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ठीक नहीं है लापरवाही

बारिश के बाद बदलते मौसम में अकसर लोग आई फ्लू से परेशान हो जाते हैं। अगर थोड़ी सजगता बरती जाए तो इस संक्रामक बीमारी से बचाव संभव है।

By Edited By: Published: Fri, 09 Sep 2016 12:32 PM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2016 12:32 PM (IST)
ठीक नहीं है लापरवाही
आपने भी इस बात पर गौर किया होगा कि बारिश के बाद निकलने वाली तेज धूप में ज्य़ादातर लोग सन ग्लासेज पहने नजर आते हैं। दरअसल नियमित रूप से सनग्लासेज पहनना इनकी आदत में शामिल नहीं होता, बल्कि ऐसे लोग इस संक्रामक बीमारी से बचाव के लिए सनग्लासेज का इस्तेमाल करते हैं। क्या है मर्ज कंजक्टिवाइटिस एक खास तरह के एलर्जिक रिएक्शन की वजह से होता है लेकिन कई मामलों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। श्वसन तंत्र या नाक-कान, गले में संक्रमण के कारण भी लोगों को वायरल कंजक्टिवाइटिस हो जाता है। इस संक्रमण की शुरुआत एक आंख से ही होती है लेकिन जल्द ही दूसरी आंख भी इसकी चपेट में आ जाती है। क्यों होता है ऐसा आंखों के इस संक्रमण को पिंक आई या कंजक्टिवाइटिस के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो यह कोई खतरनाक बीमारी नहीं है लेकिन आंखों का संक्रमण होने के कारण ज्य़ादा तकलीफ देह हो जाती है। दरअसल बरसात खत्म होने के बाद भी वातावरण में मौजूद नमी, फंगस और मक्खियों की वजह से बैक्टीरिया को तेजी से पनपने का अवसर मिलता है। आंखों का सफेद हिस्सा, जिसे कंजक्टिवाइवा कहा जाता है, बैक्टीरिया या वायरस के छिपने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान होता है। इसी वजह से सितंबर-अक्टूबर के महीने में लोगों को आई फ्लू की समस्या होती है। इसके अलावा बदलते मौसम में वायरस ज्य़ादा सक्रिय होते हैं, जिससे आई फ्लू की आशंका बढ जाती है। प्रमुख लक्षण आंखों में लाली और जलन लगातार पानी निकलना आंखों में सूजन पलकों पर चिपचिपाहट आंखों में खुजली और चुभन अगर इन्फेक्शन गहरा हो तो यह कॉर्निया के लिए नुकसानदेह होता है। इससे आंखों की दृष्टि भी प्रभावित हो सकती है। इसलिए जल्द से जल्द डॉक्टर की सलाह लें। ज्य़ादा गंभीर स्थिति में आई हैमरेज की भी आशंका हो सकती है। बचाव एवं उपचार आई फ्लू से निजात पाने के लिए एंटिबाइटल ऑइंटमेंट और ल्यूब्रिकेटिंग आई ड्रॉप की जरूरत होती है। इसलिए डॉक्टर की सलाह के बगैर अपने मन से या केमिस्ट से पूछ कर कोई दवा न लें। अपने हाथों को नियमित रूप से हैंडवॉश से साफ करते रहें। आंखों की सफाई का पूरा ध्यान रखें और उन्हें ठंडे पानी से बार-बार धोएं। किसी भी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें। ऐसी समस्या होने पर बार-बार आंखों पर हाथ न लगाएं। आई ड्रॉप डालने से पहले हाथों को अच्छी तरह धो लें। आंखों पर बर्फ की सिंकाई भी जलन और दर्द से राहत दिलाती है। जहां तक संभव हो, भीड वाली जगहों पर जाने से बचें। संक्रमित व्यक्ति से हाथ न मिलाएं। उसका चश्मा, तौलिया, तकिया आदि न छुएं। इसी तरह अपनी पर्सनल चीजें भी दूसरों के साथ शेयर न करें। बारिश के मौसम में स्विमिंग भी आंखों और त्वचा के लिए नुकसानदेह होती है। अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए तो एक सप्ताह से पंद्रह दिनों के भीतर यह समस्या दूर हो जाती है। विनीता इनपुट्स : डॉ. रोहित सक्सेना, एडिशनल प्रोफेसर, ऑप्थोमोलॉजी डिपार्टमेंट, एम्स, दिल्ली

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