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बदलें अपनी आदत

अकसर लोग अपनी फूड हैबिट बदलने को तैयार नहीं होते, लेकिन खानपान से जुड़ी गलत आदतें ईटिंग डिसॉर्डर जैसी समस्या का रूप धारण कर लेती हैं, जो कई गंभीर बीमारियों का सबब बन जाती है। क्यों होता है ऐसा और इससे बचाव कैसे किया जाए आइए जानते हैं सखी के

By Edited By: Published: Sat, 23 Jan 2016 04:41 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2016 04:41 PM (IST)
बदलें अपनी आदत

अकसर लोग अपनी फूड हैबिट बदलने को तैयार नहीं होते, लेकिन खानपान से जुडी गलत आदतें ईटिंग डिसॉर्डर जैसी समस्या का रूप धारण कर लेती हैं, जो कई गंभीर बीमारियों का सबब बन जाती है। क्यों होता है ऐसा और इससे बचाव कैसे किया जाए आइए जानते हैं सखी के साथ।

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अपने आसपास आपने कई ऐसे लोगों को देखा होगा जो अपनी फूड हैबिट को लेकर अनावश्यक रूप से सजगता बरतते हैं या कुछ लोगों में खानपान से जुडी कई अजीबोगरीब आदतें देखने को मिलती हैं, मसलन वजन बढऩे के डर से खाना छोड देना, बार-बार खाना, रात के वक्त नींद से उठकर खाना आदि। दरअसल खाने से हमारे वजन और बॉडी इमेज का गहरा संबंध है, लेकिन जब व्यक्ति इसे जरूरत से ज्य़ादा अहमियत देकर चिंताग्रस्त रहने लगता है तो यह आदत उसके लिए मनोवैज्ञानिक समस्या बन जाती है। ऐसी आदतों को ईटिंग डिसॉर्डर कहा जाता है और इससे लोगों को कई अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पडता है।

समझें समस्या की गंभीरता

ईटिंग डिसॉर्डर की समस्या में सबसे बडी कठिनाई यह है कि इससे पीडित लोग लंबे समय तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते कि वे किसी समस्या के शिकार हैं। यह समस्या पीडित व्यक्ति को केवल मानसिक रूप से प्रभावित नहीं करती, बल्कि इसके गंभीर शारीरिक परिणाम भी हो सकते हैं। समस्या बढऩे पर शरीर के महत्वपूर्ण अंग जैसे- लिवर, पैंक्रियाज और किडनी काम करना बंद कर देते हैं। खाने को लेकर अत्यधिक चिंताग्रस्त रहने पर यह समस्या विभिन्न रूपों में सामने आती है। आइए जानते हैं, इसके बारे में।

नर्वोसा एनोरेक्सिया

इस प्रकार के ईटिंग डिसॉर्डर में लोग अपनी शारीरिक छवि को लेकर जरूरत से ज्य़ादा सजग होते हैं। उन्हें हमेशा वजन बढ जाने की चिंता सताती रहती है। यहां तक कि सामान्य से बेहद कम वजन या कुपोषण का शिकार होने पर भी उन्हें अपना वजन बढऩे की चिंता रहती है। इसी डर से वे खाने-पीने पर अत्यधिक नियंत्रण रखते हैं। इससे ऐसे लोगों का वजन तेजी से गिरने लगता है। टीनएजर लडकियों में यह समस्या सबसे अधिक नजर आती है।

प्रमुख लक्षण : बार-बार वजन चेक करना, हमेशा अपने बढते वजन को लेकर चिंता जाहिर करना, खाते समय खाने की कैलरी की बात करना, वजन बढऩे के डर से अपनी मनपसंद चीजें भी पूरी तरह छोड देना।

संभावित ख्ातरे :लो ब्लडप्रेशर की स्थिति में कई बार दिल धडकने की रफ्तार इतनी धीमी हो जाती है कि इससे हार्ट अटैक का ख्ातरा बढ जाता है। इससे शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है, जो ऑस्टियोपोरोसिस के लिए जिम्मेदार होती है। गंभीर स्थिति में किडनी फेल्योर की भी समस्या हो सकती है।

क्या करें : ज्य़ादातर टीनएजर्स, खास तौर पर लडकियों में इसके लक्षण पाए जाते हैं। इसलिए मांओं को इस मामले में विशेष सजगता बरतनी चाहिए। अगर उन्हें अपनी बेटी के व्यवहार में ऐसा कोई बदलाव नजर आए तो बिना देर किए किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार से संपर्क करना चाहिए। ऐसी स्थिति में किसी डाइटीशियन से भी सलाह लेना बहुत जरूरी है क्योंकि इस समस्या से ग्रस्त लोग खानपान के मामले में परिवार वालों की बातों पर भरोसा नहीं करते। ऐसे लोगों की दिनचर्या में एक्सरसाइज, योग, डांस या किसी भी आउटडोर स्पोट्र्स को शामिल करना चाहिए।

बुलिमिया नर्वोसा

खाने से जुडी यह असामान्य अवस्था एनोरेक्सिया से अलग है। इससे पीडित लोग अपनी पसंद की सारी चीजें एक ही बार खा लेते हैं और वजन बढऩे के डर से खाने के तुरंत बाद उलटी कर देते हैं। ग्लैमर वल्र्ड से जुडे लोगों में अकसर ऐसी समस्या देखने को मिलती है। ऐसे लोग एक ही समय में जरूरत से ज्य़ादा खाते हैं। फिर बाद में वजन बढऩे या मोटापे की चिंता में दवाओं का इस्तेमाल, अत्यधिक एक्सरसाइज जैसे उपायों से अतिरिक्त कैलरीज को शरीर से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं।

प्रमुख लक्षण : स्वादिष्ट खाने के बारे में अकसर बातें करना, किसी भी पार्टी में अपनी मनपसंद चीजें जी भर कर खाना और खाने के बाद अकसर वॉशरूम जाना।

संभावित ख्ातरे : इससे एसिडिटी, पेट में दर्द और डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। बार-बार वोमिटिंग से व्यक्ति के शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का रासायनिक संतुलन बिगड जाता है। इससे हृदय गति अनियमित हो जाती है और ज्य़ादा गंभीर स्थिति में हार्ट अटैक भी हो सकता है।

क्या करें : ऐसी समस्या होने पर न्यूट्रिशनल काउंसलिंग जरूरी है। आयरन युक्त चीजों जैसे-हरी पत्तेदार सब्जियां, खजूर, चुकंदर, गुड और काले चने का सेवन ऐसी समस्या से ग्रस्त लोगों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है।

बिंज ईटिंग डिसॉर्डर

ऐसी समस्या में व्यक्ति खाने से ख्ाुद को रोक नहीं पाता। खाने की कोई भी चीज देखकर उसके मन में बार-बार खाने की इच्छा होती है। ऐसे में वह अकसर ओवर ईटिंग कर लेता है, लेकिन अधिक खाने के कारण उसे बेहद शर्मिंदगी महसूस होती है। वजन बढऩे की वजह से उसका आत्मविश्वास भी कमजोर पड जाता है।

प्रमुख लक्षण : बार-बार फ्रिज का दरवाजा खोलना, भूख न होने पर भी बची हुई चीजों को आसानी से ख्ात्म कर देना, अपने आसपास हमेशा बिस्किट, वेफर्स, चॉकलेट और नमकीन जैसी चीजें रखना, सामने खाने की जो भी चीज दिखाई दे, उसमें से थोडा सा खा लेना आदि।

संभावित ख्ातरे : ओबेसिटी की समस्या, कोलेस्ट्रॉल और ब्लडप्रेशर का बढऩा, हृदय रोग, डायबिटीज और डिप्रेशन की आशंका।

क्या करें : किसी डाइटीशियन से मिलकर अपने लिए डाइट चार्ट बनवाएं और उसमें दिए गए सभी निर्देशों का पूरी तरह पालन करें। आम तौर पर ऐसे लोगों को हरी सब्जियां, फल, स्प्राउट्स, जूस और छाछ जैसी चीजों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। अपने मोबाइल से फ्री होम डिलिवरी वाले ईटिंग जॉइंट्स के नंबर हटा दें। अपने फ्रिज में चॉकलेट, आइसक्रीम और मिठाई जैसी चीजें न रखें। अगर बीच में भूख लगे तो जंक फूड के बजाय फलों का सेवन करें।

नाइट ईटिंग सिंड्रोम

ऐसी समस्या से ग्रस्त व्यक्ति केवल रात के वक्त ही असामान्य रूप से अधिक खाता है। ऐसे लोग भरपेट भोजन के बाद देर रात तक कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं। लंबे अरसे तक नाइट शिफ्ट में काम कर चुके लोगों में स्थायी रूप से ऐसी आदत देखने को मिलती है क्योंकि लगातार रात को जागकर काम करने की वजह से ऐसे लोगों की बॉडी क्लॉक में बदलाव आ जाता है। तनावग्रस्त लोग भी अनजाने में ऐसी आदत के शिकार हो जाते हैं।

प्रमुख लक्षण : दिन के समय ऐसे लोगों को ज्य़ादा भूख नहीं लगती, पर रात के वक्त इन्हें खाने की तीव्र इच्छा होती है, सो जाने के बाद भी अकसर बीच में इनकी नींद खुल जाती है। इस सिंड्रोम से पीडित लोग आधी रात को भी फ्रिज से चीजें निकालकर खा लेते हैं।

संभावित ख्ातरे : वजन बढऩा, मेटाबॉलिज्म का असंतुलित होना, कब्ज और गैस से जुडी समस्या, हाइ ब्लडप्रेशर और डायबिटीज की आशंका।

क्या करें : हाइ कैलरी वाले स्नैक्स के बजाय अपने आसपास हर्बल टी, वेज सैंडविच और फल रखें। भूख लगने पर इन्हीं चीजों का सेवन करें। शाम का नाश्ता जरूर करें, इससे रात को ज्य़ादा भूख नहीं लगेगी। सही समय पर सोने-जागने की आदत विकसित करें।

अंत में, अगर आपमें इन समस्याओं से जुडा कोई भी लक्षण दिखाई दे तो शर्मिंदा होने के बजाय एक्सपर्ट की सलाह लेकर उसे दूर करने की कोशिश करें। वास्तव में ये व्यस्तता की वजह से पैदा होने वाली आधुनिक जीवनशैली की ऐसी समस्याएं हैं, जो केवल फूड हैबिट से ही नहीं, बल्कि हमारे मन से भी जुडी हैं। इनके समाधान में न्यूट्रिशनिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट दोनों के सहयोग की जरूरत होती है। सही काउंसलिंग से जल्द ही इसका समाधान हो जाता है। स्न

सखी फीचर्स

इनपुट्स : डॉ. मुक्ता वशिष्ठ, एचओडी, न्यूट्रिशन एंड डाइटिटिक्स, सर गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली


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