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एक गांव के दो नाम, ग्रामीणों के दो-दो मतदाता पहचान-पत्र

आजादी के सात दशक बाद भी कई गांव ऐसे है जहां अब तक मूलभूत सुविधाएं तक नहीं पहुंच पाई है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 03 Oct 2018 02:00 PM (IST)Updated: Wed, 03 Oct 2018 02:00 PM (IST)
एक गांव के दो नाम, ग्रामीणों के दो-दो मतदाता पहचान-पत्र
एक गांव के दो नाम, ग्रामीणों के दो-दो मतदाता पहचान-पत्र

जयपुर, जागरण संवाददाता। आजादी के 70 साल बाद देश डिजिटल इंडिया बनने की ओर अग्रसर हो रहा है, लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी कई गांव ऐसे है जहां अब तक मूलभूत सुविधाएं तक नहीं पहुंच पाई है। कुछ ऐसे ही हालात आदिवासी अंचल उदयपुर के एक गांव के है।

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यह गांव अनोखा इसलिए है क्योंकि यह दो ग्राम पंचायतों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इस एक गांव के दो नाम हिमदरी और नाकाफला है। यहां तक की ग्रामीणों के पास दो-दो मतदाता पहचान-पत्र भी है,हालांकि चुनाव आयोग की सख्ती के बाद जिला प्रशासन के लोग गांवों में जाकर दो जगह नाम वाले मतदाताओं की पहचान कर इनके नाम एक जगह से हटाने में जुटे है।

दो ग्राम पंचायतों में आने के कारण इस गांव की गाथा भी अजीब है। वोट की राजनीति के शिकार इस गांव के लोगों की स्थिति उस समय अजीब हो जाती है जब पंचायत के चुनाव आते है। ग्रामीणों का कहना है कि मतदान के समय जिस पंयायत के जन प्रतिनिधि पहले आ जाते है। वे उन्हे अपना मतदाता बता वोट डालने के लिए ले जाते है।

इस दौरान वे ग्रामीणें से कई वादे भी करते है, लेकिन चुनाव के बाद इन वादों पर अमल नहीं होता है। यही नहीं यहां के लोग सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं से भी मेहरूम है। आजादी के सात दशक बाद भी हिमदरी और नाकाफला गांवो की सूरत नहीं बदली। विकास से काफी दूर इस गांव के लोगों को अब तक मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पाई है। ग्रामीणों को छोटे से छोट काम के लिए बरसाती नाले को पार कर कई किलोमीटर का सफर तय करना पडता है। यही नहीं गांव के आस पास कोई अस्पताल तक नहीं है। गांव में यदि कोई बीमार पड़ जाए तो ग्रामीण उसे 11 किलोमिटर दूर के अस्पताल में चारपई पर उठा कर ले जाते है।

स्कूल 7 किलोमीटर दूर

गांव में बच्चों की शिक्षा के लिए एक स्कूल तक नहीं है। बच्चों को 7 किलोमीटर दूर तक चलकर स्कूल जाना पड़ता है। स्कूल तक पहूंचने के लिए बच्चों को जंगल के रास्ते से होकर जाना पड़ता है। ऐसे में ग्रामीण भय अपने बच्चों को स्कूल तक नहीं भेज पा रहे है। कुछ बच्चों ने हिम्मत कर के पढाई भी, लेकिन वे 7वीं या 8वीं कक्षा से आगे नहीं पढ पाए। ग्रामीण कई बार अपनी समस्या जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के समक्ष रख चुके,लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा है। ऐसे में यह गांव नेताओं के लिए महज वोट बैंक की भूमिका निभा रहा है। 


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