क्वीन: सपनों के मुकम्मल होने की दास्तां
इस दौर की बेहतरीन फिल्मों में गिनी जाएगी फिल्म क्वीन। रिजेक्शन से निराश आम लड़की ख़्ाुद को जानने-समझने और दुनिया घूमने निकल पड़ती है। यहीं उसका खुद से सामना होता है और यहीं से उसके जीवन को नया आयाम मिलता है। चिल्लर पार्टी बनाने वाले डायरेक्टर विकास बहल ने इस फिल्म से जता दिया है कि वह सक्षम और सफल फिल्ममेकर हैं। फिल्म से जुड़े रोचक प्रसंगों के बारे में बता रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।
पिछले दिनों आई विकास बहल की फिल्म क्वीन 21वीं सदी की लडकियों की सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति बन गई है। फिल्मों और अन्य कला माध्यमों में हम नारी प्रधान अभिव्यक्ति की चर्चा करते समय अधिक गंभीर हो जाते हैं। स्त्री मुक्तिऔर स्वतंत्रता का संदर्भ जटिल और मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि हिंदी फिल्मों में भी नारी प्रधान फिल्मों की ऐसी परंपरा रही है, जिसमें नारी शोषण और दमन पर ज्यादा जोर रहता है। इसके विपरीत कुछ फिल्मों में अधिकारों और आत्माभिमान की रक्षा के लिए बदले और प्रतिहिंसा की कहानियां कही जाती हैं। क्वीन में ऐसी कोई कोशिश नहीं है। यह सरल अंदाज में नायिका रानी के आत्मबोध और बदली विश्वदृष्टि की कहानी है।
नौकरी से डायरेक्शन तक
क्वीन के निर्देशक विकास बहल संयोग से फिल्मों में आए। पहले वह दिल्ली से नौकरी के सिलसिले में बंगलुरु गए। तब डॉट कॉम की सरगर्मी थी। उस कंपनी ने उनका ट्रांस्फर मुंबई कर दिया। बाद में कंपनी बंद हुई तो वे रेडियो, टीवी से होते हुए यूटीवी में आ गए। यूटीवी में उन्होंने स्पॉट ब्वॉय आरंभ किया। उद्देश्य था कि कंटेंट पर आधारित छोटी फिल्मों का निर्माण किया जाए। इसके तहत पान सिंह तोमर, देव डी और आमिर जैसी फिल्में बनीं। इसी दौरान विकास बहल ने चिल्लर पार्टी फिल्म लिखी और उसे निर्देशित किया।
स्पॉट ब्वॉय बंद होने के बाद अपनी मर्जी का काम करने की इछा से विकास बहल ने मधु मंटेना, अुनराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी के साथ फैंटम कंपनी शुरू की। इरादा था कि कंटेंट से भरपूर फिल्में बनाई जाएं और फिल्मों के प्रचलित ढांचे में ही प्रयोग किया जाए। फैंटम की अनेक फिल्मों में से एक क्वीन है। इसका आइडिया विकास बहल का था। वही लेखक और निर्देशक हैं। दोस्तों ने उनका आत्मविश्वास बढाया और फिल्म के लिए प्रेरित किया। जरूरी संसाधन और नैतिक समर्थन देने के साथ उन्होंने विकास बहल को सचा क्रिएटिव संबल दिया।
साधारण जिंदगी का घुमाव
क्वीन की रानी दिल्ली के राजौरी गार्डन की मध्यवर्गीय परिवार की एक लडकी है। वह परिवार की परिचित फेमिली के लडके विजय से मुहब्बत करती है। विजय उससे उम्र में थोडा बडा और दुनियादार है। वह विदेश में रहने लगा है। दोनों की शादी की तैयारियां चल रही हैं। विजय उसे अचानक बुलाता है और दो टूक शब्दों में बता देता है कि वह इस शादी के लिए तैयार नहीं है। संक्षिप्त विदेश प्रवास से उसे लगने लगा है कि रानी से उसकी अछी मैचिंग नहीं होगी। रानी उसे पिछडी और साधारण लडकी लगती है। रानी का दिल टूटता है। वह रोती-बिसूरती है। फिर दादी की सांत्वना को गांठ बांध लेती है। पूर्व योजना के मुताबिक वह अकेली ही हनीमून पर निकलती है। पेरिस व एम्सटर्डम में घूमते और दुनिया को अपनी निगाहों से देखते हुए वह खिलती है, उसकी सोच बदलती है। अपनी काया और जिंदगी के प्रति उसके अप्रोच में फर्क आता है। इस प्रक्रिया में वह आत्मसाक्षात्कार करती है। इस आत्मबोध से वह मजबूत, प्रखर और स्वतंत्र रानी बन जाती है।
क्वीन की कहानी की प्रेरणा विकास बहल को अपनी मां से मिली थी। उनकी मां लाइब्रेरियन बनना चाहती थीं। शादी के बाद घरेलू जिम्मेदारियों के कारण उनका सपना पूरा नहीं हुआ। अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट होने के बावजूद उनके मन में कसक रह गई थी। मगर रानी अपनी जिंदगी में कसक नहीं रहने देती। वह एक्सप्लोर करने निकल पडती है। इस अनजान सफर में वह दुनिया और खुद को करीब से जानती है। लडकियों के स्वभाव और आदत में शामिल हो चुके संस्कारों की जकडन से निकलती है। उसकी इस यात्रा को विकास बहल ने निर्बाध तरीके से शूट किया है। क्वीन हिंदी फिल्मों के पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल नहीं करती। इसी कारण ताजा एवं प्रेरक लगती है।
कंगना और रानी का मेल
क्वीन के लिए कंगना रनौत के चुनाव पर भी उंगलियां उठी थीं। उन दिनों कंगना की फिल्में अछा व्यवसाय नहीं कर रही थीं। विकास बहल को लगा कि आलोचनाओं के बावजूद कंगना ही उनकी फिल्म की हीरोइन हो सकती थी। अपनी पृष्ठभूमि के कारण वह रानी के किरदार को आत्मसात कर सकती हैं। दूसरी अभिनेत्री को चुनने पर रिसर्च और कैरेक्टर के अध्ययन में काफी समय खर्च होता और तब भी जरूरी नहीं था कि रानी का मिजाज पकड में आता।
फिल्म देखने के बाद साफ लगता है कि रानी का किरदार और कलाकार एक हो गए हैं। गौर करें तो क्वीन की रानी एक तरह से तनु वेड्स मनु की तनु का ही विस्तार है। विकास बहल ने फिल्म की सफलता के बाद दिए कई इंटरव्यूज में यह बात दोहराई है कि अगर कंगना रनौत ने मना किया होता तो मैं यह फिल्म बना ही न पाता। कंगना के साथ राजकुमार राव (यादव) का चुनाव भी पूरी तरह उपयुक्त निर्णय रहा। इस फिल्म में विजय का किरदार निभाते हुए वह रानी पर हावी नहीं होते। अपने व्यवहार और सोच से उन्हें दर्शकों की घृणा मिलती है और यही उस किरदार से अपेक्षित था।
किरदारों की विकास प्रक्रिया
राजकुमार राव अपने किरदार को फिल्म का विलेन नहीं मानते। वह एकांगी सोच का निरीह व्यक्ति है। वह छल-कपट नहीं करता। उसे अपनी बेवकूफियां सही लगती हैं तो वह उन्हें व्यक्त कर देता है। बाद में गलतियों का एहसास होता है तो खुद में सुधार भी करता है, लेकिन तब तक रानी आगे निकल चुकी होती है। राजकुमार राव कहते हैं, मेरे लिए वह बहुत नॉर्मल और इंपल्सिव लडका है। वह विलेन नहीं, ग्रे शेड का है। अपने स्तर पर वह रानी का भला ही करना चाहता है। कंगना रनौत इस भूमिका में स्वाभाविक लगी हैं, लेकिन उन्हें यह स्वाभाविकता अर्जित करनी पडी, इसे सीखना पडा। कंगना के परिचित जानते हैं कि वह गहन आत्मविश्वास की लडकी हैं। हिमाचल प्रदेश के छोटे शहर से निकल कर अपने सपनों के पीछे दौडती हुई यहां तक पहुंची और अपने दम पर सब हासिल किया है। इस सफर में वह गिरीं, उन्हें खरोंचें आई, लेकिन वह रुकी नहीं। दम साधे अपनी मंजिल की तरफ बढती रहीं। वह कहती हैं, रानी आरंभ में मेरे स्वभाव के विपरीत है। उसमें आत्मविश्वास बिलकुल नहीं है। वह हमेशा गिडगिडाती और मिमियाती रहती है। इस रानी के लिए मुझे अपनी स्वाभाविक मुद्राएं छोडनी पडीं।
क्वीन में कंगना को संवाद लेखन का क्रेडिट मिला है। दरअसल विकास बहल ने शूटिंग के दरम्यान उन्हें पूरी आजादी दे दी थी कि आप सीन और सिचुएशन में खुद ही संवाद बोलें। वे संवाद फिल्म में रह गए तो विकास बहल ने संवाद लेखन का क्रेडिट कंगना के साथ शेयर किया। कंगना कहती हैं, यह विकास बहल का बडप्पन है। उन्होंने मुझे पूरी छूट दी थी। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि रानी के हिसाब से आप इस सिचुएशन में खुद ही अपने संवाद बोलें। एक तरह से कहूं तो क्वीन के कुछ संवाद लिखे नहीं, बल्कि बोले गए हैं। वैसे कंगना को लिखने का शौक है। वह खुद के लिए एक स्क्रिप्ट भी तैयार कर रही हैं। साथ ही, इन दिनों फिल्म-मेकिंग की पढाई भी कर रही हैं। इरादे स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है कि वह अभिनय के साथ-साथ लेखन और निर्देशन से भी जल्दी ही जुडेंगी।
सपनों के विस्तार की कहानी
क्वीन एक साधारण किरदार के विशिष्ट होने की कहानी है। इसकी नायिका रानी अपनी पीढी की उन तमाम लडकियों का प्रतिनिधित्व करती है, जिनके पास सपना है और उस सपने को पूरी करने की चाहत है। पिछले कुछ सालों में छोटे शहरों और महानगरों के पारंपरिक मोहल्लों और झोपड पट्टियों से निकली लडकियों में कुछ कर गुजरने का जोश है। क्वीन उसी जोश को अभिव्यक्तकरती है।
आश्चर्य नहीं कि क्वीन को 20-30 साल की उम्र की लडकियों ने बार-बार देखा है। उन्हें रानी में अपनी झलक मिलती है। सच कहें तो क्वीन की सफलता का श्रेय इन लडकियों को ही मिलना चाहिए।
अजय ब्रह्मात्मज