अपनी असुरक्षा के साथ जीना सीखा है हमने: सुशांत सिंह-मोलिना
प्यार सूरत से नहीं सीरत से होता है, यह मानने वाले सुशांत सिंह बड़े व छोटे पर्दे का परिचित चेहरा हैं। बिजनौर के सुशांत और मणिपुर की मोलिना की मुलाकात दिल्ली में हुई। मुलाकातें बढ़ीं, दोस्ती हुई और फिर शादी भी कर ली। जीवन के हर पल को भरपूर जीने में यकीन रखते हैं दोनों। मिलते हैं इस दंपती से अजय ब्रह्मात्मज के साथ।
राम गोपाल वर्मा की फिल्म जंगल सहित कई टीवी सीरियल्स में दिखने वाले सुशांत सिंह बिजनौर के हैं। उनकी पत्नी मोलिना मणिपुर की हैं। दिल्ली में मुलाकात हुई। मोलिना के लंबे बालों ने सुशांत को कुछ ऐसे उलझाया कि इसके बाद वे जुल्फों के घेरे से निकल न सके। लिव-इन से शादी तक के कई अनुभव हैं इनके। रिश्तों के प्रति साफ नजरिया है। मिलते हैं इस दंपती से।
मुलाकातों का दौर
सुशांत : बिजनौर में पैदा हुआ। नैनीताल में शुरुआती पढाई के बाद किरोडीमल कॉलेज, दिल्ली आया। नाटकों का शौक था। एक मित्र ने अलका जी का नाटक दिखाया तो उनके लिविंग थिएटर अकेडमी में शामिल हो गया। यह बात है 15 अक्टूबर 1992 की। अगले साल कथक सीखने दिल्ली आई एक मणिपुरी लडकी को देखा, जो ऐक्टिंग सीखना चाहती थी। वह एडमिशन फॉर्म भर रही थी। मैंने उसकी पीठ पर झूलते लंबे बालों को देखा, बस वहीं झटका खा गया।
मोलिना : मैं मणिपुरी हूं, लेकिन पढाई-लिखाई धनबाद में हुई। कथक सीखने दिल्ली आई थी। माता-पिता डांसर थे। हम पांच बहनों में से किसी को भी वे नृत्य में नहीं लाना चाहते थे। मैंने किसी तरह पापा को समझाया और फॉर्म भरा। एडमिशन के साथ स्कॉलरशिप मिली तो पापा भी तैयार हो गए। शाम को फ्री रहती थी। लिविंग थिएटर जॉइन करने के बारे में सोचा। अलका जी सर ने उच्चारण चेक किया। फिर अगले दिन आने को कहा। उन्होंने कहा कि अन्य छात्रों से भी परिचय कर लूं। नीचे एक चाय की दुकान थी। वहीं सब खडे थे। सुशांत ने अपना परिचय दिया। मैं बोलते समय स और श में फर्क नहीं कर पाती थी। मैंने इनका नाम दोहराया- सुसांत। ये उच्चारण ठीक कराते रहे और मैं चिढती रही। फिर इन्होंने मुझसे चाय के लिए पूछा और कहा, मेरे पास दो रुपये हैं उसमें मेरी चाय आ जाएगी, तुम अपनी खरीद लो। काफी अलग स्वभाव के लगे सुशांत। क्लास में पॉपुलर थे। संवाद जल्दी याद हो जाते थे। सर नहीं होते तो वे ही क्लास कंडक्ट करते थे।
इश्क के पेचोखम
सुशांत : मोलिना मुझसे उम्र में बडी थीं तो दोस्तों ने कहा, सुशांत यहां कोई चांस नहीं।
मोलिना : कुछ समय बाद इनके एक मित्र ने मुझे कहा कि सुशांत प्रपोज्ा करना चाहते हैं। मेरे सामने तब पापा का चेहरा आ गया। लगा, अरे मैं करने तो कुछ और आई थी! ये मुझे छोडने कथक केंद्र तक आए तो मैंने इनसे कहा कि यह सब संभव नहीं है।
सुशांत : उस समय मुझे लगता था कि मैंने दुनिया देख ली है। अब कुछ देखना बचा नहीं है। मुझसे बडा ज्ञानी कोई नहीं है। मैं कविताएं लिखता था, पेंटिग करता था। साथ के लडकों को तुच्छ मानव समझता था। सोचता था, खानाबदोशों की जिंदगी जीनी चाहिए। शादी के लिए कमिटमेंट नहीं था, लेकिन प्यार करना चाहता था, उसे स्वीकारने में भी हिचक थी। दरअसल मैं जिसे ज्ञान मानता था, वह जीवन का कन्फ्यूजन था।
मोलिना : बाद में अलकाजी के नाटकों में मैं ही मेन लीड करने लगी। हम मिलते रहते थे, साथ चाय पीते और खामोश बैठे रहते। सोचती हूं प्रेमी-प्रेमिका इतनी बातें कैसे कर लेते हैं! ये कभी मजाक में कहते थे चलो डार्लिग दिल्ली घुमा लाऊं । मुझे सुशांत की ईमानदारी भाई। ये तकलीफ की हद तक ईमानदार हैं। किसी का बुरा नहीं सोचते, मुझे भी समझाते हैं। माफ करने का गुण है इनमें।
सुशांत : मैं पहले ही दिन इनके बालों में उलझ गया था। मोलिना में कला-विधाओं को समझने और विश्लेषित करने की क्षमता है। डांसर-ऐक्टर अच्छी हैं। अनुशासित हैं, जिद्दी भी हैं। मुझे यह मानने में समय लगा कि हमारे बीच प्यार है। जब महसूस किया तो इनसे पूछा, क्या आप मेरे बच्चों की मां बनेंगी? मैं परस्पर सहमति जरूरी मानता हूं। शादी जैसी रूढि मेरे दिमाग में नहीं थी।
मोलिना : ..लेकिन कई कामों में शादी के सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। बच्चों को भी सुरक्षा चाहिए। तो हमारी शादी हो गई।
सुशांत : हम लिव-इन-रिलेशन में थे। 1997 में मोलिना मुंबई आई। इनका दिल्ली में मन नहीं लगता था। मैं दिल्ली गया तो यह मेरे साथ चल दीं। पैसे नहीं थे। हम बिना रिजर्वेशन के ट्रेन में चढ गए। बाथरूम के पास वाली जगह पर बैठे। मैं चार-बंगला में रत्नाकर बिल्डिंग में चार दोस्तों के साथ रहता था। इन्हें देख कर दोस्तों को अटपटा लगा।
मोलिना : मुझे मंत्रालय से स्कॉलरशिप का चेक मिला तो कुछ पैसे आए। छह महीने का भाडा देकर हम चार बंगला म्हाडा आ गए।
सुशांत : मेरी खास कमाई नहीं थी। घर से साढे सात हजार रुपये आते थे। घर वालों को पता था कि हम साथ रहते हैं। इसलिए वहां से शादी का दबाव बढ गया। अंतत: 29 नवंबर 1999 को हमने शादी कर ली।
और शादी हो गई
सुशांत : मणिपुर में लडके वाले शादी का प्रस्ताव लेकर लडकी के घर जाते हैं। मुझे घर वालों को समझाना पडा कि आप चिट्ठी लिख कर इनके यहां प्रस्ताव भेज दें। हम मणिपुर नहीं जा सकते थे। वहां शादी भी सादी होती है। वहां तो भजन संध्या होती है।
मोलिना : ये लोग जाट हैं। इस बात से मेरे परिवार वाले थोडे चिंतित थे। शादी के समय सुशांत जंगल के गेटअप में थे। दाढी बढी, बाल लंबे..। सिर्फ आंखें चमकती थीं। मेरी नानी ने दोनों हाथों से इनके गाल पकड कर देखा। फिर बोलीं, लडका शरीफ लगता है।
सुशांत: जंगल से सात दिन की छुट्टी मिली थी। मां कहती रहीं कि दाढी छंटवा ले।
मोलिना: शादी बिजनौर में हुई। इनके परिवार के लोग बंदूकें दाग रहे थे। मेरे घर वाले तो डर गए। शादी तीन दिन की हुई।
दिल्ली से मुंबई का सफर
मोलिना : सुशांत को चेतन आनंद की एक फिल्म मिली, लेकिन वह बन ही नहीं पाई।
सुशांत : निर्माता भरत शाह थे। वे फिल्म को अटकाते रहे। फिर बोले, हीरो की नाक लंबी है। यकीन करें मैं नाक कटवाने तक के लिए तैयार था। उस समय 35 हजार रुपये लगते थे सर्जरी में। विजय शर्मा सर्जन थे। इसी बीच एक दिन चेतन आनंद का फोन आया। उन्होंने कहा, बेटा सॉरी..। मैं समझ गया। छह महीने हवा में उडा, फिर धडाम से गिरा।
मोलिना : ये डिस्कवरी व नेट जियो के लिए अनुवाद के अलावा डबिंग करते थे। इनका अनुवाद व स्क्रिप्ट आदर्श माना जाता था।
सुशांत : मैं 20-30 हजार रुपये कमा लेता था। एक स्टोव था और दोस्तों के दिए कुछ बर्तन, गृहस्थी चल जाती थी। कोई चेक आता तो भुनाने की जल्दी रहती। पैसों के प्रति तुच्छ सा भाव रहता था।
मोलिना : वे बर्तन अभी तक रखे हैं। हमें कभी डर नहीं रहा कि कल क्या होगा? कई दिन तो सिर्फ दो रुपयों में गुजर जाते थे।
सुशांत : अभी तक यही स्थिति है। बच्चों के आने के बाद थोडा सावधान हो गया हूं।
मुश्किलों के बीच संयम
सुशांत : हमारे लिए चीजें गुम नहीं रहीं। मैं महत्वाकांक्षी नहीं हूं। अहं भी है। स्थिति खराब थी तो काम मांगा, मगर मांग कर देखा भी। न इज्जत मिली, न पैसे और रोल मिला तो छोटा सा। खैर, धीरे-धीरे काम बढा। पैसे आते-जाते रहे। दो साल पहले अकाउंट में सिर्फ तीन हजार रुपये बचे थे। बच्चों की फीस देनी थी। तय किया कि सीरियल कर लेता हूं। कुछ न मिला तो नाटक करेंगे। सफलता के हर रंग मैंने देखे हैं। राजेश खन्ना जैसे स्टार का हाल भी देखा, बच्चन साहब की स्थिति भी देखी। असुरक्षा तो ऐक्टर के खून में होती है। वह नहीं होगी तो परफॉमर् नहीं कर सकता। भाग्यशाली हूं कि अपने ऐसे एटीट्यूड के बाद भी मुझे काम मिला।
मोलिना : मैंने शेखर सुमन के साथ मूवर्स एंड शेखर्स में काम किया। थिएटर में मुझे मजा आता है। नवरस पर प्रोडक्शन किया है। द्रौपदी पर एक स्क्रिप्ट लिखी है। सेकंड प्रोडक्शन गौहर जान पर है। मैं घर व और काम के बीच संतुलन की कोशिश करती हूं। शिवाक्ष के जन्म के दस महीने बाद परफॉर्म किया। घर में मेड रखनी पडी। पहली बार शिवाक्ष को छोड कर दो दिनों के लिए बाहर गई तो मन बहुत घबराया था।
सुशांत : परिवार व बच्चों की जिम्मेदारियों के बाद भी अगर कोई स्त्री बाहर काम कर पाती है तो मैं उसे सलाम करता हूं।
बदल रहे हैं रिश्तों के अर्थ
सुशांत : किसी से प्यार करते हैं तो खुद से पूछें कि उसके लिए कुछ छोड सकते हैं? यदि हां, तो यह प्यार है। प्यार में सूरत नहीं, सीरत खोजें, उसी से प्यार करें। दुर्घटना में दूसरे की शक्ल बिगड गई तो क्या उससे नफरत करेंगे? मुझे लगता है, आगे के 50 साल बाद शादी अप्रासंगिक हो जाएगी। वक्त तेजी से बदला है। वर्चुअल दुनिया में इसके मायने बदलेंगे। लोग और अकेले होते जाएंगे, पता नहीं, संबंधों की शक्ल कैसी होगी तब!
मोलिना : सोचती हूं, बडी होकर मेरी बेटी क्या करेगी! मुझे भी लगता है कि शादी कुछ समय बाद आउटडेटेड हो जाएगी।
सुशांत : अच्छा ही होगा, तब औरतें नेतृत्व करेंगी। आज तो लोगों से कहना पडता है कि स्त्री को इंसान तो समझें।
अजय ब्रह्मात्मज