अनोखी परम्परा: यहां गोवर्धन की रात ग्रामीण खींचते हैं भारी चट्टान, मान्यता है कि इससे ग्रामीण स्वस्थ्य रहेंगे
यहां गोवर्धन की रात ग्रामीण खींचते हैं भारी चट्टान ग्रामीण महामारी से बचे रहे और रहें स्वस्थ्य इसी मान्यता से चली आ रही है परम्परा
उदयपुर, सुभाष शर्मा। गोवर्धन पूजा के विविध रंग देश भर में देखे जाते हैं लेकिन उदयपुर संभाग के चित्तौड़गढ़ जिले के बानसेन गांव की परम्परा बड़ी रोचक है। यहां गोवर्धन पूजा के बाद रात बारह बजे बाद युवा एक टन वजनी चट्टान को खींचकर गांव का चक्कर लगाते हैं। इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण तो नहीं लेकिन मान्यता है कि यदि गांव का पूरा चक्कर बिना किसी रुकावट हो जाता है तो गांव में कोई महामारी नहीं फैलेगी। यानी सभी लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहे, इसके लिए युवा पूरी मन से विशाल पत्थर को खींचकर अपना जोश दिखाते हैं। कई दशकों से चली आ रही यह परम्परा सोमवार रात यानी 28 अक्टूबर की रात बारह बजे बाद निभाई गई।
चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से लगभग अठारह किलोमीटर दूर बड़े गांवों में शुमार बानसेन में इस परम्परा को निभाने के लिए सैकड़ों युवाओं ने जोर आजमाया। पेड़ के वाई आकार के तने पर विशाल पत्थर को रखा गया तथा उसकी पूजा कर उसे बांधा गया। रात एक बजे के आसपास युवाओं ने इस पत्थर को खींचकर लगभग पांच किलोमीटर का सफर तय किया। ग्रामीण रमेश भाई बताते हैं कि बिना किसी बाधा के यदि युवा इस पत्थर का चक्कर गांव भर में लगाने में सफल रहते हैं तो माना जाता है कि उनके गांव के लोग हर तरह की महामारी से बचे रहेंगे।
यहां तक उनके गांव का पशुधन पूरी तरह स्वस्थ्य और सुरक्षित रहेगा, वहीं उनकी फसलें भी अच्छी रहेंगी। युवाओं की टीम विशाल पत्थर को सामूहिक रूप से जयघोष के रूप में खींचते हैं। यहां के बुजुर्ग हरिराम का कहना है कि पिछले सात दशक से वह इस परम्परा को देखते आ रहे हैं। लगभग तीन दशक तक उन्होंने भी इस परम्परा में भाग लिया। उसके बाद उनके बेटों और अब पोते इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि उनका गांव इसी परम्परा के चलते पूरी तरह सुरक्षित और स्वस्थ है।
कहते हैं घास बावजी
बानसेन के ग्रामीण जिस चट्टान को खींचते हैं, उसे वह देवता के समकक्ष मानते हैं। वे उसे घास बावजी कहते हैं। जो भैरूजी का दूसरा और लोकल नाम है। मेवाड़ के अधिकांश हिस्सों में इसे राड़ाजी बावजी भी कहते हैं लेकिन भैरूजी और राड़ाजी जहां स्थापित हैं, उन्हें किसी भी रूप, यानी प्रतिकात्मक रूप में भी गांव में भ्रमण नहीं कराया जाता। जबकि घास बावजी को ग्रामीण साल में एक बार यानी गोवर्धन पूजा की रात गांव में घुमाते आ रहे हैं।