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मंजि़ल के हमराह पुरुष

अपनी पार्टनर की तरह फलक के झिलमिलाते सितारे तो नहीं हैं वो। न तो उनके आने पर ऑटोग्राफ लेने वालों की भीड़ जुटती है, न ही कैमरों के फ्लैश चमकते हैं। लेकिन कुछ तो बात है उन पुरुषों में कि उनके नूर से करोड़ों पुरुषों की राहें रौशन हो उठी

By Edited By: Published: Wed, 19 Nov 2014 03:59 PM (IST)Updated: Wed, 19 Nov 2014 03:59 PM (IST)
मंजि़ल के हमराह पुरुष

अपनी पार्टनर की तरह फलक के झिलमिलाते सितारे तो नहीं हैं वो। न तो उनके आने पर ऑटोग्राफ लेने वालों की भीड जुटती है, न ही कैमरों के फ्लैश चमकते हैं। लेकिन कुछ तो बात है उन पुरुषों में कि उनके नूर से करोडों पुरुषों की राहें रौशन हो उठी हैं। उन्हें न तो 'हेड ऑफ द फे मिली का तमगा हासिल करने की कोई चाहत है, न ही सुपीरियर होने का गुमान। वही तो हैं जिन्होंने मैस्क्युलिनिटी को सही मायने में परिभाषित किया है। अपनी बेटर हाफ को सफल बनाने के ईमानदार प्रयास करके। न सिर्फ उसके सपनों की इमारत अपने मन की जमीं पर खडी की, बल्कि उसकी बुलंदी के लिए सतत प्रयास भी किए। समर्पण की ईंटों को त्याग की सीमेंट से पुख्ता बनाया। यह मेहनत रंग लाई और उनकी पार्टनर्स की सफलता के चर्चों के साथ हवा में उनकी महक भी हमेशा के लिए घुल गई। स्त्री की सफलता में भागीदारी दर्ज कराने वाले पुरुषों और उनकी सफल पार्टनर्स के मन को टटोला ज्योति द्विवेदी ने।

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कहते हैं, 'हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री होती है। चलिए एक प्रयोग किया जाए। इस कथन को उलट कर पढते हैं। 'हर सफल स्त्री के पीछे एक पुरुष होता है। इसके बारे में आपका क्या ख्ायाल है? समाजशास्त्रियों और मनौवैज्ञानिकों की मानें तो भारत में ऐसे पुरुषों की संख्या लगातार बढ रही है जो अपनी पार्टनर को सफल बनाने के लिए न सिर्फ हर संभव प्रयास करते हैं, बल्कि उनके संघर्ष के पलों को अपने व्यक्तिगत संघर्ष की श्रेणी में शामिल कर लेते हैं। आज के अल्ट्रा मॉर्डन दौर के ये पुरुष न सिर्फ रिलेशनशिप निभाने में सफल हैं, बल्कि बाकी पुरुषों के रोल मॉडल भी साबित हो रहे हैं। ये प्रोफेशनली भले ही बहुत सफल और चर्चित न हों, लेकिन असल में ये 'अनसंग हीरोज हैं।

'आइ लव यू कहना ज्ारूरी नहीं

रिलेशनशिप में प्यार जताने से कहीं ज्य़ादा जरूरी है उसे निभाना। फिल्मों का प्रभाव बढऩे की वजह से पुरुषों में रोमैंटिक तरीके से पार्टनर को इंप्रेस करने का चलन बढा है। लेकिन एक ऐसा वर्ग भी है जो इंप्रेशन जमाने की परवाह किए बिना प्यार को निभाने में यकीन रखता है। इस वर्ग के पुरुष भले ही अपनी पार्टनर को 'आइ लव यू तक न कहें, लेकिन उसके करियर, सपनों, भावनाओं को अपनी निजी प्राथमिकताओं से भी ऊपर रखते हैं। उन्हें यह पता होता है कि अगर वह अपनी पार्टनर के कहने का इंतजार किए बिना ख्ाुद ही अपनी जिम्मेदारियां निभाते चलेंगे तो वह व्यक्तिगत जिंदगी से जुडे तनाव लेने की जगह अपने करियर पर बेहतर तरीके से ध्यान दे पाएगी। बॉलीवुड कपल करीना कपूर ख्ाान और सैफ अली ख्ाान की केमिस्ट्री भी कुछ ऐसी ही है। सैफ कहते हैं, 'करीना बहुत कम बोलती हैं। मुझे पता है कि उन्हें क्या पसंद है और क्या नापसंद। कौन से काम मुझे करने चाहिए और कौन से नहीं। उन्हें ख्ाुश रखने के लिए मुझे कभी फिल्मों की तरह कोई ड्रमेटिक अंदाज अपनाने या रोमैंटिक लाइंस का सहारा लेने की जरूरत नहीं पडी। बस चुपचाप उनकी केयर करता हूं। करियर को लेकर उन्हें मोटिवेट करता हूं। इतने से ही वह सब समझ जाती हैं।

सफलता की जद्दोजहद

किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए जरूरी है पुख्ता तैयारी और उचित मार्गदर्शन। अपनी लाइफ पार्टनर के करियर को गंभीरता से लेने वाले पुरुष न सिर्फ उन्हें प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि इसके लिए जरूरी आत्ममंथन और रिसर्च में भी उनका सहयोग करते हैं। अंबेडकर नगर स्थित आलापुर तहसील में नायब तहसीलदार के पद पर तैनात रानी गरिमा पालीवाल के लाइफ पार्टनर भी कुछ ऐसे ही हैं। गोरखपुर की रानी साल 2004 में आइएएस प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली आई थीं। यहां उनकी मुलाकात प्रदीप पालीवाल से हुई। मुलाकात दोस्ती और दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों साथ ही पढाई करने लगे। आइएएस में जब कई प्रयासों के बाद भी उनका सिलेक्शन नहीं हुआ तो उन्होंने पीसीएस की तैयारी शुरू कर दी। इसमें प्रदीप ने उनकी पूरी मदद की। रानी की तैयारी का आकलन किया और उनकी कमियों को दूर करने में मदद की। वह बताती हैं, 'प्रदीप ने जब मेरी तैयारी का आकलन किया तो उन्हें समझ में आया कि मैं पीसीएस की जगह आइएएस की परीक्षा के अनुरूप तैयारी कर रही थी। मेरा उत्तर लिखने का तरीका कॉन्सेप्चुअल था, जबकि पीसीएस में फैक्चुअल तरीके से उत्तर लिखने की अपेक्षा की जाती है। यह अंतर समझने के बाद मैंने अपनी गलती सुधारी। साल 2012 में नायब तहसीलदार के तौर पर मेरा चयन हो गया। वहीं प्रदीप को परीक्षा में सफलता तो नहीं मिली पर उन्होंने रानी की सफलता को ही अपनी सफलता समझा। साल 2012 में ही दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं

समझदार पति अपनी पत्नी के सपनों को अपने सपनों से अलग नहीं मानते। बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए वे भी जी-जान लगा देते हैं। पर्वतारोही रीना धर्मशक्तू के पति लवराज भी इसी श्रेणी में आते हैं। उन्होंने साल 2000 में रीना के साथ हुए प्रेम विवाह को सच्चे अर्थों में साकार किया। वह बताती हैं, 'जब भी मैं पर्वतारोहण के लिए जाती हूं, लवराज मुझे एक बच्चे की तरह छोटी-छोटी बातें समझाते हैं। मसलन थरमस हमेशा साथ रखना, गर्म पानी पीना, पर्याप्त गर्म कपडे पहनना और बीमारी की स्थिति में अपना प्राथमिक उपचार करना। ऐसा लगता है कि यह मेरा नहीं, उनका सपना है। कई बार जब उन्हें अपनी हिम्मत डगमगाती नजर आई तो पति के दिए हौसले ने ही उन्हें संबल दिया। वह बताती हैं, 'एक बार मैं 22,000 फीट ऊंचे पर्वत पर चढऩे का लक्ष्य बनाकर गई। इससे पहले मैंने कभी इतनी ऊंचाई वाले पर्वत की चढाई नहीं की थी जिस वजह से मेरा आत्मविश्वास कुछ डांवाडोल हो रहा था। ऐसे में लवराज ने मुझे बताया कि इतने ऊंचे पर्वत पर चढऩे के लिए किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। साथ ही उन्होंने मुझे हिम्मत भी बंधाई और कहा कि मुझे अभी इससे कहीं अधिक ऊंचाई वाले पर्वतों को फतह करना है। इससे मेरा हौसला बढा और मैंने चढाई पूरी की। कुछ माह बाद ही मैंने अंटार्कटिका से साउथ पोल तक की यात्रा स्कीइंग करते हुए पूरी की। इन सफलताओं में मेरे पति का बहुत बडा योगदान है। रीना को करियर से जुडी मदद मुहैया कराने के साथ ही उनके पति ने उनकी ससुराल में हो रहे काम के विरोध को भी शांत किया।

कठिन दौर में भूमिका

स्त्री की सफलता में सहयोग करने वाले पुरुष अपनी पार्टनर की असफलता के दौर में भी उसे दोबारा दोगुनी शक्ति से लौटने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। वे उसे असफलता स्वीकार कर मैदान से बाहर रहने की सलाह देने वालों में नहीं होते। बल्कि उसे उसकी क्षमताओं की याद दिलाते रहते हैं जिससे वह आत्मविश्वास बटोर कर एक बार िफर योद्धा के रूप में उतरती हैं। बॉलीवुड अभिनेत्री रवीना टंडन का जीवन भी कुछ ऐसा ही रहा है। हाल ही में छोटे पर्दे के जरिये कमबैक करने वाली रवीना कहती हैं, 'मेरी जिंदगी रोलरकोस्टर की तरह रही है। मेरे पति अनिल थडानी ने हमेशा मुझे मुश्किल दौर में लडऩे की हिम्मत दी। मुझे आगे बढऩे और करियर को रीप्लान करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे कमबैक का मुझसे ज्य़ादा इंतजार उन्हें था। मुझे लगता है कि उनकी जगह अगर कोई और पुरुष होता तो इंडस्ट्री में नई अभिनेत्रियों का वर्चस्व बढऩे का हवाला देकर मुझे घर बैठने की सलाह दे डालता।

देते हैं पूरा स्पेस

समझदार पुरुष अपनी पार्टनर को उसके हिस्से का स्पेस देते हैं। साथ ही उसकी प्राइवेसी का भी ख्ायाल रखते हैं। वह समझते हैं कि शादी का मतलब अपनी पत्नी की जिंदगी को कंट्रोल करना नहीं है। रिश्तों की डोर कुछ ढीली छोड देने का तरीका बेहद कारगर साबित होता है, क्योंकि इससे रिश्ते में ताजगी बनी रहती है। अभिनेता सैफ अली ख्ाान कहते हैं, 'एक-दूसरे को स्पेस देना ही मेरे और करीना के रिश्ते की सफलता का मंत्र है। जैसे मैं अपना काम करता हूं, ऑफिस देखता हूं और जिम जाता हूं। इन कामों में करीना कभी दख्ाल नहीं देती हैं। इससे सब कुछ सुलझा हुआ और आसान बना रहता है। अपने करियर के फैसले हम ख्ाुद ही लेते हैं। मुझे उनकी सबसे अच्छी बात यह लगती है कि वह कभी शिकायत नहीं करतीं।

कहते हैं विशेषज्ञ

सिर्फ हेल्प न करें, जिम्मेदारी लें...

रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ. निशा खन्ना कहती हैं कि आजकल पति न सिर्फ पत्नी का सहयोग करते हैं, बल्कि उसकी कामयाबी को सराहते भी हैं। हालांकि ऐसे पुरुषों की संख्या बेहद कम हैं। इसकी मुख्य वजह पुरुष प्रधान मानसिकता है। जब आपका बच्चा, भाई या बहन अच्छा काम करते हैं तो आपको खुशी होती है। इस हिसाब से साथी के सफल होने पर भी आपको ख्ाुश होना चाहिए। लेकिन यहां समीकरण बदल जाते हैं क्योंकि ऐसी मानसिकता बनी हुई है कि पति हर हालत में पत्नी से बेहतर है। पत्नी की सफलता से आहत होने वाले पुरुषों का आत्मविश्वास कमजोर होता है। इस तरह के पुरुष 'मैं घर के काम में हेल्प करता हूं! कह कर ख्ाुद को उदार दिखाने की कोशिश करते हैं पर असलियत इसके ठीक उलट होती है। वे नियमित तौर पर गृहस्थी की जिम्मेदारियां संभालने से बचते हैं। अच्छी ख्ाबर यह है कि समान अधिकारों के प्रसार के चलते यह प्रवृत्ति बेहद तेजी से घट रही है। इसके अलावा भारत में कामकाजी स्त्रियों को असुरक्षित माहौल के चलते भी कम प्रोत्साहन मिलता है। अगर सुरक्षा को लेकर बेहतर प्रयास किए जाएं तो उनके पार्टनर्स निश्चिंत होंगे ओर उन्हें अधिक प्रोत्साहित करेंगे।

ऑनलर ने गढा है मुझे...

(बॉक्सर मैरी कॉम)

मेहनत, जूनून और लगन से महकती गीली मिट्टी जब सहयोग, समर्पण और त्याग की भट्टी में तप कर सुख्र्ा होती है, तो मैरी कॉम जैसी हस्ती का जन्म होता है। मैरी पैदा तो मंगते टोनपा कॉम और मंगते अखम कॉम के घर हुई थीं, लेकिन दुनिया के लिए वह अस्तित्व में तब आईं जब उन्होंने एक के बाद एक ताबडतोड पांच वल्र्ड चैंपियनशिप्स तिरंगे के नाम कर दीं। उनके इस सफल अवतार के जन्म लेने की प्रक्रिया में उनके पति ऑनलर कॉम का भरपूर सहयोग रहा। स्वभाव से शर्मीले ऑनलर मैरी से अपने प्यार का इजहार भले ही न करते हों, लेकिन वे इस प्यार को जीते जरूर हैं। मैरी कहती हैं, 'मेरी डाइट से लेकर प्रैक्टिस और भावनात्मक संतुलन तक हर चीज परफेक्ट रखने को ऑनलर अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। उनके चैंपियनशिप्स में व्यस्त होने पर घरेलू काम करने में भी कोई गुरेज नहीं करते। मैरी के शब्दों में, 'मैं अपनी कई परिचितों के पतियों को देखती हूं जो घरेलू काम करने में शर्म महसूस करते हैं। और किसी एक दिन कोई घर का काम कर दें तो महीनों उस एक दिन की दुहाई देते हैं जैसे उन्होंने कोई एहसान कर दिया हो। मैं इसे सही नहीं मानती। ऑनलर 13 साल की उम्र से खाना पका रहे हैं और जब भी मैं प्रैक्टिस के लिए या चैंपियनशिप्स में हिस्सा लेने जाती हूं तो मैं घर का सारा काम वही संभालते हैं। खाना बनाने और घर की सफाई करने से लेकर बच्चों का होमवर्क कराने तक सारे काम वह ख्ाुद करते हैं। वह जानते हैं कि बॉक्सिंग मैरी के लिए क्या है और इस जूनून को परवान चढाने के लिए हर संभव सहयोग करते हैं। वह मैरी से उनके संघर्ष के दिनों में मिले थे और आज जब लोग उन्हें 'मैरी कॉम का पति कहकर बुलाते हैं तो उन्हें कतई कोई कोफ्त नहीं होती। ऑनलर जब मैरी से मिले तो वह फुटबॉल के खिलाडी थे। उनका कहना है कि कुछ सालों के संघर्ष के बाद वह समझ गए थे कि वह रोनाल्डो नहीं बन सकते। पर मैरी की क्षमता पर उन्हें पूरा भरोसा था। ऐसे में उन्होंने फुटबॉल से सन्यास ले लिया ताकि वह आइएएस की तैयारी कर सकें और मैरी को और बेहतर तरीके से सपोर्ट कर सकें। वहीं मैरी कॉम का मानना है कि रिश्ते को निभाने में ऑनलर पूरी तरह खरे उतरे हैं।

बोनी ने दिया भावनात्मक सहयोग

(अभिनेत्री श्रीदेवी)

श्रीदेवी का मानना है कि उनकी सफलता में पति बोनी कपूर का बहुत बडा हाथ है। वह कहती हैं, 'बोनी ने जिंदगी के हर मोड पर मुझे भावनात्मक सहयोग दिया। हमारे रिश्ते की शुरुआत एकतरफा प्यार से हुई थी। वह साल 1984 में मेरे पास 'मिस्टर इंडिया फिल्म का ऑफर लेकर आए थे। काफी अर्से के बाद उन्होंने बताया कि उन्हें पहली नजर में ही मुझसे प्यार हो गया था। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी। यह फिल्म मेरे करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। इसके बाद मैंने उनकी फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा मेंं काम किया। फिल्म की रिलीज के बाद मुझे अपनी मां के इलाज के लिए अमेरिका जाना पडा। उस समय भी बोनी ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। उन्होंने साल 1993 में मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा। उन्हें करीब से जानने के बाद मैं भी उनसे प्यार करने लगी। उस समय तक मेरे माता-पिता गुजर चुके थे। मेरे अकेलेपन में वह हमेशा दोस्त की तरह मेरे साथ रहे। उनसे शादी के बाद मैंने परिवार पर ध्यान देने के मकसद से फिल्मों से ब्रेक लिया। उस दौरान भी वह चाहते थे कि मैं काम करूं। उनके सहयोग से मैं बे्रक के दौरान भी फिल्म प्रोडक्शन में सक्रिय रही। जब मैंने फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश से एक्टिंग में वापसी का फैसला किया तो वह बेहद ख्ाुश हुए।

अमर मेंटर हैं मेरे...

(कव्वाल चंचल भारती)

'संगीत में रुचि है तो घर पर ट्यूटर लगवा दिया जाएगा। पर यह शौक सिर्फ घर की चारदीवारी तक ही सीमित रहना चाहिए। और कव्वाली का तो नाम भी मत लेना। अच्छे घरों की लडकियां यह सब नहीं करतीं।सूफी कव्वाली सीखने की ख्वाहिश जाहिर करने पर चंचल भारती को यह हिदायत दी गई। वह सोच में पड गईं कि कला को दायरे में बांधने का भला क्या मतलब है? और कलाओं को अच्छी, बुरी विधाओं के खांचों में भला क्यों बांटा गया है? लेकिन उस वक्त ये सवाल अनुत्तरित रह गए। कुछ साल बाद उनकी शादी व्यवसायी अमर प्रसाद के साथ हो गई। उन्होंने अपनी ख्वाहिश पति के सामने रखी। पति ने उनकी बात न सिर्फ सुनी और समझी, बल्कि उन्हें यकीन भी दिलाया कि वे उसे पूरा करने में उनका भरपूर सहयोग करेंगे। िफर शुरू हुई कव्वाली विधा में पारंगत गुरु की तलाश। इसके लिए अमर कई शहरों के संगीतज्ञों से जाकर मिले पर उन्हें संतुष्टि नहीं मिली। उनकी तलाश पूरी हुई देवबंद जिले के उस्ताद इकबाल अफजाल साबरी से मिलकर। चंचल ने 12 साल तक उनसे कव्वाली की तालीम ली। वह बताती हैं, 'रियाज के वक्त मुझे घरेलू कामों के बारे में नहीं सोचना होता था। मेरे पति ने सारी जिम्मेदारी संभाल रखी थी। चंचल के सास-ससुर ने इस पर नाराजगी जाहिर की तो अमर ने उन्हें भी समझाया कि कव्वाली गाना कोई बुरी बात नहीं है। सीखने के बाद चंचल ने कई साल तक आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रस्तुति दी। धीरे-धीरे उनके पास देश-विदेश में होने वाले संगीत समारोहों में गाने के ऑफर आने लगे। विभिन्न भारतीय शहरों के अलावा उन्होंने दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान और ईजिप्ट आदि देशों में भी सूफी कव्वाली की प्रस्तुति दी जिसे सबने सराहा। हाल ही में वह टीवी शो 'इंडियाज गॉट टैलेंट और 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल में भी नजर आईं। कव्वाली जैसी पुरुष प्रधान विधा में महारथ हासिल कर चंचल ने तो एक ख्ाास जगह बनाई ही है, साथ ही उनके पति अमर ने भी पत्नी के मेंटर की भूमिका अदा कर एक मिसाल कायम की है।

सफल स्त्रियों के लिए सलाह

- सफलता का श्रेय अपने पार्टनर को भी दें।

- ऐसा इंप्रेशन न दें कि आत्मनिर्भर होने के कारण आपको साथी की परवाह नहीं है।

- वर्कप्लेस की परेशानियों और तनाव को परिवार से दूर रखें।

- अपनी स्वतंत्रता का ख्ायाल जरूर रखें लेकिन साथी को भी पूरी स्वतंत्रता दें।

- अपने ऑफिस की गॉसिप के बारे में साथी को तभी बताएं अगर उसे इसमें रुचि हो।

- साथी पर अपने सफल होने और कमाने की धौंस न जमाएं।

- हर वक्त अपने बॉस या कलीग्स की तारीफ न करें।

सफल स्त्रियों के पार्टनर्स के लिए सलाह

- अपनी पार्टनर की भावनाओं और इच्छाओं की कद्र करें।

- अगर पार्टनर कामकाजी है तो वह गृहणियों की तरह परफेक्शन के साथ घरेलू काम नहीं कर पाएगी। उससे बहुत अधिक उम्मीद न करें।

- खाना बनाने, घर की सफाई और बच्चों की देखरेख जैसे काम करने में शर्म महसूस न करें।

- अपनी साथी को प्राइवेसी दें। उसके फोन कॉल्स को संदेह की नजर से न देखें, भले ही वे किसी पुरुष के क्यों न हों। उसके देर से घर आने और पार्टियों में जाने पर शक न करें। उसे हर तरह का सहयोग दें।

कंट्रोल फ्रीक नहीं हैं महेश (अभिनेत्री लारा दत्ता)

हर इंसान की जिंदगी में कभी न कभी ऐसा मोड आता है जब वह सुरक्षित और संतुष्ट महसूस करता है। लारा दत्ता का मानना है कि वह अभी उसी मोड पर हैं। एक औरत होने के नाते करियर के साथ यह टेंशन तो रहती ही है कि पता नहीं कैसा लाइफ पार्टनर मिले। ग्लैमरस करियर फील्ड में आने के बाद एक ख्ाास लाइफ स्टाइल की आदत पड जाती है, जिसे बदलना संभव नहीं होता। वह कहती हैं, 'मैं बेहद ख्ाुशनसीब हूं कि मेरी शादी एक ऐसे इंसान से हुई है, जो मुझे कंट्रोल करने की कोशिश नहीं करता। मुझे अपने करियर को आगे बढाने में महेश का भरपूर सहयोग मिला। शुरू से ही मेरे पास कई रचनात्मक आइडियाज थे, लेकिन कभी उन्हें हकीकत में ढालने का मौका नहीं मिला। महेश ने ये मौके हासिल करने में मेरी मदद की। अब मुझे लग रहा है कि मैं वह सब कुछ हासिल कर सकती हूं जिसका मैंने सपना देखा था। देखने वालों को ऐसा लग सकता है कि लारा के निर्माता बनने के पीछे जबर्दस्त प्लानिंग रही होगी। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। वह कहती हैं, 'मेरे निर्माता बनने के पीछे कोई बडी प्लानिंग नहीं थी। महेश के सहयोग से सब अपने आप होता चला गया। पहले मैं करियर संबंधी कोई भी सलाह अक्षय कुमार से लेती थी। पर अब मेरे पास महेश के रूप में एक स्थायी दोस्त और सहयोगी है। उनकी कंपनी बेहद सफल है। उनके सहयोग से मेरी कंपनी भी

स्थापित हो जाएगी। वह चाहते हैं कि मैं ऐक्टिंग के साथ ही दूसरे वेंचर्स भी शुरू करूं।

सिड ने सुधारा रूटीन

(अभिनेत्री विद्या बालन)

विद्या बालन को पहली मुलाकात के बाद से ही सिद्धार्थ रॉय कपूर अच्छे लगने लगे थे। दोनों की मुलाकात एक अवॉर्ड फंक्शन में हुई थी। विद्या फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका के लिए अवॉर्ड लेने जा रही थीं। जाने से पहले पांच मिनट की मुलाकात हुई। फिर दो-तीन फिल्मों के सिलसिले में बातें हुईं। वह कहती हैं, 'चंद मुलाकातों के बाद धीरे-धीरे मुझे लगा कि सिड से दोस्ती को आगे बढाना चाहिए। मुझे उनकी कई बातें अच्छी लगती हैं। उनका सबसे अच्छा गुण है कि वो नॉन जजमेंटल हैं और सभी का आदर करते हैं। पहले मैं अनिद्रा की समस्या से त्रस्त थी। रातों को जल्दी नींद नहीं आती थी। लगातार मां की फटकार मिलती थी, लेकिन नींद कोई बेटी तो है नहीं कि फटकार सुन ले। अब जाकर रुटीन बदला है जिसमें सिड का बडा योगदान है। हम दोनों घर लौटकर साथ खाना खाते हैं। इसके बाद सोने की तैयारी होती है। बारह बजे तक विद्या भी सो जाती हैं। उनका मानना है कि अगर पार्टनर समझदार हो तो मुश्किल दौर में हिचकोले नहीं खाने पडते। जिंदगी में एक संतुलन बना रहता है और सब कुछ सुहाना लगता है। विद्या आगे कहती हैं, 'अच्छे पार्टनर की क्वॉलिटी होती है कि वह आपको पूरी आजादी देता है। उसे किसी िकस्म की असुरक्षा नहीं होती। सिड एकदम ऐसे ही हैं। यही वजह है कि मैं अपनी शादीशुदा जिंदगी से पूरी तरह संतुष्ट हूं और पूरे उत्साह के साथ करियर के क्षेत्र में आगे बढ

रही हूं।

(मुंबई से इंटरव्यू: अमित कर्ण)


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