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हेल्थवॉच

आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि रंग-बिरंगे फूल केवल इंसानों को ही नहीं, बल्कि मच्छरों को भी आकर्षित करते हैं। अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा शोध के मुताबिक डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छर ऐसी जगहों पर ज्यादा अंडे देते हैं, जिसके आसपास फूलों

By Edited By: Published: Mon, 29 Feb 2016 01:41 PM (IST)Updated: Mon, 29 Feb 2016 01:41 PM (IST)
हेल्थवॉच

फूलों से आकर्षित होते हैं डेंगू के मच्छर

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आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि रंग-बिरंगे फूल केवल इंसानों को ही नहीं, बल्कि मच्छरों को भी आकर्षित करते हैं। अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा शोध के मुताबिक डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छर ऐसी जगहों पर ज्यादा अंडे देते हैं, जिसके आसपास फूलों से भरी झाडिय़ां हों। शोधकर्ताओं ने बताया कि एशियन टाइगर मच्छर खाली बर्तनों या गमलों में अंडे देते हैं। शोध के दौरान यह भी पाया गया कि इस कार्य के लिए मच्छर ऐसी जगहों का चुनाव करते हैं, जहां उनके अंडों की सुरक्षा को कोई खतरा न हो। इसके अलावा अगर आसपास घनी और रंग-बिरंगे फूलों वाली झाडिय़ां भी हों तो अंडों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस खोज से फूलों की खुशबू के आधार पर मच्छरों के लिए जाल बिछाने और उन्हें खत्म करने की दिशा में नए और कारगर तरीके ढूंढे जा सकते हैं। अगर आपके घर के आसपास भी ऐसे पौधे हैं तो उनकी नियमित छंटाई करें और रोजाना शाम को मच्छर-नाशक दवाओं का छिडकाव करें। सभी खिडकियों-दरवाजों पर जाली लगवाएं, ताकि घर में मच्छरों का प्रवेश न हो। डेंगू से भयभीत लोगों के लिए एक राहत भरी खबर यह है कि अब मैक्सिको के वैज्ञानिकों ने डेंगू से बचाव का टीका तैयार कर लिया है और वहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे मंजूरी दे दी है। उम्मीद है कि कुछ ही वर्षों में यह टीका भारत सहित विश्व के अन्य देशों में भी उपलब्ध होगा।

बिना सर्जरी के संभव होगा

कैटरेक्ट का इलाज

कैटरेक्ट के मरीजों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि अब बिना किसी सर्जरी के केवल दवाओं से ही उनकी इस समस्या का समाधान हो जाएगा। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक ऐसे रसायन लेनोस्टीरोल की खोज की है, जिससे तैयार किए गए आई ड्रॉप्स की दो बूंदें आंखों में डालने से कैटरेक्ट की समस्या दूर हो जाएगी। दरअसल यह एक ऐसा केमिकल है, जो हमारी आंखों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह हमारे आई-लेंस के सामने बनने वाले किसी भी अवरोध की संरचना को खुद ही हटाता रहता है, लेकिन ढलती उम्र के साथ लेंस के सामने अवरोध पैदा करने वाले प्रोटीन की संरचनाएं तेजी से विकसित होती हैं, जबकि इन्हें हटाने में मददगार केमिकल लेनोस्टीरोल की मात्रा घटने लगती है, जिससे आंखों में कैटरेक्ट की समस्या होती है। चूंकि, लेनोस्टीरोल आंखों में कुदरती रूप से मौजूद होता है, लिहाजा इससे बने आई ड्रॉप का इस्तेमाल पूरी तरह सुरक्षित है। जल्द ही इसका क्लिनिकल ट्रायल शुरू होने वाला है। यह कैटरेक्ट के मरीजों के लिए वरदान साबित होगा।

डायबिटीज में बढ सकता है ब्लडप्रेशर

एक ताजा शोध के मुताबिक डायबिटीज भी हाइ ब्लडप्रेशर का कारण हो सकता है। ब्लड शुगर ज्यादा होने पर खून की नलियां सिकुडऩे लगती हैं, जिससे ब्लडप्रेशर बढ जाता है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लिसेस्टर के एक शोधकर्ता रिचर्ड रेनबो के अनुसार, 'हमने पाया है कि खून में शुगर की मात्रा बढऩे से उसे प्रवाहित करने वाली नलियों की प्रकृति में बदलाव आता है। इससे दिल तक पोषण पहुंचाने वाली कोरोनरी वेन्स में ब्लॉकेज के कारण दिल का दौरा पडता है। ऐसे समय में अगर खून में शुगर की मात्रा ज्यादा हो तो यह रक्तवाहिका नलियों को सिकोडकर इस खतरे को और गंभीर बना सकती है। इस शोध से भविष्य में हाइ बीपी और हार्ट अटैक से बचाव संभव हो जाएगा।

नॉर्मल डिलिवरी यानी स्वस्थ शिशु

आपने पुराने समय की बुजुर्ग स्त्रियों को अकसर यह कहते सुना होगा कि नॉर्मल डिलिवरी के बाद मां और शिशु दोनों स्वस्थ रहते हैं। अब तो विज्ञान ने भी इस बात पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी है। अमेरिका स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार नॉर्मल डिलिवरी से जन्म लेने वाले बच्चों में एस्थमा, ओबेसिटी और ऑटिज्म से पीडित होने का खतरा कम होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, सामान्य प्रसव से जन्म लेने वाले बच्चों की आंतों में गुड बैक्टीरिया की संख्या ज्यादा होती है, जिससे शिशु का इम्यून सिस्टम तेजी से काम करता है। सी-सेक्शन से डिलिवरी के दौरान शिशु के शरीर में माइक्रोबायोम (बैक्टीरिया के रहने की स्थिति) पर नकारात्मक प्रभाव पड सकता है। इससे उसके शरीर में इम्यून सिस्टम, मेटाबॉलिज्म और नर्वस सिस्टम से संबंधित समस्याओं की आशंका बढ जाती है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि सी-सेक्शन से पैदा होने वाले सभी बच्चे कमजोर होते हैं और सामान्य प्रसव से जन्म लेने वाले बच्चे हमेशा स्वस्थ होते हैं। फिर भी नॉर्मल डिलिवरी मां और शिशु दोनों के लिए फायदेमंद होती है।

आसानी से होगी एलर्जी की पहचान

एक राहत भरी खबर यह है कि हमारी आने वाली पीढिय़ों को एलर्जी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा क्योंकि अब शिशु के जन्म के समय उसके गर्भनाल (द्वड्ढद्बद्यद्बष्ड्डद्य ष्शह्म्स्र) के खून की एक साधारण जांच से ही यह मालूम हो जाएगा कि भविष्य में उसे खाने-पीने की किन चीजों से एलर्जी हो सकती है। मेलबर्न स्थित वॉल्टर एंड एलिजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च के वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन बच्चों का इम्यून सिस्टम जन्म के समय अति सक्रिय होता है, उनमें आगे चलकर दूध, अंडा, गेहूं, मंूगफली, मेवा, मछली और अन्य खाद्य पदार्थों के प्रति एलर्जी विकसित हो सकती है। हालांकि, बच्चा जन्म के समय ये चीजें खुद नहीं खाता, लेकिन खाने-पीने की किसी चीज से उसमें एलर्जी होने की आशंका का पता मां के गर्भनाल के रक्त की जांच से ही लगाया जा सकता है। कभी-कभी हमारा इम्यून सिस्टम आहार से मिलने वाले प्रोटीन को शरीर के लिए खतरा मानकर उससे संघर्ष करने लगता है। नतीजतन शरीर में कई तरह के रोग प्रतिरोधक केमिकल्स का स्राव होने लगता है। जिससे पेटदर्द, उलटी, त्वचा में रैशेज जैसे एलर्जी के लक्षण दिखाई देते हैं। प्रमुख शोधकर्ता लेन हैरीसन के अनुसार गर्भनाल के रक्त में प्रतिरक्षा का एक खास संकेत होता है, जिससे शिशु में फूड एलर्जी के खतरे को पहचाना जा सकता है।

सेहत के लिए फायदेमंद है बेर

अगर आपको खट्टे-मीठे बेर का स्वाद पसंद है तो खुश हो जाएं। ये न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। हाल ही में किए गए अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि इसके नियमित सेवन से आथ्र्राइटिस, कैंसर, एस्थमा और दिल की बीमारियों का खतरा टल जाता है। लंदन से प्रकाशित हेल्थ मैगजीन ओपन केमेस्ट्री में प्रकाशित शोध के अनुसार लाल रंग के बेर में फेनोलिक्स नामक एंटी ऑक्सीडेंट तत्व पाया जाता है, जो हमारे शरीर को कई गंभीर बीमारियों से बचाता है। इसलिए बेर का सेवन नियमित रूप से करें।

एक्सपर्ट की मानें

पानी पीने की आदतों को लेकर लोगों के बीच कई तरह की भ्रामक धारणाएं प्रचलित हैं, जिससे वे यह समझ नहीं पाते कि इसका सही तरीका क्या है? यहां एक पाठिका की ऐसी ही समस्या का समाधान कर रहे हैं दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल के गैस्ट्रोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. सौमित्र रावत।

मैं अपने परिवार के सभी सदस्यों को हेल्दी डाइट देती हूं, पर मेरे बच्चे पानी पीने के मामले में बहुत आलसी हैं। इसके लिए उन्हें बार-बार टोकना पडता है। इसी तरह मेरे पति को खाने के बीच में पानी पीने की आदत है। मैंने लोगों से सुना है कि यह आदत सेहत के लिए नुकसानदेह होती है। मैं जानना चाहती हूं कि हमारे लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना क्यों जरूरी है और इसका सही तरीका क्या होना चाहिए?

मोनिका शर्मा, भोपाल

हमारे शरीर में दो-तिहाई पानी होता है। इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने की वजह से पूरे शरीर की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पडता है। शरीर में पानी की कमी होते ही मुंह में सलाइवा की मात्रा कम हो जाती है, जिससे बैक्टीरिया पनपने लगते हैं और सांस में बदबू पैदा हो सकती है। शरीर में पानी का स्तर कम होने पर हमें ज्यादा भूख लगती है, जिससे मीठी या कार्बोहाइड्रेट युक्त चीजें खाने की तीव्र इच्छा होती है। शरीर में पानी की कमी से त्वचा और बालों में रूखापन आ जाता है। ब्रेन सहित शरीर की प्रत्येक कोशिका को पानी से ही ऑक्सीजन मिलती है। इसलिए पानी न पीने पर बेचैनी, तनाव, मांसपेशियों में दर्द और एकाग्रता में कमी जैसी परेशानियां हो सकती हैं। कब्ज की समस्या भी इसी वजह से होती है। इसलिए रोजाना कम से कम छह-सात ग्लास पानी जरूर पिएं। सुबह खाली पेट दो ग्लास पानी पीने से पेट साफ रहता है। लंच या डिनर के आधे घंटे पहले एक या दो ग्लास पानी जरूर पिएं। यह तरीका वजन घटाने में मददगार होता है। खाने के साथ या तुरंत बाद पानी न पिएं। इससे भोजन को पचाने वाले जरूरी एंजाइम्स पानी में घुलकर पतले हो जाते हैं, जिससे भोजन देर से पचता है। अपनी डाइट में ताजा जूस, छाछ, लस्सी और शिकंजी जैसे तरल पदार्थों की मात्रा बढाएं, लेकिन कोल्ड ड्रिंक्स और डिब्बाबंद जूस से दूर रहें। नहाने से पहले पानी पीना हाइ ब्लडप्रेशर को नियंत्रित रखता है। एक्सरसाइज के पहले पानी पीने से मांसपेशियों को ऊर्जा मिलती है और थकान महसूस नहीं होती। अगर पानी पीने के मामले में इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो शरीर हमेशा स्वस्थ रहेगा।


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