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तकरार से और बढ़ा है प्यार सतीश-शशि कौशिक

अपने जमाने में हिंदी फिल्मों के मशहूर हास्य अभिनेता, निर्माता और निर्देशक सतीश कौशिक और शशि के वैवाहिक जीवन को 23 साल हो गए हैं। चमक-दमक की दुनिया में रहने के बावजूद सतीश सादगी पर जोर देते हैं, जबकि शशि रिश्तों में स्नेह व धैर्य को अहम मानती हैं। रिश्तों को समझने की सखी की निरंतर जारी कोशिशों में एकऔर अहम पड़ाव।

By Edited By: Published: Tue, 26 Jun 2012 02:41 PM (IST)Updated: Tue, 26 Jun 2012 02:41 PM (IST)
तकरार से और बढ़ा है प्यार 
सतीश-शशि कौशिक

गर्मी और उमस भरी दोपहर..। सतीश कौशिक के घर पहुंचा तो लाइट, कैमरा, ऐक्शन वाला माहौल था। डीवीडी, किताबों और कागजों के ढेर के बीच बैठे सतीश स्क्रिप्ट लिख रहे थे और एक साथ कई काम निपटा रहे थे। पत्नी शशि होम मैनेजमेंट में व्यस्त थीं। उन्हें आने में देर हुई, तब तक सतीश जी से बातें करने का मौका मिला।

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शशि से पहली मुलाकात कैसे हुई?

सतीश : पहला आकर्षण जैसी कोई बात नहीं थी। मैं मुंबई में था। फिल्म राम-लखन की शूटिंग ख्ात्म हो चुकी थी। दिल्ली से घर वालों ने कहा कि तुम्हारे लिए लडकी देखी है, तुम्हें देखनी है तो देख सकते हो। शशि मुंबई की हैं, इसलिए मैं अपने दोस्त अनुपम खेर के साथ शशि को देखने गया। बडे शहर की लडकी, सरल-सहज, हां कर दी।

ग्लैमर व‌र्ल्ड में ट्रडिशनल शादी भा गई आपको?

सतीश : हमारे ब्राह्माण परिवार में रीति-रिवाजों पर जोर दिया जाता है। फिल्मों में काम करने पर समय का ठिकाना नहीं रहता। मैं हमेशा एक हाउसवाइफ चाहता था, जो घर को ढंग से संभाले। प्रेम विवाह जैसा खयाल कभी जेहन में नहीं आया। शशि के परिवार वाले भी रिवाजों में यकीन रखते हैं। शादी के कुछ दिन बाकी थे और राम-लखन का प्रीमियर था। मैं चाहता था शशि प्रीमियर पर आएं। इनके घर वालों से अनुमति मांगने गया तो उन्होंने मना कर दिया। अंत में अनुपम खेर, किरण खेर के साथ प्रीमियर देखा। वैसे हमारी शादी रीति-रिवाजों के साथ मगर सादगीपूर्ण ढंग से हुई। मुंबई और दिल्ली में रिसेप्शन हुआ। (इस बीच शशि भी आ गई थीं।) शशि : मैं पढाई और थिएटर में ही व्यस्त रही। मुझे भी रीति-रिवाज पसंद हैं। मेरे घर वालों ने जब प्रीमियर पर सतीश के साथ जाने को मना किया तो हमने उनकी बात का मान रखा। मना करने का एक कारण यह था कि मुझे हल्दी लग चुकी थी। इसके बाद लडकी को बाहर नहीं भेजा जाता। कोर्टशिप के दौरान हमारी बातचीत फोन पर होती थी। पहली मुलाकात के बाद हम यानी अनुपम, किरण, सतीश और मैं शॉपिंग करने गए। बातचीत शुरू हुई तो फिल्मों पर भी चली। किसी फिल्म के बारे में मैंने इनसे कहा कि इसके गाने बहुत लंबे हैं, उन्हें एडिट करें। यह बात मैंने आलोचक की तरह नहीं, सामान्य श्रोता की तरह की थी, इन्होंने भी मुद्दा नहीं बनाया।

सुहाने सफर के प्यारे अनुभव क्या हैं?

सतीश : पति-पत्नी का सफर लंबा होता है। उन्हें हमेशा साथ निभाना होना है। तालमेल और समझदारी से ही दांपत्य सफल होता है। रिलेशनशिप सॉफ्ट रहे, बहुत जोर न लगाना पडे तो गृहस्थी ठीक रहती है। शादी 12 मई, 1989 को हुई। अब तक सफर अच्छा रहा है।

शशि : झगडा तो हर घर में होता है। बर्तन हैं तो खटकेंगे भी। जहां प्यार होता है-वहां झगडे भी होते हैं। खूबसूरती इसमें है कि मतभेदों को जल्दी सुलझा लें। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे इतना ख्ायाल रखने वाले पति मिले। ये आउटडोर शूट पर हों तो देर रात भी फोन करके मेरा हालचाल लेते हैं।

झगडे के मुद्दे क्या होते हैं?

सतीश : मैं खाने-पीने का शौकीन हूं। इसलिए मेरा वजन कम नहीं होता। कोई खाने से रोके तो पारा सातवें आसमान पर चला जाता है। शशि भी इसे कंट्रोल नहीं कर पातीं। इसे लेकर झगडा होता है। शशि हर चीज प्री-प्लान करके चलती हैं। किसी को खाने पर बुलाना है तो मैं सोचता नहीं, तुरंत बुला लेता हूं, जबकि शशि तैयारी का वक्त चाहती हैं। इस मुद्दे पर कई बार ठन जाती है।

शशि : मामला इस घर को खरीदने का था। सतीश जुहू में घर चाहते थे, पर वहां खुली जगह कम थी। मैं यारी रोड पर घर लेना चाहती थी। इनसे कहती थी कि पास वाली बिल्डिंग में देखें। ये मान नहीं रहे थे। मैंने जुगाड लगाया। ये शूटिंग के लिए लंदन गए थे, मैंने यारी रोड की बिल्डिंग में फ्लैट वाले को पगडी दी और डील पक्की कर दी।

सतीश : कई बार ऐसी बातों पर उबाल आ जाता है। इन्होंने डील पक्की की तो ग्ाुस्सा आया, लेकिन अब यहां के खुलेपन को देख कर एहसास होता है कि शशि का निर्णय ठीक था। ये मेरी सेहत का बहुत ख्ायाल रखती हैं। पिछले डेढ साल से रोज दो-तीन घंटे जिम करता हूं इनके कहने पर। बच्चे नहीं हैं, लेकिन शशि ने इसे लेकर कभी शिकायत नहीं की, वह इसे ईश्वर की इच्छा मानती हैं।

शशि : ये कितने केयरिंग हैं, इसका अंदाजा मुझे एक आउटडोर शूटिंग के दौरान हुआ। हमारे एक परिचित ने कहा कि सतीश तुम्हें जान-बूझकर शूटिंग पर नहीं ले जाते, क्योंकि वहां दूसरी लडकियों के साथ मस्ती करते हैं। परिचित की बात पर मुझे भरोसा हो गया और मैंने सतीश को फोन लगाया। सतीश बोले, शशि तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा कर सकता हूं? उनके लहजे में दर्द और आश्चर्य के भाव थे। मैंने इनसे माफी मांग ली। तब से तय किया कि कभी शक नहीं करूंगी। किसी भी गलतफहमी को हम जल्दी दूर कर लेते हैं।

झगडे के मुद्दे क्या होते हैं?

सतीश : मैं कहीं बाहर शूटिंग करता हूं तो ये सेट पर आना चाहती हैं, लेकिन मैं काम में डिस्टर्ब नहीं होना चाहता। लिहाजा इनके फोन कॉल्स भी कई बार अटेंड नहीं करता। साफ कहता हूं कि जब शूटिंग खत्म हो जाए तो आ जाओ, चार-पांच दिन और रह लेंगे, घूम लेंगे। इन्हें भी पता है कि मेरा काम सबसे पहले है। यही एक कारण था, जिस पर ये झुकीं, वर्ना स्त्रियां कहां झुकती हैं।

शशि : मैं इसलिए साथ जाना चाहती थी, ताकि बाद में अकेले न जाना पडे। जब ये डायरेक्टर नहीं होते, तो मुझे साथ ले जाने में इन्हें प्रॉब्लम नहीं होती। अपने प्रोजेक्ट में ये काफी नानुकुर करते हैं।

सफल दांपत्य के कुछ गुर बताएं?

सतीश : एक-दूसरे को स्पेस देना जरूरी है। साथ ही हमसफर की ख्वाहिशों का भी खयाल रखना जरूरी है। शशि ने हमेशा मेरा साथ दिया। शादी के बाद मेरी इच्छा का मान रखते हुए इन्होंने थिएटर छोड दिया।

शशि : शादी में अंडरस्टैंडिंग जरूरी है। आज के दौर में अहं के कारण शादियां टूट रही हैं। दोनों घर से निकल रहे हैं तो व्यस्तता बढने से भी तनाव हो जाता है। आर्थिक आत्मनिर्भरता से भी अहं का टकराव होता है। मेरा यही मानना है कि रिश्तों में अहं को आडे नहीं आना चाहिए, उन्हें संवारना चाहिए।

आलोचना भा गई

सतीश : पहली बार इनसे मुलाकात हुई तो यही बात सबसे अधिक पसंद आई कि ये मेरे आभामंडल से प्रभावित नहीं दिखीं। इन्हें पता था कि मैं फिल्म का आदमी हूं। इसके बावजूद फिल्मों के बारे में इन्होंने अपनी राय बेझिझक मेरे सामने रखी। मेरी झूठी तारीफ नहीं की, बल्कि किसी फिल्म के बारे में तो इन्होंने कहा कि वह बकवास फिल्म थी..। इन तमाम बातों का असर यह हुआ कि मुझे लग गया कि ये लडकी स्पष्टवादी है और साफ बोलने में यकीन रखती है। बस, इनका यही गुण मुझे भा गया। अमित कर्ण


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