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जिंदगी को एक मकसद मिल गया: विवेक ओबेरॉय-प्रियंका

जोडि़यां तो आसमान में ही बनती हैं। विवेक ओबेरॉय यही मानते हैं और सचमुच उनकी और प्रियंका की ख़्ाूबसूरत जोड़ी ऊपर वाले ने ही बनाई है। माता-पिता के कहने पर प्रियंका से मिलने और उन्हें टालने गए थे विवेक, मगर पहली मुला़कात में ही कुछ ऐसा स्पार्क जगा कि नौ-दस घंटे बीत गए और दोनों की बातें खत्म न हुई। इस रोमैंटिक जोड़ी से मिलवा रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।

By Edited By: Published: Sat, 01 Dec 2012 11:04 AM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2012 11:04 AM (IST)
जिंदगी को एक मकसद मिल गया: विवेक ओबेरॉय-प्रियंका

फिल्म अभिनेता विवेक ओबेरॉय और प्रियंका अल्वा की शादी दो वर्ष पहले हुई है। इनकी पहली मुलाकात फिल्मी तरीके से हुई, फिर चट मंगनी पट ब्याह हो गया। प्रियंका को कुछ शंकाएं थीं कि एक फिल्म स्टार पति के रूप में खरा उतरेगा या नहीं! लेकिन उनकी धारणा बदल गई। दोनों ने दिल खोल कर अपने रोमैंस, शादी और दांपत्य के बारे में हमें बताया।

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पहली मुलाकात

विवेक : अमेरिका के फ्लोरेंस में एक सेतु है। उसका नाम है सैंटा ट्रिनिटा, जिसे अंग्रेजी में होली ट्रिनिटी कहेंगे। वह एक पवित्र त्रिमूर्ति सेतु है। पहली मुलाकात वहीं हुई। सोच रहा था यार, मम्मी-पापा ने पता नहीं कहां फंसा दिया है। मैं इन्हें टालने के इरादे से गया था। फिर प्रियंका आई तो इनकी सादगी ने प्रभावित किया। मेकअप नहीं, सिंपल ड्रेस, फ्लैट चप्पल, बालों को पीछे बांध कर एक फूल खोंसा था इन्होंने। लेकिन इस सादगी में गजब की ख्ाूबसूरती थी। सोचा, यह लडकी सादगी में कितनी सहज और सुरक्षित है। इसे एहसास नहीं है कि फिल्म स्टार इससे मिलने आया है, जो भविष्य में इसका पति हो सकता है और जिसकी ग्लैमरस गर्लफ्रेंड्स रही हैं। सूर्यास्त का समय था, शायद पांच-साढे पांच बजे थे। बातें शुरू हुई। बीच में खामोशी छा जाती, मगर उसमें भी एक लय थी। दिल में घंटी बज गई, यही वह लडकी है-जिसका मुझे इंतज्ार था। घंटों बात करते रहे और जब वर्तमान में लौटे तो पाया कि माहौल में सन्नाटा है। मोबाइल ऑन किया, रात के ढाई बजे थे। हमने नौ-दस घंटे बातें की थीं। इनकी मम्मी को फोन किया कि थोडी देर हो गई है। उधर से जवाब आया, थोडी देर? कहां थे आप लोग? हम तो डर गए थे। पता है क्या वक्त हुआ है? मैंने माफी मांगी और कहा कि मैं प्रियंका को तुरंत घर ड्रॉप करता हूं। सडक पर कोई टैक्सी नहीं थी। एक बांग्लादेशी व्यक्ति था, जो अपनी पिज्ज्ा की दुकान बंद कर रहा था। वह मेरा फैन निकला। मैंने आग्रह किया कि भैया कुछ खिला दे और हमारे लिए टैक्सी का इंतज्ाम कर दे। उसने किसी को फोन करके बुलाया।

प्रियंका : मैं भी मां के कहने पर इनसे मिलने को राज्ाी हुई थी। मेरा हिंदी फिल्मों में इंटरेस्ट नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि न मत कहो। यह एक अनुभव है, इसके बाद ही तय करो कि क्या कहना है-हां या ना। कई बार हम सोचते भी नहीं और बडी बात हो जाती है। हमारी पहली मुलाकात में ऐसा ही हुआ। मैंने सारे सवाल इनके सामने रखे और इन्होंने अपनी बातें रखीं। कुछ नहीं छिपाया, सब कुछ सच-सच बताया।

शादी तो इन्हीं से होगी

विवेक : हिंदुस्तान में सुबह के सात-आठ बजे होंगे। प्रियंका पिज्ज्ा खा रही थीं। मैंने मम्मी को फोन करके कहा कि आप लोग सही थे। क्या मैं यहां एक दिन और रुक जाऊं? उन्होंने कहा, रह लो। ख्ौर इन्हें घर पहुंचाने गया तो रात के साढे तीन बज चुके थे। मैंने प्रियंका से कहा कि अभी तुम चुपचाप अंदर चली जाओ, मैं सुबह आकर माफी मांग लूंगा। लेकिन जैसे ही दरवाज्ो पर पहुंचा, घर की बत्तियां जल गई और परिवार के सभी 17 सदस्य मिलने आ गए। सभी को नमस्कार, प्रणाम और पैरी-पौना किया। मुलाकात का परिणाम जानने के लिए बच्चे से बडे तक सब जगे थे। इनके घर से लौटने के पांच घंटे बाद ही मैं फिर गाडी लेकर इनके दरवाज्ो पर हाज्िार था। घरवालों से अनुमति मांगी कि थोडी देर घूम कर आते हैं। सोच रहा था,इनसे कैसे कहूं कि शादी इन्हीं से करनी है। एक दिन पहले ही तो मिले हैं। इस चक्कर में तीन दिन फ्लोरेंस में रुका। इनके घरवालों से कहा कि आप जो भी फैसला लें, मैं इन्हीं से शादी करना चाहता हूं।

प्रियंका से कहा कि आपसे शादी न हुई तो शादी नहीं करूंगा। ये हंस पडीं। लेकिन मुझे काफी समय तक लटकाए रखा।

प्रियंका : लटकाने जैसा कुछ नहीं था। ये मुझे जंचे थे। लेकिन निर्णय लेने में देर लगती है। मैं सब देख-समझ कर फैसला लेती हूं।

तलाश पूरी हुई

प्रियंका : फिल्म स्टार होने के बावजूद विवेक यथार्थवादी हैं। ख्ाुले दिल से बातें करते हैं। ये जजमेंटल नहीं हैं। मैं भी इस बात पर ज्ाोर देती हूं कि दो व्यक्तियों का संबंध सहज ढंग से विकसित हो। इनसे मिल कर लगा कि ज्िांदगी की सर्च पूरी हो गई है। इनके साथ पर्सनल-प्रोफेशनल लक्ष्य पूरे किए जा सकते हैं। समझदारी, सम्मान-भाव जागा। पति-पत्नी की ज्िांदगी का रास्ता एक होना चाहिए। शादी के बाद एडजस्ट करने में थोडा वक्त लगा। मुझे पहले मुंबई और फिल्में पसंद नहीं थीं। अब तो सब कुछ यहीं है। मैं मम्मी-पापा को धन्यवाद दूंगी, जिन्होंने ख्ाुले दिल से मुझे स्वीकारा और बेटी जैसा प्यार दिया। मैं शादी की परंपराओं में यकीन रखती हूं। शादी एक कमिटमेंट है। दो व्यक्ति पूरी ईमानदारी से ज्िांदगी साथ बिताने के लिए तैयार हो जाएं तो वह शादी है।

विवेक : मैं पारंपरिक हूं। शादी पूर्ण समर्पण मांगती है। सभी जानते हैं कि पूर्व में मेरे रिश्ते रहे हैं। शादी के बाद मेरे भीतर स्थिरता आई, मन शांत हुआ, स्वभाव बदला और चीज्ाों को देखने का तरीका बदला। जो पहले महत्वपूर्ण लगता था-अब नहीं लगता, लेकिन कुछ नई छोटी चीज्ाों का महत्व बढ गया है। शादी किसी भी ढंग से हो, रिश्ते में सम्मान ज्ारूरी है। प्रियंका पत्नी से ज्यादा दोस्त हैं, बहू हैं, गृहिणी हैं। इनके प्रति मेरे दिल में अगाध सम्मान है। मम्मी और इनके बीच कमाल का तालमेल है। दोनों इतनी आसानी से घरेलू काम संभालती हैं कि मैं और पापा दंग रह जाते हैं। पत्नी की पसंद, सपनों और भरोसे का सपोर्ट करना ज्ारूरी है। इनसे मिलने के बाद मैं ज्यादा रोमैंटिक हो गया हूं। इनके लिए लव नोट्स, कविताएं और गाने लिखता हूं। मेरी रुचियां बदल गई हैं, क्लासी हो गया हूं। अब मेरी तकलीफें घर के बाहर छूट जाती हैं। मेरे कमरे की खिडकियां बडी हैं। सुबह की किरणें बिस्तर पर आती हैं। कभी सुबह जल्दी उठता हूं तो इन्हें सोया देख कर मेरे होठों पर जो मुस्कान आती है, वह दिन भर चिपकी रहती है। समझ नहीं पाता कि इसकी वजह क्या है? बेवजह ख्ाुश रहता हूं।

जीवन में बडा परिवर्तन

प्रियंका : शादी के बाद सबसे बडा परिवर्तन यही आया है कि मुझे हिंदी फिल्में पसंद आने लगी हैं। इनकी साथिया, युवा और ओमकारा जैसी फिल्में अच्छी लगीं। इनकी पहली फिल्म कंपनी मेरे भाइयों की फेवरिट है। ऐक्टर के तौर पर मैं इनकी इज्जत करती हूं। युवा दंपतियों से यही कहूंगी कि पार्टनर के सामने अपने वास्तविक रूप में रहें। अपनी इच्छाओं, सपनों को शेयर करें।

विवेक : प्रियंका सही कह रही हैं, संबंधों में सच्चाई सबसे अहम है। जब आप भावी पति या पत्नी से मिलते हैं तो दिल में घंटी बजनी चाहिए। लगे कि बस यही है, जिसका इंतज्ार था। जोडियां तो आसमान में बनती हैं।

चट मंगनी पट ब्याह

प्रियंका : मेरा बैकग्राउंड नॉन-फिल्मी है। हमारा रीअल एस्टेट बिज्ानेस है। उसमें हाथ बंटाती थी। लेकिन मेरी एक संस्था भी है। वह लुप्त हो रहे कला-रूपों को बचाने का काम करती है। हम उन्हें नए तरीके से नए पैकेज में लोगों के बीच ले जाते हैं। पर्यावरण के मुद्दों पर भी काम करती रही हूं।

विवेक : इनके काम और पैशन से मैं प्रभावित हुआ। शादी तय होने के बाद हमने सबसे पहले गोकर्ण में अपने गुरु जी के सान्निध्य में एक-दूसरे को पति-पत्नी माना, वही असल शादी थी। फिर कोर्ट मैरिज की। बैंगलोर में इनका आलीशान कई एकड में फैला और चमेली से घिरा घर है, जिसके पास एक झील है। इनका मन था कि झील के किनारे हमारी शादी हो, तो औपचारिक शादी वहीं हुई। फिर मुंबई में शानदार रिसेप्शन हुआ। हम दो साल पहले 4 जुलाई को मिले, 7 सितंबर को सगाई और 29 अक्टूबर को शादी हुई। चट मंगनी पट ब्याह हो गया। फ्लोरेंस से लौट कर पापा ने मेरी हालत देखी तो पंद्रह दिन के बाद इनकी मम्मी को फोन किया कि शादी की तारीख्ा तय कर दें, नहीं तो बेटा बीमार हो जाएगा। पंडित 2011 की तारीख्ों निकाल रहे थे। मैंने साफ कहा, इतना इंतज्ार नहीं कर सकता मैं। मौका मिलते ही मैं इनके घर बैंगलोर चला जाता था। मेरी ज्िांदगी वाया बैंगलोर चल रही थी। फोन पर लंबी बातें होती थीं। सब मिलाकर यही लगा कि जल्दी शादी कर लेनी चाहिए।


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