World Breastfeeding Week 2020: स्तनपान के प्रति जागरुकता बढ़ाने से बच सकती है लाखों बच्चों की जान
World Breastfeeding Week 2020 स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है इस बार का थीम है ‘सपोर्ट ब्रेस्ट फीडिंग फॉर अ हेल्थिअर प्लेनेट।’
जोधपुर, रंजन दवे। दुनिया भर में अगस्त माह का पहला सप्ताह विश्व स्तनपान सप्ताह (World breastfeeding week ) के तौर पर मनाया जाता है। साल 2020 के लिए इसकी थीम ‘सपोर्ट ब्रेस्ट फीडिंग फॉर अ हेल्थिअर प्लेनेट’ ( Support breast feeding for a healthier planet) है जिसके तहत विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए माताओं और अभिभावकों को जागरुक किया जा रहा है, कि नवजात को स्तनपान कराना कितना फायदेमंद और जरूरी है। इसी थीम के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ, महिलाओं को कुशल स्तनपान परामर्श उपलब्ध कराने के लिए सरकारों के साथ सहयोग और आह्वान कर रहे हैं, ताकि स्तनपान की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल सके।
स्तनपान के महत्व और लाभ को लेकर वेबिनार का आयोजन
इसी कड़ी में यूनिसेफ राजस्थान की पोषण टीम और राज्य सरकार के रीजनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के संयुक्त तत्वावधान में, COVID 19 महामारी के दौरान स्तनपान के महत्व और लाभों पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें इस विषय से सम्बंधित करीब 117 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इसके साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से स्तनपान सप्ताह के मौके पर पत्र जारी करने तथा राज्य स्तर पर वितरित करने के लिए पोषण अभियान से संबंधित ऑडियो विजुअल सामग्री भी उपलब्ध कराई गई।
राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वे, NFHS– 4 (2015-16) के अनुसार राजस्थान में 58.2 प्रतिशत बच्चों को छह महीने की आयु तक एक्सक्लूसिव स्तनपान करवाया गया, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये आंकड़ा 55 प्रतिशत है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार स्तनपान के अभाव में बच्चे कुपोषित हो जाते हैं और 45 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु में कुपोषण भी एक बड़ा कारण होता है। अगर जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात को स्तनपान शुरु कर दिया जाये तो इनमें से 22 प्रतिशत नवजात शिशुओं की जान बचाई जा सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक विश्लेषण के अनुसार यदि स्तनपान की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी होती है तो 5 वर्ष तक की आयु के करीब 8 लाख 20 हजार बच्चों की जान हर वर्ष बचाई जा सकती है।
जागरुकता से आ रहे हैं सकारात्मक परिणाम
स्तनपान के प्रति जागरुकता बढ़ाने के इन प्रयासों के सकारात्मक नतीजे भी मिले हैं। चौमूं के बांसा अनंतपुरा गांव में रहने वाले किसान विजय की पत्नी सुमन ने पिछले महीने 3 जुलाई को एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया जिसका जन्म के समय वजन 2 किलो 700 ग्राम था। लेकिन स्तन में ‘इनवर्टेड निपल’ विकृति होने की वजह से सुमन अपने नवजात को ना तो प्रसव के एक घंटे के भीतर और ना ही बाद में स्तनपान करा सकी जिससे वो कमजोर और बीमार हो गया। बच्चे को पाउडर का दूध देने की वजह से उसे डायरिया हो गया और उसका वजन भी तेज़ी से गिरने लगा। ऐसे में विजय ने क्षेत्र में कार्यरत सांस्कृतिकी संस्थान के कार्यकर्ताओं से संपर्क किया जो वहां स्तनपान और पोषण से जुड़ी गतिविधियां संचालित कर रहे थे। इन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के सुझाए अनुसार सुमन सीरिंज तकनीक के जरिए अपने बच्चे को स्तनपान करा सकी। बच्चे को पाउडर का दूध देना बंद कर दिया गया और इसके बाद कुछ ही दिनों में बच्चे का वजन बढ़कर साढ़े तीन किलो हो गया।