शोध का विषय बनी जल संरक्षण की यह विधि, पानी बचाकर दुनियाभर में मिसाल बना यह गांव
राजस्थान के लापोड़िया गांव में चौका सिस्टम के तहत होता है जल संरक्षण होता है। करीब चार दशक पहले तक सूखाग्रस्त रहने वाले इस गांव में अब पानी ही पानी नजर आता है।
जयपुर, नरेंद्र शर्मा। यूं ही ‘जल ही जीवन’ नहीं है। भीषण जल संकट और सूखे की मार झेलते राजस्थान में लापोड़िया गांव के लोग इसका प्रमाण हैं। जब पूरा राजस्थान पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा होता है, इस गांव में भरपूर पानी होता है। चारों तरफ व्याप्त हरियाली जल संरक्षण की चौका विधि की कहानी बयां कर रही होती है।
गुलाबी शहर जयपुर से 90 किमी दूर स्थित लापोड़िया गांव भी चार दशक पहले तक सूखाग्रस्त था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। वर्ष 1997 से 2007 तक राजस्थान में नौ बार सूखे के हालत बने, लेकिन लापोड़िया गांव में कभी पानी की कमी नहीं हुई। गांव की हर बस्ती में अपना तालाब है, जो पानी से लबालब है। गांव की यह तस्वीर कोई एक दिन में नहीं बनी बल्कि इस बदलाव में लंबा समय लगा।
करीब 35 साल पहले गांव के ही 17 वर्षीय लक्ष्मण सिंह ने ‘नवयुवक मंडल’ बनाकर बारिश के पानी की एक-एक बूंद को बचाने की शुरुआत की। आज यह गांव दुनियाभर के लोगों के लिए शोध का विषय बन हुआ है। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने लक्ष्मण सिंह को वर्ष 2007 में जल संरक्षण पुरस्कार प्रदान किया। जयपुर में हुए ब्रिक्स देशों की महिला सांसदों के सम्मेलन में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्र महाजन ने लापोड़िया और लक्ष्मण सिंह की चर्चा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘मन की बात’ में जल संरक्षण को लेकर यहां हो रहे कार्यो की चर्चा कर चुके हैं।
लक्ष्मण सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों की मेहनत का परिणाम है कि 2000 लोगों की आबादी वाले लापोड़िया की 1400 बीघा जमीन सिंचित होने के साथ ही आसपास के 58 गांवों को पानी मुहैया कराया जा रहा है। हालत यह है कि लापोड़िया से शुरू बदलाव की बयार पूरे प्रदेश में बहने लगी है। पानी बचाने के लिए यहां अपनाई गई चौका विधि का अध्ययन करने के लिए कुछ समय पूर्व इजराइल का प्रतिनिधिमंडल आया था।
मिट्टी के चौके बनाकर बचाया जाता है पानी :
लक्ष्मण सिंह और उनके सहयोगी जगवीर ने बताया कि चौका एक आयातकार क्षेत्रफल है। इस क्षेत्रफल में गड्ढ़ा खोदा जाता है, जिसमें तीन तरफ मिट्टी की दीवार बनाई जाती है और चौथी तरफ ढलान बनाया जाता है। इसी चौथी तरफ से जब गड्ढ़े में पानी भरता है और ओवरफ्लो होता है तो बाहर निकलने लगता है। शेष पानी अंदर मौजूद रहता है।
ओवरफ्लो होकर बाहर निकलने वाले पानी को भरने के लिए तीन तालाब बनाए गए हैं। इनमें एक तालाब का नाम है अन्न सागर, इससे सिंचाई हाती है। दूसरे तालाब देव सागर से पीने के पानी की आपूर्ति होती है और तीसरा तालाब फूल सागर है। इससे पशुओं को पीने के लिए पानी छोड़ा जाता है। ये तालाब पक्के बनाए गए हैं। चौका में नौ इंच पानी भार को सहन करने की क्षमता होती है। यह भी ध्यान रखा गया है कि दो चौकों में तीन मीटर की दूरी हो, जिससे पानी का दबाव पाल पर नहीं पड़े और चौकों में पानी ठहरने की किसी तरह की समस्या भी नहीं हो।
चौका सिस्टम में बारिश का पानी जहां गिरता है, वहीं एकत्र हो जाता है। लंबे ढलान को छोटे-छोटे ढलानों में बांटने से पानी बहने की रफ्तार इतनी कम होती है कि जमीन का कटाव नहीं होता है। इससे पानी का बहाव रूककर जमीन में ही भर जाता है। इससे घास, झाड़ियों एवं पेड़-पौधों को उगाने में मदद मिलती है। सूखा पड़ने पर भी यहां पानी की उपलब्धता होती है। जमीन को पक्का नहीं किया जाता है, इस कारण पानी रिचार्ज होता रहता है। पानी की समस्या दूर होने के बाद गांव के 90 फीसद परिवारों ने खेती के साथ ही पशुपालन शुरू किया है। इससे इस गांव में आर्थिक तरक्की भी हुई है।