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सबको साथ लाता है हास्य

हंसना सिर्फ इसलिए जरूरी नहीं है कि इससे खुशी जाहिर होती है, बल्कि इसलिए भी यह आपको कई दुखों और विपरीत अनुभूतियों से उबार देता है। जीवन से तनाव को दूर करने के लिए श्री श्री रविशंकर की सीख।

By Edited By: Published: Mon, 03 Jun 2013 11:21 AM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2013 11:21 AM (IST)
सबको साथ लाता है हास्य

लिंग, धर्म व वर्ग के प्रति आपके पूर्वाग्रह ही आपको अपने आसपास के लोगों से घुलने-मिलने नहीं देते। प्राय: आप ऐसे लोगों के साथ बैठते भी नहीं, जो आर्थिक व सामाजिक तौर पर आपके बराबर न हों। आपको इस बाधा से पार पाना सीखना होगा। आयु का भी एक पूर्वाग्रह है। किशोर अधिक आयु के लोगों के साथ मौज-मस्ती नहीं करना चाहते और इसके विपरीत भी उतना ही सच है। धार्मिक पूर्वाग्रह भी किसी से छिपे नहीं हैं। प्रत्येक समुदाय, धर्म व समाज के वर्ग में अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के लोग हैं। उनके प्रति कोई धारणा न पालें। इसके साथ ही अपने अस्तित्व के प्रति भी संकोच न करें। जब आप पूर्वाग्रहों से ऊपर उठेंगे, तो आप बेहद स्वाभाविक होंगे और आपके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

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प्रभावी संप्रेषण

प्रत्येक से प्रभावी संप्रेषण भी अपने-आपमें एक कौशल है। अधिकतर ऐसा होता है कि आप स्वयं को दूसरों से विलग पाते हैं। पूर्वाग्रह से मुक्त संप्रेषण सफलता के लिए बहुत महत्व रखता है। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिलें, जो आपसे अधिक जानकारी रखता है तो एक बालक की तरह हो जाएं और उससे कुछ सीखने के लिए अपनी आंख व कान दोनों ही खुले रखें। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिलें जो आपसे कम जानकारी रखता है तो विनीत भाव से उन्हें अपने बराबर लाने या अपने से भी ऊपर ले जाने का प्रयास करें। किसी छोटे बच्चे से ऐसे खेलें जैसे आप बचपन में स्वयं खेलते होंगे। किसी वृद्ध से यह सोचते हुए बात करें कि एक दिन आप भी उसकी तरह हो जाएंगे। अपने आयु वर्ग के व्यक्ति से इस तरह बात करें, मानो अपने किसी प्रिय मित्र या सखी से बात कर रहे हों। यह संसार हमारी कल्पना से भी कहीं अधिक विविध है और यहां हमेशा कुछ न कुछ सीखने, सिखाने और बांटने के लिए होता है। जब आप केंद्रित होते हैं तो एक प्रभावशाली संप्रेषक बनने में सहायता मिलती है। जब आपके संप्रेषण में सुधार होता है, तो आपके जीवन में सुधार होता है।

गलतियां से भयभीत न हों

जब भी कोई सीमा तोडी जाती है, तो उससे भय उत्पन्न होता है। भय से अरुचि पैदा होती है और अरुचि हमें फिर से उसी सीमा में बांध देती है। आप स्वयं को उसी सीमा में रखने के लिए बचाव की चारदीवारियां गढने लगते हैं। अपने बचाव के लिए किए गए इन प्रयासों से तनाव उत्पन्न होता है। जब भी आप अपनी रक्षा का ऐसा कोई प्रयास करते हैं, तो वह आपको भीतर से कमजोर कर देता है। अपनी सफाई देना छोड दें। जब आप बचाव की कोई कोशिश नहीं करेंगे, तो आप सशक्त बन पाएंगे।

निर्दोष अवस्था में ही आपको अपनी भूल का पता चलता है। चाहे जो भी भूल हुई हो, स्वयं को पापी न मानें, क्योंकि उस नए क्षण में तो आप फिर से नवीन, शुद्ध व साफ हैं। पहले की गई भूल बीती बात हो चुकी है। यह ज्ञान पाते ही आप सही मायनों में संपूर्ण होते हैं।

प्राय: माएं  बच्चों को फटकारने के बाद अपराधबोध महसूस करती हैं। माना आपको बच्चे पर एक-दो बार गुस्सा आया। क्यों? सहजता के अभाव में। आप सजग नहीं थीं, इसलिए क्रोध आ गया। आत्म, सत्य व कौशल का ज्ञान आपके भीतर से श्रेष्ठ को बाहर ला सकता है। अत: गलतियां होने पर भयभीत न हों, पर उन्हें दोहराएं भी नहीं। आपको अपनी भूलों के मामलों में भी तो नवीनता लानी होगी।

हास्यप्रियता अपनाएं

आपके भीतर एक नटखट बालक छिपा है। उसे जीवित रखें। हंसी सारी कठिन परिस्थितियों को सरल कर देगी। हास्यप्रिय व्यक्ति किसी भी तरह के संघर्ष से उबर सकता है। विनोद आपको अपमान से भी बचा सकता है। यदि आप अपमानित होने से इंकार कर देते हैं, तो आप अपराजेय हो जाते हैं। हास्य सबको एक साथ लाता है, जबकि अवमानना दीवार खडी कर देती है। अपमान व अवमानना से बंटे समाज में विनोद या परिहास ताजा हवा के झोंके की तरह है।

हास्य में दूसरे के लिए परवाह व देखभाल का भाव भी होना चाहिए। हास्य आपकी आत्मा को उज्ज्वल बना सकता है, किंतु इसका अधिक प्रयोग मन में कडवाहट भी ला देता है। प्रज्ञा के अभाव में परिहास खोलता है। संवेदना के अभाव में हास्य व्यंग्य है। यह और अधिक संकट पैदा कर देता है।

प्रज्ञावान  प्रज्ञा उत्पन्न करने व परिस्थितियों को हलका बनाने के लिए इसका प्रयोग करता है। बुद्धिमान अवमानना के प्रति ढाल के तौर पर प्रयोग में लाता है। क्रूर इसे दूसरों के अपमान के लिए तलवार की तरह प्रयोग में लाता है। गैर जिम्मेदार व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोडने के लिए इसका सहारा लेता है और मूर्ख परिहास को गंभीरता से लेता है।

हास्यप्रियता केवल शब्द नहीं, आपके भीतर की सहजता है। आपको चुटकुले पढने और दोहराने की आवश्यकता नहीं। जीवन को अधिक गंभीरता से न लें। आपको उनके प्रति भी जुडाव पैदा करना होगा, जो आपके मित्र नहीं हैं। योग व ध्यान का अभ्यास करें। उस दैवी शक्ति व उसके कर्म के नियम में पूरा विश्वास रखें। उन व्यक्तियों की संगति में रहें, जो ज्ञानी तथा हास्यप्रिय हैं। अपने भीतर एक मसखरा बनने की इच्छा रखें।

स्वयं को विलग कर लें

जिस तरह हम कैलेंडर के पन्ने पलटते हैं, उसी तरह हमें अपने मन को भी पलटने की आवश्यकता होती है। प्राय: हमारी डायरियां बीती बातों से भरी होती हैं। ध्यान दें कि आप आने वाली तिथियों को पिछली घटनाओं से न भरें। रचनात्मकता को उदित होने का पूरा अवसर दें। नए वर्ष का उत्सव मनाते हुए, उसे अवसर दें कि वह आपको और भी बुद्धिमत्ता प्रदान कर सके। अतीत से सबक लें और आगे बढें। पिछले दिनों में, आप कितने दिनों तक संन्यास में थे? कितने दिन तक आप माया के जाल में पडे रहे? पीछे मुडें और पूरे वर्ष को याद करें। किसी भी चीज से भागें नहीं। किसी को भी अस्वीकार न करें। किसी भी चीज से दूर न जाएं। इसके साथ ही, अपने ऊपर ध्यान देते रहें। यह एक महीन संतुलन है। वह संतुलन है, योग।

एक निर्धन वर्ष में एक बार ही नववर्ष का उत्सव मनाता है। धनी प्रत्येक दिन उसका उत्सव मनाता है, परंतु सबसे धनी व्यक्ति प्रत्येक क्षण का उत्सव मनाता है। आप कितने धनी हैं? यदि आप प्रत्येक पल का उत्सव मनाते हैं तो आप सृष्टि के स्वामी हैं।

जब आप संसार के लिए जी रहे हैं तो यह संसार भाग्यवान है। समय को अपनी उपस्थिति का उत्सव मनाने दें। आप हमेशा की तरह मुस्कुराते रहें। जब आप समय को अपना उत्सव मनाने देंगे, तो आप उस उत्सव के बीच साक्षी होंगे। हमारा हृदय सदा पुराने को चाहता है और मन नवीनता चाहता है। जीवन इन दोनों के ही मेल से बना है। नए वर्ष को अपने जीवन में प्राचीन प्रज्ञा व आधुनिकता, दोनों का ही समावेश करने दें, क्योंकि जीवन इन दोनों के बिना ही अधूरा है। मानवीय व आध्यात्मिक मूल्यों के बारे में बात करते समय संकुचित न हों। अब पूरे संसार को पुकारने का समय आ गया है।

प्रार्थना का महत्व

प्रार्थना भी आपके जीवन में सुधार के लिए बहुत महत्व रखती है। अखंडता व ईमानदारी जैसे मूल्यों को भी पोषण देती है। प्रार्थना दो स्थितियों में घटती है और फिर दो स्थितियों के मेल में। जब आप स्वयं को आभारी मानते हैं या फिर स्वयं को असहाय पाते हैं। यदि आप आभार प्रकट करते हुए प्रार्थना नहीं करते, तो आपकी स्थिति दयनीय हो सकती है। दोनों ही दशाओं में आपकी प्रार्थनाओं का प्रत्युत्तर आता है।

आप जो कर सकते हैं, करें। जो नहीं कर सकते, उसके लिए प्रार्थना करें। कहते हैं कि जब आप दिव्यता के लिए प्रार्थना करते हैं, जब आप उसके लिए आंसू बहाते हैं, जब आप उसके लिए गाते हैं, तो वह आपके भीतर उदित होती है। दैवी तत्व केवल इस प्रतीक्षा में है कि आप अपने भीतर थोडा और गहरा पैठें, क्योंकि तभी यह आपको और अधिक अमृत से परिपूर्ण कर सकता है। दिव्यता चाहती है कि आप अपने भीतर और अधिक स्थान उत्पन्न करें। सहायता के लिए आप अंतरात्मा से पुकारें। जो जिज्ञासु ज्ञान की शक्ति से शक्तिशाली हो चुके हैं, वे अपनी उपलब्धि के आनंद का गीत गा सकते हैं। जब आप उस परम सत्ता के प्रति आभार व्यक्त करते हुए गाते हैं, तो आपके भीतर भी दिव्यता का उदय होगा और आप भरपूर हो उठेंगे। कुछ व्यक्ति हर प्रकार की वृद्धि के लिए आभार प्रकट करते हैं, कृतज्ञता दर्शाते हैं तथा दूसरे प्रकार के व्यक्ति असहाय व दुर्बल हैं। दोनों ही सहायता पाएंगे। आध्यात्मिकता कोई कर्मकांड नहीं है। यह तो आपकी उन्नत अवस्था है, जो पूरे जगत को एक चेतना के रूप में देखती है। अपने व्यक्तित्व में अखंडता लाने के लिए प्रार्थना का उपयोग करें। आज जो भी करें, यह याद रखें कि वह सर्वोच्च सत्ता ही अंतिम निर्णय देती है और वही सदा बेहतरी के लिए होगा।

बात एक बार की मुट्ठी खुले तो..

एक बच्चे को अपना मनपसंद खिलौना मिल गया। कई बार मांग के बाद मिला था, क्योंकि बेहद महंगा खिलौना था। स्वाभाविक रूप से बच्चा बहुत ख्ाुश हुआ और पाते ही खेलने लगा। अचानक उसने अपना हाथ उस खिलौने के अंदर डाल दिया और फिर बाहर निकालने की तमाम कोशिशों के बावजूद वह उसे बाहर नहीं निकाल सका। तो वह खिलौना लिए रोता हुआ पिता के पास आया। अब एक ही रास्ता था कि खिलौने को तोडा जाए। तभी पिता ने गौर किया कि यह अपनी मुज्ञ्‍ी तो खोल ही नहीं रहा। पिता ने समझाया, बेटा ऐसा कर तू अपनी सारी उंगलियों को एकदम सीधा कर और बाहर खींच ले।

नहीं कर सकता पापा, बच्चे ने कहा।

क्यों, क्या हुआ बेटा? पिता ने पूछा।

मेरी मुज्ञ्‍ी में एक रुपये का सिक्का है। अगर मैंने हाथ निकाला तो सिक्का तो इसके पेट में ही गिर जाएगा, बच्चे ने अपनी समस्या बताई।

यह हाल बच्चे ही नहीं, बडों का भी है। हाथ में जो है, उसे बचाने के लिए वे उससे बहुत मूल्यवान ची•ों छोड देते हैं। हालांकि अगर उन्होंने समय से उसे छोड दिया होता तो शायद ज्यादा मूल्यवान ची•ाों से अब तक उनकी मुज्ञि्‍यां भरी होतीं।

रविशंकर


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