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इंसुलिन की नई गोली सुई के दर्द से बचाएगी

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इंसुलिन की एक नई गोली विकसित की है, जिससे डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन की सुई लगाने की जरूरत नहीं रहेगी।

By Edited By: Published: Mon, 10 Oct 2016 04:52 PM (IST)Updated: Mon, 10 Oct 2016 04:52 PM (IST)
इंसुलिन की नई गोली सुई के दर्द से बचाएगी
इंसुलिन की नई गोली सुई के दर्द से बचाएगी अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इंसुलिन की एक नई गोली विकसित की है, जिससे डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन की सुई लगाने की जरूरत नहीं रहेगी। फिलहाल दुनिया भर में डायबिटीज के करोडों मरीजों को हर दिन अपने शरीर में इंसुलिन की सुई खुद ही लगानी पडती है। यह काम काफी तकलीफदेह होता है लेकिन रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित रखने के लिए उन्हें यह करना ही पडता है। शोधकर्ता कोलेस्टेटिस नामक पदार्थ की मदद से इंसुलिन को एक कैप्सूल के अंदर रखने में सफल रहे हैं। इस तरह बनाई गई गोली को किसी अन्य गोली की तरह आसानी से निगला जा सकता है। यह पेट में जाने के बाद इंसुलिन को जारी कर सकती है इसलिए इस गोली का इस्तेमाल करने पर इंसुलिन की सुई लेने की जरूरत नहीं रह जाएगी। कोलेस्टेटिस एक कुदरती और लिपिड नामक वसा आधारित कण है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इंसुलिन में मुश्किल यह थी कि इसे पेट से होकर गुजरना पडता। पेट का वातावरण अम्लीय होता है, जिसमें इंसुलिन जैसा प्रोटीन टिक नहींसकता। ऐसे में वह आंतों तक पहुंचने से पहले ही विघटित हो जाता है और रक्त तक पहुंच नहींपाता, जहां उसकी जरूरत होती है। इस गोली के सेवन से उनकी इस समस्या का समाधान हो सकेगा। यह इंजेक्शन की तुलना में ज्य़ादा असरदार है। ग्रीन टी से धमनियों में सूजन नहीं होगी ग्रीन टी पीने से धमनियां दुरुस्त रहती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक कई बार किडनी के निचले भाग की धमनी में सूजन से व्यक्ति की जान जा सकती है। टोक्यो की क्योटो यूनिवर्सिटी के शोधकताओं के मुताबिक ग्रीन टी में मुख्य रूप से प्राकृतिक और रासायनिक तत्व पॉलीफेनोल मौजूद होता है। यह धमनियों को फैलने और उनमें सूजन होने से रोकता है। शोधकर्ता केंजी मिनाकाटा के अनुसार, रप्चर्ड एब्डॉमिनल एऑर्टिक एन्युरिज्म (किडनी के नीचे की धमनी में सूजन) की स्थिति में धमनियों का प्रसार कई बार धीरे होता है। अकसर पता तब चलता है, जब वह फट जाती है और व्यक्ति की मौत हो जाती है। जापान में लगभग 80 फीसदी लोग रोजाना ग्रीन टी पीते हैं। परिवार के संग रहने वाले दीर्घायु क्या आप जानना चाहते हैं कि दीर्घायु कैसे बना जा सकता है? यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के डाला लाना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोध के मुताबिक, जो लोग परिवार के साथ रहते हैं वे ज्य़ादा समय तक जीते हैं। शोधकर्ता जेम्स लेवनीक का मानना है कि इसकी वजह परिवार से मिलने वाली भावनात्मक सुरक्षा हो सकती है। दोस्तों-संबंधियों के साथ रहने पर ऐसा नहीं होता। परिवार के संग रहने से जीने की क्षमता बढती है। पैच जो रखे दिल की धडकन पर नजर कैलिफोर्निया में वैज्ञानिकों ने एक छोटी सी पट्टी बनाई है, जो दिल की धडकन पर नजर रखेगी। इससे दिल की धडकन की समस्याओं से जूझ रहे लोगों को बचाने में मदद मिलेगी। इस पट्टी को जियो पैच नाम दिया गया है। यह आसानी से त्वचा पर चिपकाई जा सकती है। इसमें बेहद पतली इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली लगी हुई है जो दिल की धडकन की निगरानी करती है। शोधकर्ताओं ने कहा, यह उन लोगों के लिए काफी मददगार हो सकती है, जिन्हें दिल की बीमारी है। इस बीमारी में व्यक्ति के दिल की धडकन की रफ्तार उसकी उम्र के हिसाब से सामान्य नहीं रहती। धडकन सामान्य से कम या ज्य़ादा हो सकती है, जिससे बेहोशी, सांस लेने में परेशानी, घबराहट, कंपकंपी और आघात जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यहां तक कि इससे व्यक्तिकी अचानक मौत होने का खतरा रहता है। इसे कंट्रोल करने के लिए जियो पैच को त्वचा पर दो सप्ताह तक 24 घंटे तक लगाना पडेगा। इसके इलेक्ट्रोड त्वचा को इसमें लगी इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली से जोड देंगे, जो दिल की धडकन से निकलने वाली विद्युतीय गतिविधि को दर्ज करते हैं। इस डाटा की मदद से तुरंत इलाज करना संभव हो जाएगा। नई स्कैनिंग से फेफडों का इलाज ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने फेफडों की चार आयामी स्कैनिंग की एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो सांस से जुडी समस्याओं से पीडित मरीजों का अधिक सटीक तरीके से उपचार करने में सहायक हो सकती है। यह स्कैनर फेफडों के ऊतकों की गति और फेफडों के द्वारा हवा के प्रवाह की हाई रिजॉल्यूशन छवियां उतारने में सक्षम है। ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया स्थित मोनाश यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता एट्रियस फौरस का दावा है कि उनका स्कैनर फेफडों की सटीक तसवीर पेश करता है, जिससे सही इलाज में मदद मिलेगी। रोबोट शरीर में प्रवेश कर उपचार करेगा आने वाले समय में इलाज के लिए आपको अस्पताल की लंबी-लंबी कतारों में खडे होने की जरूरत नहीं पडेगी। डॉक्टरों के काम का बोझ कम करने के लिए अब मेडिकल विशेषज्ञ रोबोट तैयार किए गए हैं। स्विट्जरलैंड में ऐसे ही तीन रोबोट बनाए गए हैं, जो शरीर में घुसकर बीमारी का इलाज करेंगे। वहीं एक सूक्ष्म सुई संक्रमण के मरीजों को बिना दर्द दिए उनके रक्त की पल-पल की खबर डॉक्टरों को देगी। इसके अलावा ये रोबोट मांसपेशियों में तनाव का उपचार भी करेंगे। एक दिन में छह चम्मच चीनी काफी बच्चों को मीठा काफी पसंद होता है लेकिन अधिक चीनी से स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने बच्चों को एक दिन में छह चम्मच से ज्य़ादा चीनी न देने की सलाह दी है। उन्होंने यह सलाह 2-18 वर्ष की आयु-सीमा वाले लोगों के लिए दी है। सर्कुलेशन जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र में शोधकर्ताओं ने कहा कि बच्चों के आहार में चीनी की मात्रा को नियंत्रित करना एक अहम सार्वजनिक स्वास्थ्य लक्ष्य है। शोधकर्ताओं ने बच्चों के दिल के स्वास्थ्य पर चीनी के प्रभावों से जुडे लगभग 100 अध्ययनों का विश्लेषण किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वास्थ्य और पोषण परीक्षण सर्वे के आहार संबंधी आंकडों का विश्लेषण भी किया और देखा कि बच्चों के आहार में प्रतिदिन 25 ग्राम से ज्य़ादा चीनी डाली जाती है जबकि 10 फीसदी से अधिक चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

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