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करें तन और मन को तरोताजा

धूप की अल्ट्रावॉयलेट किरणों के कारण डिहाइड्रेशन, पिग्मेंटेशन और रैशेज जैसी कई समस्याएं होने लगती हैं। इनसे निजात पाने के लिए समर स्पा बहुत ज़रूरी है।

By Edited By: Published: Mon, 10 Apr 2017 04:42 PM (IST)Updated: Mon, 10 Apr 2017 04:42 PM (IST)
करें तन और मन को तरोताजा

गर्मी के मौसम में धूप या धूल-मिट्टीके कारण शरीर में थकावट और दर्द सा होने लगता है। धूप की अल्ट्रावॉयलेट किरणों के कारण डिहाइड्रेशन, पिग्मेंटेशनऔर रैशेज जैसी कई समस्याएंहोने लगती हैं। इनसे निजात पाने के लिए समर स्पा बहुत जरूरीहै।

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हेल्थ व ब्यूटीके लिए इन दिनों स्पाका बहुत क्रेज है। इसमें कई तरह की मसाज,बाथ, योग और मेडिटेशन के जरिये शरीर से टॉक्सिंसको बाहर निकाला जाता है। स्पामें तमाम प्राकृतिकचीजें इस्तेमाल की जाती हैं। इसमें मसाजके जरिए मसल्सपर एक खास तरह का प्रेशर डाला जाता है, जिससे तनाव और थकान दूर होती है। जिसके कारण फिजिकल और मेंटल हेल्थ ठीक रहती है।

क्या है स्पा स्पाशब्द लैटिन भाषासे आया है, जिसका मतलब है मिनरल्ससे भरपूर पानी में स्नान। स्पाथेरेपी यूरोपीय देशों से शुरू हुई और धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गई। स्पा में बॉडी मसाज, बॉडीरैप,सॉना बाथ और स्टीम बाथ शामिल हैं। अगर रिलैक्सहोने के लिए स्पालेना चाहती हैं तो आप इसका चुनाव कर सकती हैं। इसमें आपकी सेहत और खूबसूरती को बेहतर करने और रिलैक्सेशनके लिए दी जाने वाली थेरेपी शामिल होती है। अगर आप इसे किसी बीमारी के इलाज के तौर पर कराना चाहते हैं तो आयुर्वेदिक डॉक्टर से पूछ कर कराएं। जीवनशैली से जुडी समस्याओंजैसे कि नींद न आना, मोटापा, जोडों में दर्द, बाल झडऩा, डिप्रेशन,मुंहासे आदि का इलाज स्पाथेरेपीसे किया जाता है।

स्पाके फायदे -तनाव कम कर मन को रिलैक्सकरता है। -तन और मन को तरोताजा करता है। -ब्लड सर्कुलेशनठीक करता है। -शरीर से टॉक्सिंस को बाहर निकालने में मदद करता है। -शरीर में कसावट लाकर बुढापे की रफ्तार धीमी करता है। -जोडों में लचीलापन लाता है।

किस उम्र में कराएं आमतौर पर 12साल की उम्र से पहले स्पाकराने की सलाह नहीं दी जाती है। दरअसल, इस उम्र में बच्चे का शरीर काफी नाजुक होता है। तेज मालिश आदि से उसे नुकसान हो सकता है। 12से 18साल के बीच कुछ ही तरह की थेरेपीदी जाती हैं जैसे कि मसाज,शिरोधारा,सॉनाबाथ। 18साल या इससे ज्य़ादा की उम्र में कोई भी स्पाथेरेपी करा सकते हैं।

स्पाके प्रकार स्पादो तरह का होता है। मेडिकल स्पा और ब्यूटी स्पा।

ब्यूटी स्पा इसमें मसाजसबसे खास है। मसाजया मालिश करीब 45मिनट से एक घंटे तक की जाती है। यह कई तरह की होती है : स्वीडिश मसाज:शरीर पर गोल-गोल मूवमेंट के साथ आराम से मसाजकी जाती है। यह काफी सॉफ्टहोती है इसलिए आमतौर पर स्त्रियां इसे कराना पसंद करती हैं। बालिनिज मसाज :इसमें काफी प्रेशर लगाकर मसाजकी जाती है। ज्यादा एक्यूप्रेशर पॉइंट्सपर होता है। इंडोनेशियनमसाज :इसमें इंडोनेशियन ऑयल यूज होते हैं। प्रेशर मीडियम होता है। थाई मसाज:यह मसाजके सबसे पुराने तरीकों में से है। इसे ड्राई मसाजभी कहा जाता है क्योंकि तेल के बजाय इसमें पाउडर का इस्तेमाल होता है। डीप टिश्यू मसाज :इसमें प्रेशर काफी ज्य़ादा होता है। आमतौर पर स्पोट्र्सपर्सनऔर जिमजाने वाले लोग इसे कराना पसंद करते हैं। इसमें जोडों का लचीलापन बढता है। फेशियल डर्मा : इसके लिए ट्रेनिंग जरुरी है। एक्सपर्ट शरीर के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग प्रेशर के साथ दबाकर मसाज करते हैं। ध्यान रखें : खाली पेट कराएं। ब्रेकफस्टके कम से कम डेढ घंटे बाद और लंच के ढाई घंटे बाद ही इसे कराएं। शिरोधारा कई तेलों को मिलाकर तेल तैयार किया जाता है, जिसे सिर पर एक धारा के रूप में करीब 45से 60मिनट तक गिराया जाता है। इसमें महानारायणतेल, नीलभृंगादि और तिल का तेल यूज करते हैं, जिन्हें अलग-अलग तेल मिलाकर तैयार किया जाता है। इससे शरीर रिलैक्सहोता है और एकाग्रताबढती है। वैसे स्पामें मसाजके लिए गुलाब, चमेली, लैवेंडर,लोटस औरनीम आदि के तेल का भी इस्तेमाल होता है। ध्यान रखेें : इस दौरान आंखें न खोलें। स्टीम बाथ इसमें एक चैंबर या कमरा होता है, जिसमें पानी को उबाला जाता है। कस्टमर को इसमें बैठा दिया जाता है। इसमें बैठने के बाद मूवमेंट मुमकिन नहीं है। आमतौर पर 25-30मिनट स्टीम दी जाती है। स्टीम चैंबर ऑनलाइनभी मिलते हैं। ये करीब 2000 रुपये से शुरू होते हैं। इनसे घर में ही स्टीम ले सकती हैं। ध्यान रखें : स्टीम लेने से पहले 1ग्लास नॉर्मलपानी पिएं।अंदर भी पानी की बॉटलले जाएं और बीच-बीच में पानी पीते रहें। स्टीम लेने के दौरान सिर के ऊपर या गर्दन के पीछे एक गीला टॉवलरखना चाहिए। इसे कोल्ड कंप्रेसरकहते हैं। यह बेचैनी और चक्कर आदि से राहत दिलाएगा। इसमें ड्राई हीट होती है। इसमें एक बडा सा बंद कमरा होता है। कोयले से पत्थरों को गर्म किया जाता है। इसमें घूमने-फिरने या बैठने और लेटने का विकल्प होता है। सॉनाभी आमतौर पर 25-30मिनट किया जाता है। जकूजी इसमें एक बडे बाथ टब में बिठाया जाता है, जिसमें चारों तरफ से जगह-जगह लगे जेट में से गुनगुने पानी की तेज धाराएं शरीर पर पडती हैं। यह करीब 20-30मिनट तक कराया जाता है। ध्यान रखें : यहां भी स्टीम वाली ही सावधानियां बरतें। इसमें ज्य़ादा गर्मी के कारण बेचैनी और घबराहट महसूस हो सकती है। शुरुआत में इसे थोडी देर ही करें।

मेडिकल स्पा इसके जरिए आमतौर पर लाइफस्टाइलसे जुडी बीमारियों का इलाज किया जाता है। इस ट्रीटमेंट के दौरान आयुर्वेदिक डॉक्टर का वहां मौजूद होना बहुत जरुरी है। इस इलाज के दौरान आमतौर पर मेडिकेटेडऑयल (जडी-बूटियों आदि मिलाकर तैयार किया गया) से मसाजकी जाती है, जिसे अभ्यंगमकहा जाता है। इसमें 1या 2लोग मिलकर फुलबॉडीमसाजकरते हैं।

पंचकर्म आयुर्वेद में इलाज के लिए पंचकर्म विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अलग-अलग क्रियाओं से शरीर को शुद्ध और दुरुस्त किया जाता है। पंचकर्म के दोहिस्से होते हैं। पूर्वकर्म : इसमें स्नेहन और स्वेदन आते हैं। प्रधानकर्म : इसके 5हिस्से होते हैं। वमन, विरेचन, आस्थापन बस्ति, अनुवासन-बस्ति और शिरो-विरेचनया शिरोधारा। स्नेहन : इसमें घी या तेल पिलाकर और मालिश करके शरीर के दोषों को दूर किया जाता है। स्वेदन : इसमें अलग-अलग तरीकों से शरीर से पसीना निकाल कर बीमारियों से निपटा जाता है। आगे की क्रिया करने से पहले पूर्वकर्म के ये दोनों कर्म करने जरुरी हैं। इसके बाद प्रधानकर्मकिया जाता है। इसके तहत ये क्रियाएं होती हैं। वमन : इस कर्म के जरिए कफ से पैदा होने वाली बीमारियों (खांसी, बुखार, सांस की बीमारी आदि) का इलाज किया जाता है। इसमें दवा या काढा पिलाकर उलटी (वमन) कराई जाती है। इससे कफ और पित्त बाहर आ जाता है। विरेचन : पित्त वाली बीमारियों के लिए विरेचन किया जाता है। इससे पेट की बीमारियों में राहत मिलती है। इसके लिए अलग-अलग दवाएं और काढा आदि पिलाए जाते हैं। आस्थापन बस्ति : इसका दूसरा नाम मेडिसिनलएनिमाभी है। इसमें खुश्क चीजों को इकट्ठा कर एनिमादिया जाता है। इससे पेट एवं बडी आंत के वायु संबंधीसभी रोगों में लाभ मिलता है। अनुवासन बस्ति : इस प्रक्रिया में चिकनाई वाले पदार्थ जैसे कि दूध, घी, तेल आदि के मिश्रण का एनिमालगाया जाता है। इससे भी पेट एवं बडी आंत की बीमारियों में राहत मिलती है। शिरोविरेचनया शिरोधारा :इसमें नाक से अलग-अलग तेलों को सुंघाया जाता है और सिर पर तेल की धारा डाली जाती है। इससे सिर के अंदर की खुश्कीदूर होती है। साथ ही नेत्र रोगों,ईएनटीप्रॉब्लम,नींद न आना और तनाव जैसी बीमारियों से राहत मिलती है।

स्पाऔर आयुर्वेद में फर्क स्पाबॉडीऔर मन को रिलैक्सकरने के लिए होता है, जबकि आयुर्वेदिक उपचार में किसी बीमारी का इलाज किया जाता है। मसलन जोडों के दर्द के इलाज के लिए कटि बस्ती करते हैं। इसमें घुटने पर आटे की टोकरी-सी बनाकर लगाते हैं और उसमें गर्म तेल डालते हैं। करीब 20-25मिनट घुटना इसमें रखकर फिर उस तेल से घुटने की मालिश करते हैं। शुगर के मरीजों को पोटली ट्रीटमेंट देते हैं। स्पाकोई भी करा सकता है, जबकि आयुर्वेदिक इलाज बीमार का किया जाता है।

स्पाऔर मसाजमें अंतर मसाजस्पाका एक हिस्सा है। किसी भी तरह की मसाजस्पामें ही आती है लेकिन स्पामें मसाजके अलावा स्टीम, सॉना,पैक और रैपआदि भी आते हैं।

कौन न कराए बुखार, इन्फेक्शनऔर चोट में न कराएं। सर्जरी के बाद भी छहमहीने तक परहेज करना चाहिए। हाई बीपीके मरीज स्टीम या सॉनाबिलकुल न कराएं। पैरालिसिस या कैंसर जैसी बीमारियों में भी ट्रीटमेंट के तौर पर स्पानहीं कराना चाहिए। हां, रिलैक्स करनेके लिए कोई थेरपीकरा सकते हैं। प्रेग्नेंसीमें स्पाथेरेपीनहीं करानी चाहिए। तीनसे छहमहीने की प्रेग्नेंसीमें फुट थेरेपीआदि करा सकते हैं लेकिन इसके पहले या बाद में वह भी नहीं। नॉर्मलडिलिवरीके बाद तीनमहीने तक और सिजेरियनके बाद छहमहीने तक इसे न कराएं।

कितना कराएं ज्य़ादा से ज्य़ादा 15दिन में एक बार या फिर 6-9महीने में हफ्ते भर लगातार कराएं। बाकी आयुर्वेदिक डॉक्टर जैसी सलाह दें, उसे फॉलो करें। अपने मन से कोई निर्णय न लें। ध्यान रखें कि यह आदत बेशक बन जाए लेकिन लत नहीं।

क्या है रेट यूं तो ब्रैंडनेम, सुविधा और बीमारी आदि के अनुसार रेट तय होते हैं, फिर भी मोटे तौर पर एक थेरेपीके लिए 1000से 3000रुपये तक खर्च होते हैं।

प्रधानकर्म : इसके 5हिस्से होते हैं। वमन, विरेचन, आस्थापन बस्ति, अनुवासन-बस्ति और शिरो-विरेचनया शिरोधारा। स्नेहन : इसमें घी या तेल पिलाकर और मालिश करके शरीर के दोषों को दूर किया जाता है। स्वेदन : इसमें अलग-अलग तरीकों से शरीर से पसीना निकाल कर बीमारियों से निपटा जाता है। आगे की क्रिया करने से पहले पूर्वकर्म के ये दोनों कर्म करने जरुरी हैं। इसके बाद प्रधानकर्मकिया जाता है। इसके तहत ये क्रियाएं होती हैं। वमन : इस कर्म के जरिए कफ से पैदा होने वाली बीमारियों (खांसी, बुखार, सांस की बीमारी आदि) का इलाज किया जाता है। इसमें दवा या काढा पिलाकर उलटी (वमन) कराई जाती है। इससे कफ और पित्त बाहर आ जाता है। विरेचन : पित्त वाली बीमारियों के लिए विरेचन किया जाता है। इससे पेट की बीमारियों में राहत मिलती है। इसके लिए अलग-अलग दवाएं और काढा आदि पिलाए जाते हैं। आस्थापन बस्ति : इसका दूसरा नाम मेडिसिनलएनिमाभी है। इसमें खुश्क चीजों को इकट्ठा कर एनिमादिया जाता है। इससे पेट एवं बडी आंत के वायु संबंधीसभी रोगों में लाभ मिलता है। अनुवासन बस्ति : इस प्रक्रिया में चिकनाई वाले पदार्थ जैसे कि दूध, घी, तेल आदि के मिश्रण का एनिमालगाया जाता है। इससे भी पेट एवं बडी आंत की बीमारियों में राहत मिलती है। शिरोविरेचनया शिरोधारा :इसमें नाक से अलग-अलग तेलों को सुंघाया जाता है और सिर पर तेल की धारा डाली जाती है। इससे सिर के अंदर की खुश्कीदूर होती है। साथ ही नेत्र रोगों,ईएनटीप्रॉब्लम,नींद न आना और तनाव जैसी बीमारियों से राहत मिलती है। स्पाऔर आयुर्वेद में फर्क स्पाबॉडीऔर मन को रिलैक्सकरने के लिए होता है, जबकि आयुर्वेदिक उपचार में किसी बीमारी का इलाज किया जाता है। मसलन जोडों के दर्द के इलाज के लिए कटि बस्ती करते हैं। इसमें घुटने पर आटे की टोकरी-सी बनाकर लगाते हैं और उसमें गर्म तेल डालते हैं। करीब 20-25मिनट घुटना इसमें रखकर फिर उस तेल से घुटने की मालिश करते हैं। शुगर के मरीजों को पोटली ट्रीटमेंट देते हैं। स्पाकोई भी करा सकता है, जबकि आयुर्वेदिक इलाज बीमार का किया जाता है। स्पाऔर मसाजमें अंतर मसाजस्पाका एक हिस्सा है। किसी भी तरह की मसाजस्पामें ही आती है लेकिन स्पामें मसाजके अलावा स्टीम, सॉना,पैक और रैपआदि भी आते हैं।

कौन न कराए बुखार, इन्फेक्शनऔर चोट में न कराएं। सर्जरी के बाद भी छहमहीने तक परहेज करना चाहिए। हाई बीपीके मरीज स्टीम या सॉना बिलकुल न कराएं। पैरालिसिस या कैंसर जैसी बीमारियों में भी ट्रीटमेंट के तौर पर स्पानहीं कराना चाहिए। हां, रिलैक्स करनेके लिए कोई थेरपीकरा सकते हैं। प्रेग्नेंसीमें स्पाथेरेपीनहीं करानी चाहिए। तीनसे छहमहीने की प्रेग्नेंसीमें फुट थेरेपीआदि करा सकते हैं लेकिन इसके पहले या बाद में वह भी नहीं। नॉर्मलडिलिवरीके बाद तीनमहीने तक और सिजेरियनके बाद छहमहीने तक इसे न कराएं। कितना कराएं ज्य़ादा से ज्य़ादा 15दिन में एक बार या फिर 6-9महीने में हफ्ते भर लगातार कराएं। बाकी आयुर्वेदिक डॉक्टर जैसी सलाह दें, उसे फॉलो करें। अपने मन से कोई निर्णय न लें। ध्यान रखें कि यह आदत बेशक बन जाए लेकिन लत नहीं। क्या है रेट यूं तो ब्रैंडनेम, सुविधा और बीमारी आदि के अनुसार रेट तय होते हैं, फिर भी मोटे तौर पर एक थेरेपीके लिए 1000से 3000रुपये तक खर्च होते हैं।

कुछ और थेरेपी बॉडीरैप/पैक :इसमें बॉडीपर अलग-अलग तरह के पैक लगाए जाते हैं जैसे मडपैक, जडी-बूटियों और फलों का गूदा मिलाकर तैयार किया गया गाढा पैक। इन पैक्स का बारी-बारी शरीर पर लेप किया जाता है। इन्हें बॉडीपर लगाकर बॉडीको सूती कपडे की पट्टियों से लपेट दिया जाता है।

अरोमाथेरेपी : इसमेंतिल के तेल में अरोमायानी खुशबू (यूकेलिप्टस, गुलाब, लैवेंडर,चमेली आदि) डालकर मालिश करते हैं। साथ ही, कमरे में भी टी-लाइट या दूसरे तरीकों से उसी खुशबू का संचार किया जाता है। खुशबू काफी रिलैक्सकरती है। पेपरमिंट रिफ्रेश करती है। हॉटटब थेरेपी : इसमेंएक टब में गर्म पत्थर रखे जाते हैं और मिनरल वॉटरसे इसे भर कर कस्टमर को इसमें लिटा दिया जाता है। जब यह पानीगर्म पत्थरों के ऊपर से गुजरता है तो हीट बनती है, जो कस्टमर को काफी रिलैक्सकरती है। इसमें आनंद भी खूब आता है बैंबूथेरेपी :यह करीब-करीब हॉटस्टोन थेरेपीजैसा ही है। स्टोन रखने के बजाय इसमें बैंबूसे बॉडी की मालिश की जाती है। पोटली थेरेपी : नीम,चंदन आदि बूटियोंको सूती कपडे की पोटली में बांधकर हलका गर्म करके सिकाई की जाती है।

हॉटस्टोन थेरेपी :इसमें करीब 30मिनट की मसाजके बाद तेल में डूबे गर्म पत्थर बॉडीपर करीब 15-20मिनट के लिए रखे जाते हैं। इससे प्रेशर पॉइंटबेहतर काम करने लगते हैं।


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