फिटनेस- न उम्र की सीमा हो
60+ में चुस्त-दुरुस्त और सकारात्मक सोच के लिए क्यों न योग को ट्राई किया जाए। इसके ज़रिये आप बढ़ती उम्र में शारीरिक व मानसिक रूप से फिट दिखाई देंगे। जानें बढ़ती उम्र के योगासनों के बारे में।
By Edited By: Published: Thu, 19 Jan 2017 03:49 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jan 2017 03:49 PM (IST)
जिंदगी की शाम जब ढलने लगती है तो न सिर्फ शरीर में ढेरों बीमारियां अपना घर बना लेती हैं, बल्कि जीवन में एक सूनापन भी छा जाता है। हमारे देश में बहुत कम ऐसे लोग हैं, जो 60 साल की उम्र में भी उसी जीवंतता के साथ जीवन व्यतीत करते हैं। योग के सहारे इस उम्र में भी खुद को शारीरिक व मानसिक रूप से दुरुस्त रख सका जा सकता है। फायदे हैं अनेक वैसे तो उम्र के हर पडाव पर ही योग के अनेक फायदे हैं, लेकिन स्त्रियों को तो योग के जरिये अतिरिक्त फायदा पहुंचता है। उम्र के अलग-अलग दौर में विभिन्न प्रकार के हॉर्मोनल बदलाव होते हैं। ऐसे में अपनी स्ट्रेंथ बढाने, बीमारियों को दूर करने, हड्डियों की उम्र बढाने, माइंड को शार्प करने और अपनी स्किन की टाइटनिंग और ग्लो को बनाए रखने के लिए योग का रास्ता अपना सकते हैं। कपालभाति : यह प्राणायाम की एक विधि है। इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से चेहरे पर चमक आती है, साथ ही झुर्रियां भी कम होती हैं। इसके लिए किसी भी मुद्रा में बैठ जाएं। साथ ही कमर व गर्दन को सीधा कर लें, जब पीठ सीधी होगी तो छाती आगे की ओर उभरी रहनी चाहिए। हाथों को घुटनों पर ज्ञान की मुद्रा में रखें। इसके बाद नाक से सांस छोडें। पेट को अंदर की ओर खींचकर रखें। अब नाक से सांस को अंदर खींचें और पेट को बाहर करें। इस क्रिया को 50 बार से धीरे-धीरे बढाते हुए 500 बार तक किया जा सकता है। एक क्रम में 50 बार से अधिक न करें। ध्यान रखें, खाना खाने के बाद कम से कम 3 घंटे तक इसे ट्राई न करें। अनुलोम-विलोम : इसके नियमित अभ्यास से आप लंबे समय तक निरोगी बने रह सकते हैं। दरअसल, इस प्रणायाम के दौरान जब हम गहरी सांस भरते हैं तो शुद्ध वायु हमारे खून के दूषित पदार्थों को बाहर निकाल देती है और शुद्ध रक्त शरीर के सभी अंगों में जाकर उन्हें पोषण प्रदान करता है। इस प्राणायाम को करने के लिए किसी भी आसन में बैठ जाएं। अब दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और बाएं छिद्र से चार तक की गिनती में सांस को भरें और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो उंगलियों से बंद कर दें। इसके बाद दायीं ओर से अंगूठे को हटा दें और सांस को बाहर छोडें। आप इसको अपनी क्षमता के अनुसार पांच मिनट से पंद्रह मिनट तक कर सकते हैं। भ्रामरी प्राणायाम : सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठकर दोनों हाथों की उंगलियों में से मिड फिंगर से नाक को हलका दबाकर रखें। तर्जनी को माथे पर, मध्यमा को आंखों पर और सबसे छोटी उंगली को होंठ पर और अंगूठे से दोनों कानों के छिद्रों को बंद कर दें। फिर सांस को धीमी गति से गहरा खींचकर अंदर कुछ देर रोक कर रखें। अब धीरे-धीरे भौंरे की गुंजन की तरह आवाज करते हुए नाक से सांस निकालें। इसे लेटकर न करें। शीतली प्राणायाम : यह आपके शरीर को भीतर से ठंडक पहुंचाने का काम करता है। इसे करने के लिए सर्वप्रथम पीठ को सीधा रखते हुए सुखासन में बैठ जाएं। फिर जीभ को बाहर निकालकर उसे इस प्रकार मोडें कि वह एक नली के आकार जैसी बन जाए। फिर इस नली के माध्यम से ही धीरे-धीरे मुंह से सांस लें। इसके बाद जीभ अंदर करके सांस को धीरे-धीरे नाक से बाहर निकालें। इसको धूल भरे वातावरण या तेज धूप में न करें। शीतकारी प्राणायाम : किसी भी आसन में बैठ जाएं। अब दांत पर दांत रखने के बाद उसके पीछे जीभ लगाएं। धीरे-धीरे मुंह से सांस को अंदर खींचें। कुछ देर बाद सांस को छोडें। ऐसा करने से मुंह के अंदर का भाग सूखने लगता है।
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