MakarSankranti2019 अनूठी परम्परा: यहां चिड़िया पकड़ने के बाद उड़ाकर मनाते हैं साल का भविष्य
हर क्षेत्र की अलग परम्पराएं हैं, जिन पर उन क्षेत्रों के लोग विश्वास करते आए हैं। ऐसी ही एक परंपरा है उदयपुर के आदिवासी इलाके में, जहां चिडिय़ा को पकडऩे के बाद उसे उड़ाकर साल का भविष्य जानते हैं।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। हर क्षेत्र की अलग-अलग परम्पराएं हैं, जिन पर उन क्षेत्रों के लोग विश्वास करते आए हैं। ऐसी ही एक परंपरा है उदयपुर के आदिवासी इलाके में, जहां एक चिड़िया को पकडऩे के बाद उसे उड़ाकर इस साल का भविष्य जानते हैं। यह अनोखी परम्परा मकर संक्रांति के दिन ही निभाई जाती है। आदिवासी समूह इस साल का भविष्य जानने के लिए एकत्रित होते हैं। सोमवार को उदयपुर के आदिवासी बहुल सराड़ा क्षेत्र के पाल सराड़ा गांव में यह परम्परा निभाई गई।
पाल सराड़ा गांव में सुबह होने के साथ आदिवासी युवा एकत्रित हुए और देवी नामक छोटे सी चिड़िया को पकडऩे को दौड़े। आधे घंटे के प्रयास के बाद वह एक चिड़िया को पकडऩे में सफल हो पाए। खास बात यह है कि चिड़िया को किसी जाल या पिंजरे में नहीं फंसाया जाता, बल्कि उसे हाथों से ही पकडऩा होता है।
दाना-पानी खिलाने के बाद ढोल बजाकर इस पक्षी को आसमान की ओर उड़ा दिया जाता है। यदि यह चिडिय़ा किसी हरे पेड़ पर या पानी वाली जगह पर बैठती है तो माना जाता है कि आने वाले दिन यानी यह साल उनके लिए अच्छा रहेगा। यानी इस साल अच्छी बारिश होगी और उन्हें और उनके पशुधन के लिए भोजन और चारे-पानी की जरूरत पूरी हो जाएगी। यदि यह चिड़िया किसी सूखे पेड़ या पथरीली जमीन पर जाकर बैठती है तो माना जाता है कि आने वाले दिन मुश्किल भरे रहेंगे। बारिश भी उनकी आवश्यकता के लायक नहीं होगी। इन आदिवासियों की मानना है कि कई दशकों से चली आ रही यह परम्परा उनके लिए सही साबित हुई है। इसीलिए हर साल की भांति इस मकर संक्रांति पर उन्होंने यह परम्परा दोहराई।
इस साल खुशहाली के संकेत
आदिवासियों की छोड़ी देवी पक्षी इस बार उड़कर एक पेड़ पर बैठ गई। जिसे उन्होंने खुशहाली के संकेत माना है।हालांकि बीच-बीच में उनकी सांसे अटकती रही। चिड़िया नीचे आती लेकिन पहाड़ी और पथरीली जमीन पर नहीं बैठी।
ग्रामीण हीरालाल का कहना है कि पिछले साल देवी पक्षी पहाड़ी पर जाकर बैठ गई थी। इस साल उनके यहां बारिश अच्छी नहीं हुई। सर्दी खत्म होने से पहले ही उनके यहां पेयजल की किल्लत का डर सताने लगा है। उनकी आय मजदूरी और वर्षा आधारित खेती ही है।