोकना आसान हो जाएगा।

-एल्कोहॉल या अधिक मात्रा में नींद की दवाओं का सेवन भी अटैक का कारण हो सकता है। इसलिए ऐसी आदतों से दूर रहने की कोशिश करें।

-पैनिक अटैक की समस्या से निजात पाने के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है। कई बार यह समस्या अव्यवस्थित दिनचर्या की वजह से भी होती है। इसलिए नियमित रूप से मॉर्निंग वॉक और योगाभ्यास करें। आठ घंटे की नींद लें। इससे तनाव कम होगा और शारीरिक-मानसिक स्फूर्ति भी बढेगी।

-अगर हमेशा रहने वाली बेचैनी आपकी सामान्य दिनचर्या पर असर डाल रही है तो डॉक्टर से सलाह लें।

-हर बार यह समस्या केवल मानसिक तनाव की वजह से नहीं होती। मन के अलावा इसका संबंध शरीर की किसी समस्या से भी जुडा हो सकता है। ऐसे में जनरल िफजिशियन भी मरीज की स्थिति देखकर उसे सही सलाह दे सकता है कि वाकई वह व्यक्ति पैनिक अटैक की समस्या से ग्रस्त है या ऐसा ब्लडप्रेशर , डायबिटीज या किसी अन्य शारीरिक कारण से हो रहा है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर से सलाह लेने में संकोच न बरतें।

-पैनिक अटैक के उपचार में बिहेवियर थेरेपी के अलावा दवाओं की भी मदद ली जाती है। अटैक के बाद अपनी दिनचर्या में बदलाव लाकर भी इस समस्या से बचा जा सकता है।

- परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग पूर्ण रवैया मरीज को शीघ्र स्वस्थ करने में मददगार होता है।

सखी फीचर्स

इनपुट्स, डॉ. आरती आनंद सीनियर साइकोलॉजिस्ट कंसल्टेंट, सर गंगाराम हॉस्पिटल, दिल्ली


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.