सावधानी है ज़रूरी
प्रेग्नेंसी हर स्त्री के जीवन का सबसे ख़्ाुशनुमा दौर होता है, पर इस दौरान उसे कई स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं। प्रीइक्लेंप्सिया भी एक ऐसी ही समस्या है। अगर शुरुआत से ही सजगता बरती जाए तो इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
प्रेग्नेंसी हर स्त्री के जीवन का सबसे ख्ाुशनुमा दौर होता है, पर इस दौरान उसे कई स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं। प्रीइक्लेंप्सिया भी एक ऐसी ही समस्या है। अगर शुरुआत से ही सजगता बरती जाए तो इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
हर स्त्री यही चाहती है कि उसकी प्रेंग्नेंसी पूरी तरह तनावमुक्त हो, पर वास्तव में ऐसा संभव नहीं हो पाता। कंसीव करने के बाद उसके शरीर में बहुत तेजी से हॉर्मोन संबंधी बदलाव आ रहे होते हैं, जिसकी वजह उसे एक साथ कई परेशानियों का सामना करना पडता है। प्रीइक्लेंप्सिया भी एक ऐसी ही स्वास्थ्य समस्या है। कंसीव करने के 20 सप्ताह बाद कुछ स्त्रियों का ब्लडप्रेशर तेजी से बढऩे लगता है और उनके यूरिन से अधिक मात्रा में प्रोटीन का रिसाव होने लगता है। गंभीर स्थिति में स्त्री का ब्लडप्रेशर 160/110 तक पहुंच जाता है और यूरिन के जरिये प्रतिदिन लगभग 5 ग्राम प्रोटीन शरीर से बाहर निकल जाता है। इसकी वजह से स्त्री के पैरों और चेहरे पर सूजन आ जाती है। डिलिवरी के छह सप्ताह बाद तक भी स्त्री के शरीर में इसके लक्षण नजर आते हैं।
क्या है नुकसान
प्लेसेंटा तक रक्त-प्रवाह में रुकावट पैदा होती है। इससे गर्भस्थ शिशु का विकास धीमी गति से होता है। गर्भावस्था के दौरान स्त्री को ब्लीडिंग हो सकती है। प्लेसेंटा को होने वाले नुकसान की वजह से मां और बच्चे दोनों को ख्ातरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में जन्म के समय शिशु का वजन बहुत कम होता है और वह जन्मजात विकृतियों का भी शिकार हो सकता है।
प्रमुख वजह
कुछ स्त्रियों में पहली प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लडप्रेशर बढ जाता है और इससे उनमें ये लक्षण दिखाई देते हैं। ओवरवेट स्त्रियों को ऐसी समस्या हो सकती है। डायबिटीज या किडनी की बीमारी होने पर भी यूरिन से प्रोटीन डिस्चार्ज होने लगता है। सिगरेट और एल्कोहॉल का सेवन करने वाली स्त्रियों में भी इसके लक्षण नजर आते है। आनुवंशिकता इसकी प्रमुख वजह है। बीस से कम या चालीस से अधिक उम्र में कंसीव करने वाली स्त्रियों को भी यह समस्या हो सकती है।
लक्षण
ऐसी स्थिति में गर्भवती स्त्री को सिर या पेट में दर्द, नजर में धुंधलापन, चेहरे और हाथ-पैरों में सूजन, उल्टी या चक्कर आना, तेजी से वजन का बढऩा जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। गंभीर स्थिति में गर्भवती स्त्री को बेहोशी के दौरे भी पड सकते हैं।
बचाव एवं उपचार
- गर्भावस्था के दौरान ब्लडप्रेशर की नियमित जांच कराएं।
- नमक का सेवन सीमित मात्रा में करें।
- नियमित रूप से व्यायाम करें, एल्कोहॉल या स्मोकिंग से दूर रहें।
- प्रीइक्लेंप्सिया की आशंका होने पर ब्लडप्रेशर की जांच के साथ यूरिन और ब्लड टेस्ट भी किया जाता है।
- गंभीर स्थिति में स्त्री को अस्पताल में भर्ती कराना पड सकता है। जहां गर्भवती स्त्री और गर्भस्थ शिशु के न्यूरो प्रोटेक्शन के लिए उसकी नसों में मैग्नीशियम सल्फेट का इंजेक्शन लगाया जाता है। स्त्री को एंटी हाइपरटेंसिव दवाएं भी दी जाती है, ताकि उसका ब्लडप्रेशर सामान्य हो सके।
अगर शुरू से ही सजगता बरती जाए तो गर्भावस्था में प्रीइक्लेंप्सिया के लक्षणों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
विनीता
(सर गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ
डॉ. माला श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित)