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Sheetala Saptami 2022: ...जब हिन्दुओं के साथ मुस्लिम भी बड़ी संख्या में पूजा करने आते थे शीतला माता को

Sheetala Saptami 2022 उदयपुर जिले के वल्लभनगर डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा और चाटसू में मध्यकालीन युग के शीतला माता मंदिर मौजदू हैं। वहां ऐसे प्रमाण भी मौजूद हैं जो जाहिर करते हैं कि शीतला के स्थानकों पर हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी बड़ी संख्या में पूजा करने आते थे।

By Priti JhaEdited By: Published: Thu, 24 Mar 2022 03:00 PM (IST)Updated: Thu, 24 Mar 2022 03:04 PM (IST)
Sheetala Saptami 2022: ...जब हिन्दुओं के साथ मुस्लिम भी बड़ी संख्या में पूजा करने आते थे शीतला माता को
Sheetala Saptami 2022: मध्यकालीन युग के शीतला माता प्रतिमा, उदयपुर,

उदयपुर, सुभाष शर्मा। सीळी-सीळी ए म्हारी सीतळा ए माय...बारुडा रखवाळी साहे सीतला ए माय...। इस महाव्याधि के उन्मूलन हुए बरसों हो गए, लेकिन शीतलामाता की पूजा पर आज भी इसे गाया जाता है। शुक्रवार को देश में शीतला माता का पूजन किया जाएगा। मेवाड़ में मध्यकाल से ही शीतला माता की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा की जाती थी। यहां ऐसे मध्यकाल में बनाए मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं, जिनमें शीतला माता की पूजा की जाती थी।

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उदयपुर जिले के वल्लभनगर, डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा और चाटसू में मध्यकालीन युग के शीतला माता मंदिर मौजदू हैं। वहां ऐसे प्रमाण भी मौजूद हैं, जो जाहिर करते हैं कि शीतला के स्थानकों पर हिन्दू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम भी बड़ी संख्या में पूजा करने आते थे। वहां शीतला माता की पूजा के लिए आई भीड़ को नियंत्रित करने के लिए राजाज्ञा तक जारी करनी पड़ती थी। इसका प्रमाण है कि औरंगजेब के शासनकाल में 16-17 सितम्बर 1667 में ऐसा ही एक फरमान जारी किया गया था। मेवाड़ में 1487 ईस्वी में लिखित वास्तु मंजरी में शीतला माता के प्रतिमा के पूजन का उल्लेख है। इसी तरह वर्ष 1900 में डब्ल्यू जे विल्किंस ने हिन्दू माइथोलॉजी, वैदिक एंड पुराणिक शीतला देवी की मान्यताओं का सिंहावलोकिन किया था।

वैश्विक देवी है शीतला

दुनिया के सभी धर्मों में शीतला माता को अलग-अलग नामों से मान्यता मिली हुई है। जापान और आसपास के प्रायद्वीपों पर रहने वाले योरूवा धर्म के लोग शीतला माता को सोपान देवी के नाम जानते हैं। बौद्ध काल में यह देवी हारिति से मातृका के रूप में पूजी जाती थी। जिसके गोद में बालक होता था और बच्चों की रक्षा के लिए इसे पूजा जाता था। गांधार से तीसरी सदी की हारिति की मूर्तियां भी मिली हैं। ऐसा माना जाता है  इस तरह की मान्यताओं का निकास इजराइल, पेलस्ट्राइन से हुआ। खासकर इसकी पहचान उन व्यापारियों से हुई जो बर्तन आदि वस्तुओं का विपणन करने निकलते थे।

चेचक की देवी

शीतला माता को चेचक की देवी भी कहा जाता है। चेचक की व्याधि पूतना के नाम से पृथक नहीं है। भारत में इस व्याधि के प्रमाण 1500 ईसा पूर्व से खोजा गया है, जबकि मिस्र में इसके प्रमाण तीन हजार साल पूर्व के हैं। मिश्र के राजा रामेस्सेस पंचम ओर उसकी रानी की जो ममी मिलती है, उसमें इस रोग के प्रमाण मिले हैं। चीन में इसका प्रमाण 1122 ईसा पूर्व, जबकि कोरिया में 735 में यह महामारी इस कदर फैली कि जिससे एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई।


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