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इतनी लत भी ठीक नहीं

टेक्नोलॉजी की दुनिया ने हमारे सपनों को पंख तो बहुत दिए हैं पर इसका ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल कई तरह की शारीरिक व मानसिक परेशानियां खड़ी कर सकता है। इसको अपनी आदत बनाना हर तरह से नुकसानदायक साबित हो सकता है।

By Edited By: Published: Thu, 10 Nov 2016 12:22 PM (IST)Updated: Thu, 10 Nov 2016 12:22 PM (IST)
इतनी लत भी ठीक नहीं
हाल के कुछ दिनों में एक गेम 'पोकेमॉन गो' ने खूब चर्चा बटोरी। देश-विदेश, हर जगह व हर किसी की जुबान पर यह ऑनलाइन गेम चढा रहा। इसकी वजह से न सिर्फ बच्चे, बल्कि बडे भी काफी प्रभावित हुए। कई घायल हुए व कई लोगों को अलग तरीकों से नुकसान पहुंचा पर इसका क्रेज जरा भी कम होता नहीं दिखा। इस गेम के अलावा और भी कई गेम्स व एप्स हैं जिनका जादू समय-समय पर लोगों के सिर पर चढकर बोलता रहता है। ऐसे ही कुछ ऑनलाइन एडिक्टिव एप्स व गेम्स पर एक नजर। क्या है गेमिंग एडिक्शन किसी भी चीज की लत तब होती है, जब उसका जरूरत से अधिक इस्तेमाल होने लगे और जब उसके बिना जिंदगी में कुछ अधूरा सा लगने लगे। चाय-कॉफी के एडिक्शन की तरह ही अब लोगों को गेम्स का एडिक्शन भी होने लगा है। सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक वे फोन या लैपटॉप की कैद में रहने लगे हैं। कुछ काम करते वक्त जरा से ब्रेक में भी कई लोग गेम्स खेलते हुए ही नजर आ जाते हैं। ऐसे लोग कई बार अपने गेम्स की दुनिया में इतना खो जाते हैं कि बस व ट्रेन में अपना स्टॉप या अन्य महत्वपूर्ण काम भी इन्हें याद नहीं रहते हैं। अगर इस स्थिति को समय पर नियंत्रित न किया जाए तो यह बेहद तनावपूर्ण हो सकती है। केस 1 : किसी भी चीज की लत यूं ही नहीं हो जाती है, बल्कि हम खुद ही उसे बढावा देते हैं। दिल्ली के 19 व 22 वर्षीय दो सगे भाइयों को ऑनलाइन गेम खेलने की इतनी अधिक लत हो गई थी कि वे बाथरूम जाने तक के लिए समय नहीं निकाल पाते थे और किसी के टोकने पर खीझ उठते थे। महीने भर एक अस्पताल के साइकिएट्री विभाग में एडमिट रहने के बाद उनकी हालत में सुधार हो सका। इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद कहती हैं, 'ऐसी स्थितियां समाज के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। शारीरिक व्यायाम की आदत न होने के कारण ही लोग इन डिजिटल गेम्स की तरफ आकर्षित होते जा रहे हैं। वे दिन भर घरों में घुसे रह कर सिर्फ विडियो गेम्स खेलते रहते हैं, जिसके कारण पढाई से भी उनका मन भटकता है।' केस 2 : मुंबई की एक मल्टीनेशनल फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत एक व्यक्ति को अपनी नौकरी सिर्फ इस वजह सेगंवानी पडी कि वह दिन भर अपने टैबलेट में पजल गेम्स खेलने में व्यस्त रहता था, जिसका नकारात्मक प्रभाव उसके काम पर भी पडऩे लगा था। इन दो वाकयों के अलावा और भी ऐसे कई केस हैं, जिनसे गेमिंग एडिक्शन को साफ तौर पर समझा जा सकता है। कभी छात्र क्लास के दौरान गेम खेलते पकडे जाते हैं तो कभी ऑफिस से थका हुआ आया व्यक्ति गेम्स के कारण घर पर भी फोन में ही व्यस्त रहता है। ऐसे लोग सोते-जागते या कुछ भी करते वक्त खुद को गेमिंग वल्र्ड का हिस्सा मानते हैं। क्या हैं नुकसान अति किसी भी चीज की हो, एक सीमा के बाद वह बुरी हो जाती है। तकनीक के विस्तार ने हर काम को जितना आसान बनाया है, उतना ही लोगों को आरामपरस्त भी। उसी तरह गेमिंग की लत व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक तौर पर बीमार कर रही है। जानें उसके नुकसान। एकाग्रता में कमी आना : दिन-रात एक कर किसी गेम के लेवल्स को पार करते रहने से दूसरे कामों से मन भटकना बेहद सामान्य है। स्टूडेंट्स हों, नौकरीपेशा लोग हों या हाउसवाइव्स, जो भी किसी गेम की लत का शिकार होगा, वह किसी दूसरे काम में मन नहीं लगा पाएगा। कोई जरूरी काम करते समय भी उसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने पसंदीदा गेम की दुनिया में ही लगा रहेगा, जिसका गलत असर उसके अन्य महत्वपूर्ण कामों पर भी पडता है। नींद की समस्या होना : लगातार खेलते रहने के कारण एक समय के बाद लोगों को नींद से जुडी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। कभी नींद देर से आती है तो कभी वे रात को उठ कर खेलने लग जाते हैं। उनके लिए फोन पास में रख कर सोना भी एक मुसीबत है, अगर पानी पीने के लिए भी उनकी आंख खुलेगी तो वे उस गेम में व्यस्त हो जाएंगे, जिसके कारण उनकी नींद कई घंटों के लिए प्रभावित हो सकती है। समाज से कटना : लगातार टेक्नोलॉजी के संपर्क में रहने से व्यक्ति अपने आसपास के लोगों से दूर होने लगता है। पार्टी या किसी और सामाजिक कार्यक्रम में होने पर भी वह अपने फोन में आंखें गडाए ही बैठा रहेगा। इससे उसके वहां होने या न होने का कोई खास मतलब नहीं रहता है। कुछ नहीं तो कई लोग फोटो एडिटिंग एप्स व फिल्टर्स की सहायता से सेल्फी लेते हुए नजर आते रहते हैं। यह भी एडिक्शन की श्रेणी में आता है। चिडचिडापन होना : गेमिंग एडिक्शन के कारण ज्यादातर लोग, खासकर बच्चे बहुत चिडचिडे हो जाते हैं। उनके हाथ से जरा देर के लिए भी फोन ले लेने पर वे विचलित होने लगते हैं। कई बार खाना-पीना तक छोड देते हैं और इन सबके बीच उनकी पढाई तो डिस्टर्ब होती ही है। बचाव है अहम इस तरह के एडिक्शन से बचना बहुत जरूरी होता है, वर्ना उसका असर आपकी निजी जिंदगी पर भी पड सकता है। लगातार काम या रिश्तों को अनदेखा करना किसी भी तरह से हितकर नहीं है। -लोगों से जितना अधिक हो सके, मेलजोल बढाएं। इसके लिए विभिन्न अवसरों पर पार्टी आदि का आयोजन करते रहें। अपने परिवार व दोस्तों के लिए समय निकालें। -अपने कार्यों के लिए समय-सीमा निर्धारित कर उसका गंभीरता से पालन करें। -एकाग्रता बढाने के लिए जरूरी व दिमागी कार्यों के बीच कुछ समय का ब्रेक लेते रहें। हो सके तो इन ब्रेक्स में फोन व लैपटॉप का कम से कम इस्तेमाल करें। -बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप व इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल न करने दें और उन पर नजर भी रखे रहें। अगर तमाम कोशिशों के बावजूद इन डिजिटल गेम्स से दूरी न बन पा रही हो तो किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार की मदद लेने में हिचकिचाएं नहीं। इनसे दूरी है जरूरी हर गेम एडिक्टिव हो, यह जरूरी नहीं होता है। कुछ सर्वे से यह बात सामने आई है कि पजल, क्विज, फोटो एडिटिंग एप्स, डेटिंग एप्स, चैटिंग एप्स, शॉपिंग एप्स व मल्टीप्लेयर गेम्स बेहद एडिक्टिव होते हैं। -क्लैश ऑफ क्लैन्स -कैंडी क्रश सागा -क्विज अप -रेसिंग गेम्स -टेंपल रन -एंग्री बड्र्स -पोकेमॉन गो -एसफैल्ट 8 -पिक्सआर्ट (दीपाली पोरवाल)

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