मातृत्व सुख को करें सुरक्षित
आधुनिक स्त्री पढ़ाई और नौकरी को प्राथमिकता देती है। इस तरह उसकी उम्र भी बढ़ती जाती है। और जब वह गर्भधारण के लिए सोचती है तो उसकी बायोलॉजिकल स्थिति साथ नहीं देती। इस स्थिति से बचने और बढ़ती उम्र में मातृत्व सुख पाने के लिए वह क्या करें, बता रही
सॉफ्टवेयर इंजीनियर निवेदिता की िजंदगी प्रोफेशनल और घरेलू स्तर पर बहुत ही बेहतरीन चल रही है। हांलाकि वह 35 वर्ष की हो चुकी है, लेकिन अभी वो परिवार बढाने के बजाय अपने करियर पर अधिक ध्यान देना चाहती है। आिखरकार काफी मेहनत के बाद जो उसे अपनी ड्रीम जॉब मिली थी। लेकिन उसे ये भी चिंता है कि कहीं ज्य़ादा उम्र उसके गर्भधारण के आडे न आ जाए। सिर्फ निवेदिता ही नहीं, हर आधुनिक स्त्री पहले आर्थिक तौर पर मजबूत होने के लिए अपने करियर को प्राथमिकता देती है।
उच्च शिक्षा पाने और करियर बनाने में अधिक समय लगने से उम्र बढती जाती है। बढती उम्र में गर्भधारण करने में दिक्कतें आम समस्या है। दुनिया भर में सैकडों स्त्रियां हैं, जिन्हें अपने प्रोफेशन और मातृत्व सुख में से एक विकल्प का चुनाव करना पडता है। वे करियर के ऐसे मुकाम पर होती हैं, जहां वो ब्रेक नहीं लेना चाहतीं और दूसरी तरफ उम्र ज्य़ादा होने पर गर्भधारण न होने जैसी समस्या का भी खतरा रहता है। ऐसी स्थिति में उनके लिए सही ऑप्शन क्या है, आइए जानते हैं।
उम्मीद की किरण
अब स्त्रियों में निजी कारणों के चलते देरी से गर्भधारण की चाहत बढी है, लेकिन वे बाद में इनफर्टिलिटी जैसी समस्याएं भी नहीं चाहती तो ऐसे में वे ऊसाइट क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक अपनाकर बाद में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के माध्यम से बच्चे की चाहत को पूरा कर सकती हैं। वे कम उम्र में एग फ्रीिजंग (अंडों को संभाल कर रखने की प्रक्रिया) करा सकती हैं और जब वे परिवार बढाना चाहें तब उसे इम्प्लांट करा सकती हैं। वैज्ञानिक आधार पर स्त्रियों में बहुत ही सीमित अंडों की आपूर्ति होती है। दूसरे दशक के आख्िारी पडाव में प्रजनन स्तर कम होने लगता है और तीसरे दशक के मध्य में ये तेजी से कम होने लगता है। अगर शादी या गर्भधारण में देरी हो तो गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड सकता है।
गर्भधारण में जटिलताएं
मेडिकल जर्नल ऑफ ऑस्ट्रेलिया में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार 37 साल की उम्र के बाद गर्भधारण की दर में कमी आने लगती है और 40 से 42 साल की उम्र में तो यह दर तेजी से कम होती है। इस उम्र में संबंधित गिरावट आनुवांशिक कारकों और डीएनए की खराबी के कारण तेजी से ऊसाइट की गुणवत्ता में कमी आने से हो सकती है। दरअसल जब कोई लडकी पैदा होती है तो उसके शरीर में औसतन 6 लाख अंडे होते हैं। और उसके पैदा होने के बाद से ही यह अंडे प्रति माह एक हजार की दर से कम होते जाते हैं। अंडों का कम होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में वूमन बायोलॉजिकल क्लॉक कहते हैं। अंडे कम होने की यह प्रक्रिया हमेशा जारी रहती है। जब स्त्री गर्भधारण करती है तब और जब पीरियड्स न हों तब भी अंडे कम होने की प्रक्रिया जारी रहती है। अंडों के खत्म होने की प्रक्रिया पैंतीस की उम्र पार करते ही तेज हो जाती है। आमतौर पर 40-50 की उम्र तक स्त्री की प्रजनन क्षमता नष्ट हो जाती है। अंडों की क्वॉलिटी उम्र बढऩे के साथ-साथ खराब होती जाती है। नतीजतन मिसकैरिज व असामान्य गर्भ की आशंका बढ जाती है।
क्या है फ्रीिजंग तकनीक
ऊसाइट क्रायोप्रिजर्वेशन में अंडों को फ्रीज किया जाता है, जिसमें अंडों को निकाला जाता है, फिर फ्रोजन करके सुरक्षित किया जाता है। इस तरह जब स्त्री गर्भधारण के लिए तैयार होती है, तब प्रयोगशाला में अंडों को शुक्राणुओं के साथ मिलान किया जाता है और ऊसाइट फ्यूजन के बाद भ्रूण और शुक्राणुओं को विकसित होने के लिए स्त्री के गर्भाशय में रख दिया जाता है।
एग फ्रीिजंग की सही उम्र
फ्रोजन एम्ब्रो की भांति ही क्रायोप्रिजर्वेटिव ऊसाइट का जीवन स्तर 65-80 प्रतिशत होता है और ताजे ऊसाइट की तरह ही गर्भधारण के बाद निषेचन दर 60-80 प्रतिशत होती है। स्त्रियों को युवा अवस्था में ही ऊसाइट क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक अपनानी चाहिए, क्योंकि युवावस्था में अंडों की गुणवत्ता बेहतर होती है। यानी एग फ्रीिजंग की सही उम्र 30 साल से पहले है। विशेषज्ञों की मानें तो ये प्रक्रिया बढती उम्र में गर्भधारण न होने जैसी चिंताओं व तनाव को कम करती है। नई और बेहतरीन तकनीक की मदद से जब मातृत्व के सुख को सुरक्षित किया जा सकता है तो स्त्रयों को अब बिना किसी चिंता के अपनी इच्छाओं को पूरा करने का समय है।
किसके लिए है जरूरी
- अगर किसी स्त्री के परिवार में जल्दी मेनोपॉज होने की हिस्ट्री है तो उनके लिए समय पर एग फ्रजिंग कराना जरूरी है, क्योंकि कभी-कभी प्रीमेनोपॉज के मामलों में प्रीमैच्योर ओवेरियन फे लियर होने की आशंका होती है। ऐसे में गर्भधारण की संभावना न के बराबर होती है।
- जिन स्त्रियों के परिवार में कैंसर/ ओवेरियन कैंसर की हिस्ट्री हो, उनके लिए
एग फ्रीिजंग जरूरी है, क्योंकि कैंसर के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कीमो व रेडिएशन थेरेपी मरीज की प्रजनन क्षमता को सीधे-सीधे प्रभावित करती है।
- ऐसी स्त्रियां जिन्हें ल्यूपस या रूमैटॉइड आथ्र्राइटिस की समस्या हो, उनके लिए भी यह तकनीक फायदेमंद होगी।
- इस बीमारी के उपचार के लिए चलने वाली दवाइयां ओवेरियन फंक्शन को नुकसान पहुंचा सकती हैं या उसे नष्ट भी कर सकती हैं।
- जन स्त्रियों को सीवियर एंडोमेट्रिओसिस या किसी अन्य डिजीज के कारण डॉक्टर ने ओवरीज रिमूव कराने की हिदायत दी हो।
इनपुट्स : डॉ. रिचा शर्मा, आइवीएफ एक्सपर्ट, बार्न हॉल क्लिनिक, गुडग़ांव और डॉ. अर्चना धवन बजाज, गायनिकोलॉजिस्ट एंड आइवीएफ एक्सपर्ट, नर्चर क्लिनिक, नई दिल्ली।
इला श्रीवास्तव