'उदयपुर की झीलें वेटलैंड की परिभाषा में नहीं आती पर मिल सकता है हेरिटेज झीलों का दर्जा'
यहाँ की झीलें वेटलैंड की परिभाषा में तो नहीं आती किन्तु इन्हें हेरिटेज झीलों के रूप में दर्जा मिल सकता है। इसके लिए सेंट्रल वॉटर कमीशन के पास प्रस्ताव भेजना चाहिए।
उदयपुर, जागरण संवाददाता। यहाँ की झीलें वेटलैंड की परिभाषा में तो नहीं आती, किन्तु इन्हें हेरिटेज झीलों के रूप में दर्जा मिल सकता है। इसके लिए सेंट्रल वॉटर कमीशन के पास प्रस्ताव भेजना चाहिए। यह कहना है भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की राष्ट्रीय वेटलैंड कमेटी के सदस्य तथा महाराष्ट्र सरकार के सलाहकार डॉ. अफरोज अहमद का। वह सोमवार को उदयपुर में झीलों के सम्बन्ध में विभिन्न अधिकारियों एवं झीलों से जुड़े विशेषज्ञों से चर्चा कर रहे थे।
डॉ अफरोज ने कहा कि उदयपुर की झीलों को हेरिटेज झीलों के रूप में संरक्षण करने का प्रस्ताव बनाकर सेंट्रल वॉटर कमीशन के पास प्रस्ताव भेजना चाहिए। उन्होंने कहा, इसके लिए वह भी प्रयास कर सकते हैं। इससे ना सिर्फ झीलें बल्कि उसके मध्य तथा किनारे पर स्थित सदियों पुरानी विरासतों के संरक्षण को बल मिलेगा।
डॉ.अहमद में मेनार वेटलैंड के संरक्षण के लिए प्रस्ताव बना कर देने को कहा , जो वास्तविक रूप से बहुत ही अच्छा वेटलैंड है। निगम के अधिकारियों के साथ ही वन विभाग के अधिकारी सुपोंग शशि, उप वन संरक्षक उत्तर एवं अजीत ओचोय, उप वन संरक्षक वन्य जीव ने चर्चा की।
झील प्रेमियों से हुई चर्चा
वेटलैंड टास्क फोर्स के पूर्व सदस्य प्रो. महेश शर्मा ने उन्हें बताया कि उदयपुर की उदयसागर एवं फतहसागर झीलें राजस्थान झील विकास प्राधिकरण के तहत पहले से ही संरक्षित हैं। जबकि पिछोला का भी प्रस्ताव भेजा हुआ है। डॉ. अहमद ने बताया कि मानव निर्मित झीलें जो पीने के लिए, सिंचाई, नमक उत्पादन, मछली पालन या आमोद प्रमोद के लिए बनी हो, वो झील वेटलैंड संरक्षण में नहीं आती है। उनके लिए झील संरक्षण प्राधिकरण है जिसमें उनका संरक्षण हो रहा है। स्थानीय झील प्राधिकरण समिति के प्रभारी ने भी निगम की ओर से किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी।