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मुश्किल में प्रेम

कहते हैं कि प्यार तलवार की धार पर नंगे पैर दौडऩे जैसा है। प्यार वह है जिसके लिए सब कुछ छोड़ा जा सके। अब इसी प्यार के चलते तेज़ाबी हमलों से लेकर अपहरण और हत्या तक हो रही है। क्या यही प्यार है? जवाब की तलाश इष्टï देव सांकृत्यायन के

By Edited By: Published: Fri, 23 Jan 2015 02:18 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jan 2015 02:18 PM (IST)
मुश्किल में प्रेम

कहते हैं कि प्यार तलवार की धार पर नंगे पैर दौडऩे जैसा है। प्यार वह है जिसके लिए सब कुछ छोडा जा सके। अब इसी प्यार के चलते तेजाबी हमलों से लेकर अपहरण और हत्या तक हो रही है। क्या यही प्यार है? जवाब की तलाश इष्ट देव सांकृत्यायन के साथ।

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बहुत दिन नहीं गुजरे जब लोगों के लिए प्रेम का अर्थ त्याग होता था। केवल एक पीढी पीछे आपकेआसपास ही ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जिनमें लोग अपनी किशोरावस्था के प्यार की परछाईं को आज तक अपने भीतर संजोए हुए हैं। स्कूल में पढते या गली में खेलते हुए मन में प्यार के बीज पनपे, उनमें अंकुर निकले, पर इसके पहले कि वे नन्हे पौधे भी बनते, परिवार और समाज के दबाव में दोनों अलग-अलग रास्ते पकडऩे को मजबूर हो गए। कई बार तो अंकुर भी नहीं फूटने पाते थे। प्यार मन में ही रह जाता था। कोई बहुत जिगरी दोस्त जान पाया हो तो अलग बात है, वरना प्रेम के पात्र व्यक्ति तक जानते हुए भी यह सुनने के लिए तरस कर रह जाते थे कि मैं तुम्हें प्यार करता/करती हूं। जानते थे कि दूसरे के मन में भी ऐसा कुछ है और यह जान कर अच्छा लगता था, लेकिन कह नहीं पाते थे। अब आप चाहे तो इसे एक अपरिपक्व मन का संकोच कह लें, या समाज का भय या फिर कुछ और...। लेकिन इसमें यह जो कुछ भी था, वह उसके साथ-साथ आज के उत्तर आधुनिक कहे जाने वाले वैल्यूज से कहीं ज्य़ादा आधुनिक व उच्चतर जीवनमूल्य था और वह था दूसरे की भावनाओं को ठेस न पहुंचाने का।

यह वाकई एक जीवनमूल्य था, इसका पता इस बात से चलता है कि ये टीसते दिल इन अनाम रिश्तों को जीवनपर्यंत सहेजे रहते थे। बस वही दो जान पाते थे, अपने प्रति भिन्न-भिन्न रूपों में उमडती दूसरे की भावनाओं की बाढ से, जिसे वे चुपचाप सहेज लेते थे। बिना कुछ कहे, बिना किसी को बताए। कभी कोई बात हो गई तो उसका एक-एक शब्द जीवन भर याद रखा। कहीं चि_ियों का आदान-प्रदान हो गया, तब तो उसे सात तहों में छुपा कर सहेजा गया, जीवन की सबसे अनमोल थाती की तरह। कई मामलों में तो बस एक धुन की तरह भीतर ही भीतर बजता रहता था प्यार। लक्षित व्यक्ति जिसे पढ-सुन कर सिर्फ अनुमान लगा पाता था... 'कहीं इस कहानी, कविता या उपन्यास का नायक/नायिका मैं ही तो नहीं। अगर ऐसा था तो बोला क्यों नहीं, कम से जान तो जाते... विफल प्यार ने ही बहुतों को कवि, लेखक, गायक, चित्रकार... बहुत कुछ बनाया है। ऐसे थोडे कहा है, 'इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया/ वरना हम भी आदमी थे काम के। सुमित्रानंदन पंत कहते हैं, 'वियोगी होगा पहला कवि/ आह से उपजा होगा गान और यही बात पोलिश कवि तेद्यूश रोजेविच इस तरह कहते हैं, 'वही है कवि जो चाहता है छोड देना/ और वह जो छोड पाता नहीं।

आपका दिल ज्वालामुखी की तरह है। उसमें गुस्सा भरा है। आप अपने हाथों में फूलों के खिलने की उम्मीद भी कैसे करते हैं?

-खलील जिब्रान

प्यार की औकात

अपने विफल प्यार को शब्दों, सुरों और रंगों में ढाल कर समाज को सौंप देने और दुखों के अंधे मोड पर ख्ाुद भी उसी से रोशनी लेने वाली पीढी ने पिछली सदी के अंतिम दौर में जब खुलेपन की हवा के झोंके महसूस किए तब उसे कुछ खटका तो हुआ, पर अच्छा भी लगा। उसे लगा कि चलो हमने घोंटा तो घोंटा, पर हमारी अगली पीढी को अपने प्यार का गला तो नहीं घोंटना पडेगा। बेशक, बहुत मामलों में ऐसा हुआ भी। कुछ लोगों ने तो इसका ऐसा उम्दा इस्तेमाल किया कि अपने स्थानीय समाज और देश ही नहीं, पूरी मनुष्यता के लिए उदाहरण बन गए। आज जहां एक तरफ हम वास्तविक परिचय ही नहीं, इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न चैट रूम्स या सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिये वर्चुअल परिचय के पहले प्रेम में बदलने और फिर इसी नाम पर ठगी के मामले देख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी कई रिश्ते हैं जो आभासी दुनिया से शुरू होकर जीवन भर के वास्तविक साथ में बदल गए और पूरी शिद्दत से निभाए जा रहे हैं।

लेकिन यह क्या? इसी समय में वर्षों के वास्तविक साथ और जीने-मरने की कसमें खाने के बाद जरा सा इनकार का धक्का लगते ही बदले की आग इस तरह उबल पड रही है कि तेजाब निकल आता है! लडकी का अपहरण कर लिया जाता है और सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या तक के जघन्य अपराध...! इतना ही नहीं, नए प्रेमी की मदद से पुराने ब्वॉयफ्रेंड के कत्ल के वाकये भी देखे-सुने जा रहे हैं। कुछ घटनाएं तो ऐसी भी हुईं कि पूरी मनुष्यता का सिर शर्म से झुक जाए। और यह सब प्यार के नाम पर! यह किस िकस्म का प्यार है, जो जरा से धक्के पर अपनी औकात दिखा दे? यह पुरुष ही नहीं, स्त्री की ओर से भी रहा है। फर्क अब केवल मात्रा का ही रह गया है। पुरुष इस कृत्य में ज्य़ादा हैं, क्योंकि हमारे देश में उनकी स्थिति आज भी अधिक सुविधाजनक है। हमारी परंपरा पुरुष को संपत्ति पर पहला अधिकार देती है। इस अधिकार के मद में वह भूल जाता है कि परंपरा ने ही उसके लिए कुछ कर्तव्य भी तय किए हैं और कर्तव्यों को छोड भागने या उनके विरुद्ध आचरण करने वालों को कायर तक कहा है।

हम अकेले पैदा हुए हैं, अकेले जीते हैं और अकेले ही मरते हैं। केवल प्यार और दोस्ती ही वह जरिया है, जिससे कुछ पल के लिए यह भ्रम पाल सकते हैं कि हम अकेले नहीं है।

-ऑर्सन वेलेस

महत्वपूर्ण मैं नहीं

चाहे नल-दमयंती हों, या ढोला-मारू, या फिर रोमियो-जूलिएट या लैला-मजनू... सैकडों-हजारों साल बाद इन्हें आज भी दुनिया याद करती है। क्यों? क्योंकि इन्होंने एक-दूसरे को प्रेम किया। प्यार करने वाला दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन अपने लिए नहीं। उसके लिए तो वही महत्वपूर्ण है, जिससे उसे प्यार है। वहां कोई दूसरे कारण, या स्वार्थ का क्या महत्व? प्यार की पहली पाठशाला है परिवार। माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन जैसे कई रिश्ते वहीं मिलते हैं और सबका प्यार आप पर छलकता है, बिना किसी स्वार्थ और अपेक्षा के। समय के साथ इस परिवार का विस्तार होता है। कोई आपसे जुड कर आपके परिवार का हिस्सा बन जाता है और आप भी उसके परिवार के हिस्से बन जाते हैं। हर हाल में इसे किसी न किसी रिश्ते का नाम दिया जाता है, जिसमें भरपूर भरोसा, विश्वास और सबसे बढ कर प्यार जुडा होता है। यह जितना बढता जाता है, परिवार और रिश्तों में उतनी ही मजबूती आती जाती है। लेकिन, प्यार बढे इसके लिए जरूरी है भरोसा और भरोसे के लिए जरूरी है एक-दूसरे के सुख-दुख, जरूरतों व इच्छाओं का ख्ायाल, भावनाओं का सम्मान और दूसरे के मन में आपके प्रति सुरक्षा का भाव। यही शर्त परिवार के बाहर के संबंधों की भी है।

संबंध चाहे बाहर के हों या फिर घर के, चाहे-अनचाहे कई बार इनमें दूरियां भी आ जाती हैं। कभी इनकी वजह कोई स्वार्थ होता है, तो कभी कोई गलतफहमी और कभी असुरक्षा की भावना, लेकिन अगर ये टूटने के कगार तक पहुंचते हैं तो इसके कारण सिर्फ दो ही होते हैं और वे हैं प्रबल अहंकार और स्वार्थ। अपने अहं व स्वार्थ में इस तरह अंधे होना कि दूसरे की भावनाएं तो क्या, दुख-दर्द तक की कोई परवाह न करना। रिश्तों में दूरियां आती तो धीरे-धीरे हैं, पर बता कर। वे बार-बार आगाह करती हैं। यहां तक कि ख्ाुद आपका अंतर्मन भी आपको बार-बार चेतावनी देता है, पर आप अपनी ही आवाज को हर बार सुन कर अनसुना कर देते हैं। यही एक बात किसी के प्रिय को उससे दूर कर देती है और दूरियां बढते-बढते इस हद तक पहुंच जाती हैं कि मारपीट, अपहरण और एसिड अटैक से लेकर हत्या तक की बीभत्स घटनाएं हो जाती हैं।

दूरियां कभी इसलिए बढ जाती हैं कि किसी ने मनमुताबिक काम नहीं किया, तो कभी इसलिए कि उसने अनावश्यक डांट-फटकार बर्दाश्त नहीं की और कभी इसलिए कि कोई मांग नहीं मानी। यह मांग धन से लेकर शरीर तक कुछ भी हो सकती है। धन, जो परिवार और मित्रों के सुख के लिए ही कमाया जाता है, के लिए परिजनों और मित्रों तक की हत्याएं आम बात हो गई हैं। दहेज के विरुद्ध कडे कानून होने के बावजूद आज तक हमारे देश में न तो यह कुप्रथा रोकी जा सकी और न इसके लिए होने वाली हत्याएं ही। किसी के लिए यह प्रतिष्ठा का प्रश्न है तो किसी के लिए लालच की इंतहां। यहां तक कि लोग झूठी शान के नाम पर अपने ही बच्चों की जान ले ले रहे हैं। क्या इसे कोई किसी भी तरह उचित ठहरा सकता है? नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो के आंकडे बताते हैं कि देश में हर तीसरे मिनट पर किसी न किसी स्त्री के विरुद्ध अपराध होता है। हर 29वें मिनट पर दुष्कर्म होता है और हर 77वें मिनट पर दहेज के लिए एक स्त्री की जान ली जाती है। पूर्व केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी स्वयं कह चुकी हैं कि देश की 70 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं।

प्यार का पहला कर्तव्य है सुनना।

पॉल टिलिच

जानें तो सही

प्रेम का होना और टिकना बराबरी की भावना पर ही संभव है। ये तथ्य यह जाहिर करने के लिए काफी हैं कि सिमोन द बोउवार के शब्दों में कहें तो हमारे समाज में स्त्री की स्थिति अभी भी 'द सेकंड सेक्स की ही है। इन घटनाओं पर गौर करें तो लगता है कि रिश्तों में बराबरी और प्यार का दिखावा चाहे जितना बढा हो, प्यार नहीं। यही वजह है जो यह सब करने के लिए मजबूर करती है और ऐसा करने से पहले कोई भी अपने भीतर झांकने की जहमत नहीं उठाता। अगर एक क्षण के लिए अपने भीतर झांक सके तो वह ऐसा कोई कदम कभी न उठाए। हमारे जीवन और संसार में प्रेम बचा रहे इसके लिए जरूरी है कि न केवल अपने भीतर से आती आवाज, बल्कि दूसरे की भावनाएं, जरूरतें, शिकायतें और उसके विचार भी जानें और समझें। उनकी कद्र करना सीखें।

प्यार में शर्तें नहीं होती : करीना

मैं एक बिंदास लडकी हूं। अपनी शर्तों पर जीती हूं। लेकिन किसी को मेरी किसी बात से दुख न पहुंचे, इसका खयाल हमेशा रखती हूं। मैं बॉलीवुड पार्टियों में अधिक नहीं जाती। काम से समय मिलने पर परिवार के साथ वक्त बिताती हूं। शादी के बाद भी मेरे जीवन में अधिक बदलाव नहीं आया। प्यार में शर्तें नहीं होनी चाहिए, वरना रिश्ते की बुनियाद वहीं कमजोर हो जाती है। सैफ ने कभी मुझे किसी चीज के लिए रोका-टोका नहीं। परिवार और काम के बीच समय का तालमेल हर हाल में होना ही चाहिए। कई लोग कहते हैं कि उन्हें पर्सनल लाइफ के लिए वक्त नहीं मिलता। मुझे यह कहना पसंद नहीं। हम दोनों एक-दूसरे और परिवार के साथ रहें और फिल्में भी करें, तभी हमारी लाइफ सुखद हो सकती है। किसी भी रिश्ते को वक्त चाहिए होता है। करियर के मुकाम पर पहुंच कर लोग इस बात को भूल जाते हैं, पर मैंने ऐसा नहीं किया। शर्मिला जी ने भी शादी के बाद परिवार को पूरा महत्व दिया।

मुझे लगता है कि प्यार को बयां नहीं किया जा सकता। इसमें जोश है। त्याग की भावना है। बहुत सारी चीजें हैं। ये दो लोगों के बीच होता है। जाति-धर्म या क्षेत्र के नाते आप किसी को किसी से प्यार करने से रोक नहीं सकते। आप किसी से ये नहीं पूछ सकते कि क्या आप मुसलमान हैं या हिंदू हैं, तभी प्यार करेंगे। प्यार एक एहसास है, एक भावना है।

इस मामले में मैं अपने को बहुत खुशकिस्मत मानती हूं कि मैंने जिससे शादी की है, वह बहुत ही अलग और मॉडर्न िकस्म की सोच रखते हैं। मेरी फेमिली के अलावा सैफ की फेमिली ने भी मुझे हर तरह से सपोर्ट किया है। मुझे ख्ाुद को बदलना नहीं पडा है। हमने एक-दूसरे को जैसे हैं, वैसे एक्सेप्ट किया है।

विश्वास है आधार: मल्लिका सहरावत

मेरे लिए प्रेम का अर्थ विश्वास है। विश्वास ही सभी रिश्तों का आधार होता है। यह तभी मजबूत होता है जब हम एक-दूसरे पर यकीन करते हैं। जिस रिश्ते में विश्वास का अभाव होगा वहां प्यार होगा ही नहीं। हमारे पारिवारिक मूल्य और सांस्कृतिक धरोहर विश्व प्रसिद्ध हैं। इस कारण रिश्तों में ढलने वाला बेशुमार प्यार है। हमारे यहां रिश्तों की नींव बचपन से ही मजबूत कर दी जाती है। संबंधों में प्यार के भाव को समझा दिया जाता है। यही कारण है कि हमारे रिश्तों की गहराई का अध्ययन करने के लिए विदेश से लोग आते हैं। मेर े मुताबिक प्यार में स्वार्थ के लिए स्थान नहीं होता। जिस दिन रिश्तों में स्वार्थ आ जाएगा, प्यार का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। रोज कहीं न कहीं प्रेम संबधों में धोखा खाए, घरेलू हिंसा और ऑनर किलिंग की ख्ाबरें मीडिया में छाई रहती हैं। प्यार में नाकाम प्रेमियों द्वारा एसिड अटैक की रोंगटे खडे करने वाली ख्ाबरें भी आती हैं। ये ख्ाबरें हमें सोचने पर विवश करती हैं। हम किस समाज में जी रहे हैं। ये लोगों की विकृत मानसिकता और लडकियों की सुरक्षा पर भी सवाल खडे करती हैं। प्यार किसी से जबर्दस्ती न किया जा सकता है न कराया जा सकता है। अगर प्यार में नाकाम शख्स किसी को मारने पर उतर आए तो उसे प्यार नहीं कहेंगे। यह तो अपराध की श्रेणी में आएगा। प्यार का दूसरा नाम त्याग भी है। मेरे मानना है कि शिक्षा की कमी और घरेलू माहौल भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। अभी भी हमारे समाज में लडके-लडकियों की परवरिश में भेदभाव होता है। इसे मिटाने के लिए शिक्षा का स्तर सुधारना होगा। जिस प्रकार लडकियों को बचपन से ही शालीन रहने की सीख दी जाती है , वैसे ही लडकों को लडकियों के साथ सभ्य बने रहना भी सिखाना जरूरी है।

बदला है नजरिया

वरुण धवन

इश्क को समझना तो जरा टेढी खीर है, मगर उपभोक्तावाद के इस युग में प्यार के मायने बहुत तेजी से बदल रहे हैं और क्यों न बदलें? इस भागमभाग की दुनिया में जिंदगी जीने का नजरिया भी तो बदला है, अत: प्यार के समीकरण भी बदले हैं और इंसान भी बदल गया है, जो केवल भौतिकतावाद के चक्रव्यूह में फंसकर रह गया है। उसे सच्चे प्यार से कोई मतलब नहीं, उसका तो केवल सुख-सुविधाओं से ही वास्ता रह गया है। आप सामने वाले को जितनी भी सुख-सुविधाएं देंगे, समझ लीजिए, आपके प्यार का ग्राफ उतना ही ऊपर चढेगा। हम यूं कह सकते हैं कि आज प्यार एक लेन-देन की वस्तु-भर रह गया है। इसमें सौदेबाजी होने लगी है, प्यार में शर्तों का आगमन हुआ है, और यह सच्चे प्रेम में सबसे बडी बाधा है। दरअसल प्यार में कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। पर आपको आज ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे। मसलन अगर मुझसे प्यार करते हो, तो यह मत करो या वह मत करना जैसी शर्तें अपने आप शामिल कर ली जाती हैं। पर याद रखिए प्यार में अगर कोई शर्त जुड जाती है, तो इसका सीधा-सा मतलब है कि वह प्यार, प्यार नहीं वरन एक शर्त है।

प्रेम बिना जीवन सूना: मनोज तिवारी

मैं क्या, हम सभी बचपन से यही सुनते आ रहे हैं कि प्रेम बिना जीवन सूना..., तो इसके बिना जिंदगी में कुछ है क्या? जिस जीवन में प्रेम नहीं, वह जीवन कैसा? यह बिना स्वार्थ के ही टिकता है। जहां लेन-देन जैसी कोई शर्त आई, वहां प्रेम कहां और प्रेम में पैसे की औकात क्या? पैसे से प्रेम की तुलना करना बेमानी है। दोनों की कोई तुलना नहीं हो सकती। पहले प्रेम कहानी में हम अक्सर देखते या सुनते थे। इनसे अलग इतिहास भी बताता है कि प्रेम के लिए लोग जान देने से भी हिचकते नहीं थे, लेकिन आज तो एक गया, दूसरा तैयार रहता है। यह कौन सा प्रेम है? इसे सच्चा पे्रम तो नहीं कहा जा सकता। वैसे आज एक फैशन भी चल पडा है प्रेम का, जिसमें प्रेम कम और दूसरे अर्थ ज्य़ादा निहित होते हैं। एक की ही बात नहीं है, दूसरा पक्ष भी बहुत चालाकी से अपने काम निकालने के फेर में रहता है। ऐसे में सच्चे प्रेम की तलाश तो बहुत ही मुश्किल है। हां, जो सच्चे दिल से प्रेम में डूबे हैं, उन्हें सचेत भी रहना पडेगा। अब प्रेम में अंधा होने का वक्त नहीं है। ऑनर किलिंग और इससे जुडी जो भी घटनाएं घटती हैं, कहने के लिए उनके कारण तो कई हो सकते हैं, लेकिन मुख्य कारण अहंकार और स्वार्थ ही हैं।

प्रेम हो या कोई और संबंध, उसमें भावना के साथ-साथ समझ भी बहुत जरूरी है। कुछ भी करने या कहने से पहले यह तो देखना ही होगा कि हमारे इस व्यवहार से किसी को कष्ट तो नहीं पहुंचेगा। यह बात हर स्तर पर सोचने की जरूरत है। अगर दोनों पक्ष न्यूनतम समझदारी भी बरतें तो कभी अप्रिय स्थिति आए ही नहीं।

प्यार में प्रूफ की जरूरत नहीं होती: सोनाली राठौर

हमारे दांपत्य की सफलता का राज आपसी अंडरस्टैंडिंग और एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना ही है। प्रेम के मायने मेरे लिए एक-दूसरे को स्पेस देना है। ऐसा रिलेशन जिसमें दोनों स्वतंत्र हों। एक-दूसरे के लिए आपसी समझ हो। यही जुडाव प्यार बढाता है। हर संबंध चाहे मां-बेटी हो, पिता-पुत्र, पति-पत्नी या बॉस और उसके कर्मचारी सभी में स्पेस देना जरूरी है। इससे प्यार और विश्वास बरकरार रहेगा। प्यार में शक के लिए जगह नहीं होती। अविश्वास होने पर ही संबंध बिगडते हैं। प्यार मासूम सा अहसास होता है। महसूस किया जाता है। इसके लिए किसी प्रूफ की जरूरत नहीं होती। जहां तक संबंधों में विश्वासघात और अविश्वास की बात है, इसकी जड में पैसा, दिखावे की लाइफस्टाइल, तेज रफ्तार से भागती जिंदगी है। आजकल हर जगह कमर्शियल एंगल बढ गया है। ये रिश्तों में भी इन्वाल्व हो गया है। अब लोग दिखावटी जिंदगी में ज्य़ादा यकीन करने लगे हैं। जहां तक ऑनर किलिंग की बात है उसका कारण महिलाओं को पुरुष के समान दर्जा नहीं मिलना है। अब भी समाज में लडकियों के साथ भेदभाव का रवैया अपनाया जाता है। भ्रूण हत्या जारी है। लडकी को दूसरी जाति, धर्म या भाषा के व्यक्ति से प्यार की इजाजत नहीं होती। अगर वह ऐसा कर बैठती है तो इसे गुनाह मान लिया जाता है। लडकियों को अपनी मर्जी से जीने का पूरा हक है। मेरा मानना है कि घरेलू हिंसा या ऑनर किलिंग तभी रुकेगी जब समाज शिक्षित होगा। इसकी शुरुआत हमें अपने घर से करनी होगी। लडकियों को लडकों के बराबर दर्जा देना होगा। सोच को आधुनिक बनाना होगा।

देने का नाम है प्रेम संदीप नाथ

मेरी समझ से प्रेम सिर्फ देने का नाम है। इसमें नि:स्वार्थ भाव से एक-दूसरे के प्रति आदर होना बहुत जरूरी है। आप जिससे सच्चा प्रेम करते हैं, वह कोई भी हो सकता है। प्रेम से किसी और चीज की तुलना की ही नहीं जा सकती। वैसे यह बहुत हद तक किसी व्यक्ति की सोच पर निर्भर है कि वह प्रेम को किस तरह देखता है। अब तो कई ऐसे िकस्से सुनने में आ जाते हैं कि प्रेम के जरिये किसी ने कुछ पाने की चेष्टा की हो। हमें यह भी देखना चाहिए कि कोई सच्ची भावनाओं से खेलने का इरादा तो लेकर नहीं आया है? हमारे समाज में अभी भी ऑनर किलिंग की घटनाएं हो रही हैं। प्रशासन प्रेमियों को सुरक्षा देने की बात तो करता है, पर कई बार हाथ भी खडे कर देता है। इस तरह की घटनाएं समाज में न हों और जीवन में प्रेम बचा रहे, इसके लिए हमें अपनी सोच बदलनी होगी। यह समझना होगा कि हर किसी को अपनी तरह से जिंदगी जीने का हक है और उसे इसकी आजादी मिलनी चाहिए। इस बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए मेरी वजह से किसी को दुख तो नहीं पहुंच रहा है।

इंटरव्यू : मुंबई से अमित कर्ण एवं स्मिता श्रीवास्तव, दिल्ली से रतन

इष्ट देव सांकृत्यायन


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