मेनोपॉज जब झटके से बार-बार खुले नींद
थकान के बावजूद नींद ठीक से नहीं आती। एकाएक सांस लेने में मुश्किल हो जाती है और नींद खुल जाती है। कई बार खर्राटों के कारण भी नींद खुलती है। कुछ ऐसे ही लक्षण होते हैं अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया के। आमतौर पर पुरुषों को घेरने वाली इस समस्या से मेनोपॉजके
थकान के बावजूद नींद ठीक से नहीं आती। एकाएक सांस लेने में मुश्किल हो जाती है और नींद खुल जाती है। कई बार खर्राटों के कारण भी नींद खुलती है। कुछ ऐसे ही लक्षण होते हैं अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया के। आमतौर पर पुरुषों को घेरने वाली इस समस्या से मेनोपॉजके दौरान स्त्रियां भी परेशान हो सकती हैं। समस्या को समझें और उससे बचने के तरीके जानें एक्सपर्ट से।
वैसे तो अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया की समस्या पुरुषों को ज्यादा परेशान करती है, लेकिन मेनोपॉज के दौरान स्त्रियों में तेज्ाी से इसके लक्षण दिखने लगते हैं। ख्ाासतौर पर ओवरवेट और नाक बंद होने जैसी समस्या से ग्रस्त स्त्रियां इससे ज्य़ादा परेशान होती हैं। नींद रात में कई बार खुल जाती है, कभी सांस लेने में दिक्कत होती है और कभी अपने ही खर्राटों से नींद खुल सकती है। आमतौर पर इसे एक सामान्य समस्या ही समझा जाता है लेकिन लंबे समय तक यह समस्या बनी रहे तो गंभीर रूप भी ले सकती है।
हॉर्मोनल बदलाव भी है वजह
अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) की समस्या यूं तो बच्चों से लेकर बुज्ाुर्गों तक को हो सकती है, लेकिन मेनोपॉजके दौरान स्त्रियों में इसके लक्षण अधिक परेशानी पैदा करते हैं। इसका कारण हैं हॉर्मोनल असंतुलन। मेनोपॉजके दौरान स्त्रियों को कई तरह के शारीरिक-मनोवैज्ञानिक बदलावों से गुज्ारना पडता है। इसके कारण बेचैनी, स्लीप एप्निया, घबराहट, हॉट फ्लैशेज (अत्यधिक गर्मी या सर्दी महसूस होना, चेहरा लाल होना, पसीना आना) जैसी समस्याएं होने लगती हैं। अचानक रात में नींद खुलती है और दिन भर थकान महसूस होती है। ऐसा एस्ट्रोजन का स्तर घटने से होता है। हॉट फ्लैशेजकी समस्या लगभग तीन वर्ष तक रह सकती है। हालांकि कुछ स्त्रियों को यह समस्या पांच साल तक भी सताती है। मेनोपॉजके बाद स्त्रियों में स्लीप डिसॉर्डर अधिक दिखता है। रात में कई बार नींद खुलती है। लगभग 60 प्रतिशत स्त्रियों को स्लीप एप्निया की शिकायत हो सकती है।
लक्षण
इन्सोम्निया में नींद नहीं आती और रात करवटें बदलते गुज्ार जाती है, जबकि स्लीप एप्निया में नींद आती तो है, मगर रात में झटके से कई-कई बार खुलती है। अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया में मरीजसांस लेने में परेशानी का अनुभव करता है, जिससे रात में उसकी नींद खुलती रहती है। सुबह जागने पर ताज्ागी महसूस नहीं होती और दिन भर थकान महसूस होती है।
ओएसए के ख्ाास लक्षण हैं-
1. खर्राटे लेना, नींद डिस्टर्ब होना और करवट बदलते रहना
2. दम घुटने का एहसास होना, सोते-सोते झटके से उठ जाना और सांस लेने में परेशानी
3. गला चोक होना, गला सूखना या ख्ाराश महसूस होना
4. रात में मुंह सूखना
5. दांत किटकिटाना, भींचना या पीसना
6. बार-बार यूरिनेशन महसूस होना
7. दिन भर झपकी आना, काम करते हुए सो जाना।
8. एकाग्रता में कमी आना, चिडचिडाहट और डिप्रेशन
9. सुबह उठने पर सिर दर्द या सिर में भारीपन का एहसास
10. बच्चों में इसके लक्षण बिस्तर गीला करने, पसीना आने, लर्र्निंग और बिहेवियरल डिसॉर्डर, खर्राटे, दांत पीसने और अजीब पॉज्िाशन में सोने के रूप में दिखाई देते हैं।
रिस्क फैक्टर
शरीर के पूरे सिस्टम पर इसका असर पडता है। इसके कारण ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, स्ट्रोक जैसी समस्याएं बढती हैं। हालांकि पुरुषों में ये समस्याएं ज्य़ादा देखने को मिलती हैं। यह समस्या उन लोगों को ज्य़ादा होती है, जिनका बीएमआइ (बॉडी मास इंडेक्स) ज्य़ादा हो, गर्दन छोटी हो और जो लोग स्मोकिंग या एल्कोहॉल के आदी हों। ओएसए की समस्या इन्सोम्निया से ज्य़ादा गंभीर है। अभी भारत में ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है, जिसमें यह पता लग सके कि क्या इसके कारण किसी की मौत भी हो सकती है। लेकिन कई बार देखा गया है कि नींद में ही किसी की मौत हो गई। ऐसे लोग अधिकतर वे रहे हैं, जिन्हें उच्च रक्तचाप, हार्ट प्रॉब्लम्स या अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया की समस्या है। स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को यह प्रॉब्लम ज्य़ादा होती है। मगर स्त्रियों को प्रेग्नेंसी, पोस्ट मेनोपॉज्ा, ओबेसिटी की स्थिति में इसकी आशंका अधिक होती है। यह समस्या आनुवंशिक भी हो सकती है। ज्ारूरत से ज्य़ादा लंबी जीभ वालों, स्मोकिंग और एल्कोहॉल का सेवन करने वालों, ब्लड प्रेशर के मरीज्ाों को भी यह समस्या अधिक घेरती है। बच्चों को टॉन्सिल्स में सूजन के कारण भी ओएसए जैसी समस्या हो सकती है।
क्या हैं आशंकाएं
सही समय पर इस परेशानी को न समझा जाए तो इससे कई ख्ातरे पैदा हो सकते हैं।
इससे रक्त में ऑक्सीजन की कमी, उच्च रक्तचाप और कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम पर अतिरिक्त दबाव पडऩे की समस्याएं आम होती हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि उच्च रक्तचाप वाले मरीज्ाों में इसकी शिकायत ज्य़ादा होती है, जिससे हृदय रोग होने की आशंका होती है। ओएसए की समस्या गंभीर होने पर कोरोनरी आर्टरी डिज्ाीज्ा, स्ट्रोक या अचानक हार्ट अटैक की आशंका हो सकती है। इसके अलावा इसके मरीजरात में बहुत खर्राटे लेते हैं, जिसकी वजह से घर के अन्य सदस्यों की नींद भी डिस्टर्ब होती है।
इलाज के तरीके
इसके लिए स्लीप स्टडी या पॉलीसोम्नोग्राफी टेस्ट किया जाता है, जिसके अंतर्गत पल्स ऑक्सीमेट्री (ऑक्सीजन), मस्तिष्क की तरंगें (ईईजी), दिल की धडकन (ईकेजी), सीने और आंखों की पूरी जांच की जाती है। कई स्तरों पर मरीजकी जांच कर उसके स्लीपिंग पैटर्न को समझने की कोशिश की जाती है। यदि सही समय पर समस्या को पहचान लिया जाए तो इलाज से काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। आजकल एक डिवाइस भी है, जिसे उंगलियों और बांहों में लगाया जाता है, जिससे स्लीपिंग पैटर्न को चेक किया जा सके। एक पोर्टेबल डिवाइस भी आता है, जिससे हवा की आवाजाही को सुगम बनाया जाता है। इससे नींद के दौरान हवा आती रहती है और सांस लेना आसान होता है। कुछ प्लास्टिक डिवाइस भी होते हैं, जिन्हें मुंह में लगाया जाता है। ये सपोर्ट माउथ गाड्र्स की तरह होते हैं, जिनसे सांस लेने की प्रक्रिया को आसान बनाया जाता है। मेडिकेशन के अलावा कई बार फेशियल सर्जरी की भी ज्ारूरत पड सकती है। इसमें नाक, तालू, ज्ाुबान, जीभ, तालू, गर्दन की समस्याओं को दूर किया जाता है। इनमें सबसे लोकप्रिय लेज्ार सर्जिकल प्रक्रिया है।
ताकि अच्छी आए नींद
इसके लिए कई स्तरों पर काम करना ज्ारूरी है। लाइफस्टाइल में ज्ारूरी बदलावों सहित खानपान पर ध्यान देने से भी समस्या में सुधार आ सकता है। इस समस्या से बचने के कुछ उपाय हैं-
1. अपनी स्लीपिंग पॉज्िाशन को ठीक करें। पेट के बल सोने से सांस लेने में परेशानी हो सकती है, इसलिए साइड करवट लेकर या पीठ के बल सोएं।
2. स्मोकिंग और एल्कोहॉल को जीवन से दूर करें।
3. मेनोपॉजके दौरान खानपान संतुलित रखें और वज्ान को बिलकुल न बढऩे दें।
4. मेनोपॉज के दौरान हॉर्मोंस में बदलाव के कारण शरीर में चर्बी का दबाव बढऩे लगता है, इसलिए इस समय नियमित एक्सरसाइजसे समस्याओं को कम किया जा सकता है।
5. डाइट में प्रोटीन भरपूर रखें, कार्ब और फैट को आधा कर दें।
6. सकारात्मक रहें, ख्ाुद को चुस्त-दुरुस्त रखें और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें।
7. ख्ाूब पानी पिएं और लिक्विड डाइट बढाएं।
8. हरी पत्तेदार सब्जियों, सूप, सैलेड और दही को डाइट में जरूर शामिल करें।
9. प्राणायाम की कई विधियां इसमें बहुत कारगर हैं। कुशल योग एक्सपर्ट की मदद से इन्हें सीखें।
10. ध्यान करें, नियमित वॉक और व्यायाम करने से भी समस्या में आराम मिलता है।
(फोर्टिस हॉस्पिटल, वसंत कुंज दिल्ली में पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर व हेड डॉ. विवेक नांगिया से बातचीत पर आधारित)
इंदिरा राठौर