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सिनेमा को नए अर्थ दिए गैंग्स ऑफ वासेपुर ने

रिअलिस्टिक सिनेमा को नए अर्थ दिए हैं फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर ने। मौलिक कहानी, सशक्त और स्थानीय किरदार, कसी एडिटिंग और देसी आवाजों से बुना गया संगीत..। पांच घंटे 20 मिनट की इस मल्टीस्टारर फिल्म की शूटिंग लगातार 120 दिनों में पूरी की गई। कैसे संभव हो सका एक रीअल कहानी को पर्दे पर उतारना, बता रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।

By Edited By: Published: Wed, 01 Aug 2012 12:54 AM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2012 12:54 AM (IST)
सिनेमा को नए अर्थ दिए गैंग्स ऑफ वासेपुर ने

इस वर्ष जून में रिलीज  हुई गैंग्स ऑफ वासेपुर  ने प्रशंसकों और आलोचकों दोनों को हैरान किया है। महज कहानी और कलाकारों के दम पर फिल्म ने सफलता के नए रिकॉर्ड बनाए। अनुराग कश्यप ने हिंदी फिल्मों को नई जमीन  दी, साथ ही युवा फिल्मकारों  को अपनी जगह बनाने का रास्ता भी दिखाया।

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दो भागों में बनी फिल्म

दो भागों में बनी गैंग्स ऑफ वासेपुर  5  घंटे 20  मिनट की फिल्म है। दोनों भागों को एक बार में देखा जाए तो अलग प्रभाव प्रडता  है। थियेटर और दर्शकों की सुविधा के लिए अनुराग ने इसे दो भागों में रिलीज किया। विदेशी फेस्टिवल में फिल्म प्रेमी इसे एक साथ देख रहे हैं। कान फिल्म फेस्टिवल के डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में चुने जाने और प्रदर्शन के बाद आई तारीफ की खबरों ने फिल्म की हवा पहले ही बना दी। स्टार वैल्यू न होने से आशंका थी कि इसे पर्याप्त दर्शक न मिलें। पहले दिन मुंबई में 10 फीसदी ओपनिंग को ट्रेड पंडितों ने रेखांकित किया तो आलोचक बताने लगे कि फिल्म तो गिर गई। लेकिन फिर दर्शक बढे। एक हफ्ते बाद भी भीड जुटती रही। अनुराग बार-बार कह रहे थे कि यह उनकी सबसे महंगी फिल्म है। अब वह कह सकते हैं कि यह उनकी सबसे कामयाब फिल्म भी है। देव डी की कुल कमाई के बराबर इस फिल्म ने पहले हफ्ते में ही कमा लिया।

वासेपुर की कहानी

कहानी वासेपुर  के एक युवक ने सोची और दोस्तों के साथ इसकी संरचना तैयार की। एक शाम मुंबई के पृथ्वी थिएटर में इन लडकों की भेंट अनुराग कश्यप से हुई, जो पत्नी और अभिनेत्री कल्कि कोइचलिन के नाटक के सिलसिले में वहां मौजूद थे। उन्होंने ध्यान से कहानी सुनी और पहला रिएक्शन था कि यह सिटी ऑफ गॉड  का भारतीय संस्करण है। अनुराग की बात लडकों को बुरी लगी। खुद को सही साबित करने के लिए वे जीशान कादरी को साथ लाए। साथ में स्थानीय अखबारों की पेपर कटिंग्स भी थीं। वे साबित करना चाह रहे थे कि यह सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी है। कटिंग्स देखने के बाद अनुराग चौंके। उन्हें अखबार  की सुर्खियों में फिल्म नजर  आई। उन्होंने जीशान से आग्रह किया कि ढंग से रिसर्च करो और कहानी तैयार करो। सलाह भी दी कि इसे उपन्यास की तरह लिख सकते हो। 248 पृष्ठों की कहानी तैयार हुई तो अनुराग ने मौलिक लेखकों के साथ मिल कर स्क्रिप्ट तैयार की। यह फिल्म सबूत है इस बात का कि निर्देशक की इच्छाशक्ति हो तो देश के किसी भी कोने से कहानी ली जा सकती है।

मनोज से खटपट हुई दूर

फिल्म की कास्टिंग जोखिम भरा क्रिएटिव  फैसला होता है। फिल्म के मुख्य किरदार सरदार खान  की भूमिका के लिए मनोज वाजपेयी चुने गए।

अनुराग ने एक रात मनोज को फोन करके पूछा कि मेरे साथ फिल्म करेंगे? मनोज उसी समय अनुराग के पास पहुंचे और कहानी सुनी। आधी कहानी सुनने के बाद ही उन्होंने हां कह दिया। बीच में अनुराग और मनोज के रिश्तों में कुछ दूरी आ गई थी। दोनों दिल्ली में मिले थे। मुंबई में भी मिलना जारी था। सत्या के समय रामगोपाल वर्मा ने मनोज से नए लेखकों को जोडने की बात कही। मनोज ने अनुराग को रामू से मिलवाया। अनुराग ने रामू के लिए सत्या, कौन? और शूल लिखी। तीनों में मनोज ने काम किया था। मनोज कहते हैं, अनुराग ने संपर्क तोड लिया था, लेकिन मैं हर फिल्म देखने के बाद उन्हें बधाई देता था। एक अंतराल के बाद, बल्कि शायद पहली बार ही मैंने अनुराग के निर्देशन में इस फिल्म में काम किया है।

सशक्त किरदारों का जमावडा

फिल्म के मुख्य किरदारों में नवाजुद्दीन सिद्दिकी, विनीत सिंह, रिचा चढ्डा, हुमा  कुरैशी, जयदीप अहलावत,  जमील अहमद, पंकज त्रिपाठी, रीमा  सेन, जीशान  कादरी हैं। कम मशहूर कलाकारों के साथ फायदा यह है कि फिल्म रिअलिस्टिक लगती है। नवाजुद्दीन  अनुराग को प्रिय रहे हैं। उन्होंने हताशा के दिनों में भी नवाजुद्दीन का यह विश्वास बनाए रखा कि वे बेहतरीन अभिनेता हैं। फैजल  के रूप में उन्हें वैसा ही दमदार किरदार मिला है। शुरू में दब्बू और कमजोर  स्वभाव का फैजल  वक्त आने पर खतरनाक  हो जाता है। फैजल के बडे भाई और सरदार खान के बेटे दानिश के रूप में विनीत सिंह हैं। इस भूमिका के लिए विनीत सिंह ने 16 किलो वजन घटाया। जब वह शूटिंग के लिए बनारस पहुंचे तो उन्हें किसी ने पहचाना ही नहीं। दानिश और फैजल  फिल्म के दूसरे हिस्से में मुख्य भूमिकाओं में नजर  आएंगे।

फिल्म में रामाधीर  सिंह की भूमिका में तिग्मांशु  धूलिया  चौंकाते हैं। बदले की कहानी की उथल-पुथल में शांत चित्त रामाधीर अधिक खतरनाक नजर  आते हैं। तिग्मांशु  के अभिनय में नाटकीयता नहीं है। आक्रामकता  तो है ही नहीं। तिग्मांशु  ने रामाधीर  सिंह के लिए अपनाई गई बॉडी  लैंग्वेज  का फिल्म में अच्छी  तरह पालन किया है। छोटी भूमिकाओं में आए पीयूष मिश्र, पंकज त्रिपाठी, जमील अहमद, जयदीप अहलावत और अन्य किरदार भी फिल्म को रोचक बनाते हैं। अनुराग कहते हैं, मैंने खयाल  रखा कि कलाकार चाल-ढाल, रंग, शरीर व बोलचाल में स्थानीय लगें। चूंकि अधिकतर कलाकार उत्तर भारत के हैं, इसलिए मेरे लिए सब आसान हो गया।

देसीपन की खुशबू

गैंग्स ऑफ वासेपुर  में सरदार खान की बीवी नगमा के रूप में रिचा चढ्डा ने शानदार अभिनय किया है। सरदार खान  की दूसरी बीवी बंगालन  दुर्गा के रूप में रीमा  सेन का चुनाव भी सही फैसला है। बंगाली होने की वजह से रीमा अपनी मौजूदगी भर से चरित्र में ढल जाती हैं। बाकी काम फिल्म के दृश्यों, संवादों और टेकिंग ने कर दिया है। सहयोगी कलाकारों का चुनाव मुंबई, बनारस, पटना और धनबाद में किया गया था।

लगातार 120 दिन शूटिंग

शूटिंग वास्तविक लोकेशन में संभव नहीं थी। अनुराग कहते हैं, रिअलिस्टिक फिल्मों की शूटिंग वास्तविक लोकेशन  पर नहीं करनी चाहिए। कोई विवाद हो जाए तो शूटिंग ठप हो सकती है। हमने लगातार 120  दिनों में शूटिंग पूरी की। इतने कम समय में इतने किरदारों के साथ शूटिंग करना आसान नहीं था। मैं फिल्म के तकनीशियन, सहायक और कलाकारों के सहयोग को श्रेय दूंगा। शूटिंग के दरम्यान वही जोश व जज्बा  था कि हम कुछ अलग कर रहे हैं। फिल्म में पसरा धूसर रंग इसे रिअलिस्टिक  बनाता है और कथ्य को गहरा करता है।

फिल्म के गीत-संगीत का विशेष उल्लेख किया जा रहा है। पहले हिस्से में दर्शकों ने 14 गाने सुने। दूसरे में 12  गाने हैं। अनुराग गानों से परहेज नहीं करते। मगर वे कलाकारों को फिल्म में गाने का अवसर नहीं देते। सभी गाने बैकड्रॉप में चलते हैं। कहते हैं अनुराग, हमने पहले ही फैसला कर लिया था कि फिल्म में जमीन  के गाने देने हैं। हमने वहां की आवाजों,  धुनों और संगीत को लेकर काम किया। संगीतकार स्नेहा खानवलकर ने बनारस, बिहार और वेस्ट इंडीज तक की यात्रा की और नई ध्वनियों से संगीत को सजाया। पीयूष मिश्र और वरुण ग्रोवर  ने फिल्म की थीम और कथ्य से प्रेरित गीत लिखे। नए शब्दों से उन्होंने भावों को नया अर्थ दिया। मनोज तिवारी, शारदा सिन्हा, रेखा झा की आवाज  ने फिल्म के संगीत को देसी बना दिया है। गैंग्स ऑफ वासेपुर  हिंदी फिल्मों के इतिहास में बडा मोड साबित होगी। फिल्म की स्थानीयता  ही मुख्य आकर्षण है। उसकी वजह से ही यह फिल्म देश-विदेश में पसंद की जा रही है।


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