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Lockdown: प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए कहने पर आपराधिक मुकदमा, हाईकोर्ट ने लगाई कार्रवाई पर रोक

Lockdown. प्रवासी श्रमिकों के लिए भोजन का इंतजाम करने के लिए प्रशासन को सूचित किया तो प्रशासन ने सूचना देने वाले नागरिक के खिलाफ ही आपराधिक मुकदमा दर्ज करवा दिया।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 10:42 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 10:42 PM (IST)
Lockdown: प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए कहने पर आपराधिक मुकदमा, हाईकोर्ट ने लगाई कार्रवाई पर रोक
Lockdown: प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए कहने पर आपराधिक मुकदमा, हाईकोर्ट ने लगाई कार्रवाई पर रोक

जोधपुर, संवाद सूत्र। Lockdown. लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए भोजन का इंतजाम करने के लिए प्रशासन को सूचित किया तो प्रशासन ने सूचना देने वाले नागरिक के खिलाफ ही आपराधिक मुकदमा दर्ज करवा दिया। प्रशासन का कहना है कि उक्त नागरिक ने झूठी सूचना देकर प्रशासन का अनावश्यक समय व्यर्थ किया है। जिसके बाद अदालत पहुंचे इस मामले पर राजस्थान हाईकोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाई। इसके साथ पुलिस और मुकदमा दर्ज करवाने वाले कार्मिकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का आदेश दिया है।

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याचिकाकर्ता के वकील रजाक के हैदर ने बताया कि अलवर जिले के भुनगड़ा अहीर गांव के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शशि कांत शर्मा ने लॉकडाउन के दौरान 26 मार्च को मुंडावर के उपखंड अधिकारी और विकास अधिकारी को ईमेल के जरिए अपने गांव में रहने वाले प्रवासी श्रमिकों की सूची भेजते हुए उनके भोजन और अन्य जरूरत की वस्तुओं का इंतजाम करने का अनुरोध किया था। प्रशासन ने गांव के हल्का पटवारी अजीत कुमार को इसकी जांच सौंपी। जांच के बाद ग्राम पंचायत भुनगड़ा अहीर के ग्राम विकास अधिकारी हाल प्रशासक हर्ष शर्मा ने शाहजहांपुरा पुलिस थाने में आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाते हुए कहा कि जांच में सूचना झूठी पाई गई। शशिकांत शर्मा ने झूठी सूचना देकर प्रशासन का अनावश्यक समय व्यर्थ किया है। इसके पश्चात पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 52 के तहत प्रवासियों की मदद के लिए आगे आए याचिकाकर्ता पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किया।

प्रकरण को चुनौती देते हुए अधिवक्ता रजाक के हैदर व पंकज एस चौधरी ने आपराधिक विविध याचिका दायर कर हाईकोर्ट को बताया कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने लॉकडाउन में किसी के भूखा नहीं होने का संकल्प लिया था। जिसके क्रम में याचिकाकर्ता ने जागरूक नागरिक की हैसियत से अपनी उत्तम जानकारी के अनुसार प्रशासन को प्रवासी श्रमिकों की सूची भेजते हुए उनके भोजन आदि की व्यवस्थाएं करने का आग्रह किया था। ऐसे मामलों मेें आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। हल्का पटवारी और ग्रामसेवक ने उसके प्रति दुर्भावना रखते हुए प्रकरण दर्ज करवाया है, जिससे श्रमिकों की जांच भी संदेहास्पद प्रतीत हो रही है। 

प्रारंभिक सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने पुलिस और मुकदमा दर्ज करवाने वाले ग्राम विकास अधिकारी हाल प्रशासन व हल्का पटवारी को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने और याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई करने पर रोक लगाने का आदेश पारित किया। मामले की अगली सुनवाई आठ जून को तय की गई है।

पुलिस को नहीं आईपीसी 188 का मुकदमा दर्ज करने का अधिकार

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रजाक हैदर ने यह तर्क दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 (1) (ए) (1) के प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के कई निर्णयों के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत पुलिस को एफआइआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है। उक्त अपराध घटने पर न्यायालय में मजिस्ट्रेट के समक्ष केवल लोक सेवक के लिखित परिवाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है। राजस्थान पुलिस ने लॉकडाउन के दौरान हजारों मामलों में सीधे ही आईपीसी की धारा 188 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिए हैं। उन सभी मकुदमों पर रोक लगाया जाना उचित है। जबकि आपराधिक कानून में स्पष्ट है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 172 से 188 के तहत कोई दंडनीय अपराध किया जाता है तो कोई भी न्यायालय तब तक संज्ञान नहीं लेगा, जब तक कि संबिधित लोक सेवक द्वारा लिखित शिकायत दायर नहीं हुई हो।

सी मुनियप्पम बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडू (2010) 9 एससीसी 567 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 195 के प्रावधान अनिवार्य है और इनका गैर-अनुपालन अभियोजन और अन्य सभी परिणामी आदेशों को नष्ट कर देगा। इसी मामले में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अदालत इस तरह के मामलों में बिना शिकायत के संज्ञान नहीं ले सकती है और शिकायत के अभाव में ट्रायल और दोष बिना अधिकार क्षेत्र के निरर्थक हो जाएगा।  


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