प्रेम विवाह की यह कैसी सजा, चिता को अग्नि देने तक से किया इनकार,चार दिन बाद हुआ अंतिम संस्कार।
मृतक की पत्नी अपने बच्चे को गोद में लेकर खड़ी परिजनों का करती रही इंतजार, लेकिन कोई नहीं आया। मृत्यु के चार दिन बाद स्वयं सेवी संस्था की मदद से हो सका अंतिम संस्कार।
उदयपुर, जेएनएन। एक प्रेमी युगल को उसके अपनों ने 15 साल पहले किए प्रेम विवाह की ऐसी सजा दी कि युवक को उसके आखिरी समय में न तो पैतृक गांव की मिट्टी नसीब हुई, न ही परिवार वालों को अंतिम क्षणों में देख पाने की इच्छा पूरी हो सकी। प्रेम विवाह के चलते समाज से बहिष्कृत किए गए युवक की पत्नी अपने बच्चे को गोद में लेकर अकेली खड़ी रही, लेकिन दोनों ही पक्षों से किसी ने अंतिम संस्कार करने तक में सहयोग नहीं किया। आखिरकार उदयपुर की महाराणा प्रताप सेना संस्था ने महिला का सहयोग किया और मृतक की चिता को अग्नि नसीब हुई।
राजसमंद के तासोल निवासी हेमराज पुरबिया गाडरी ने 15 साल पहले भील समाज की युवती नंदू पुत्री बालूराम से प्रेम विवाह किया था। इनके प्रेम विवाह से नाराज परिजनों और समाज के मौतबीरों और पंचों ने इन दोनों को गांव व समाज से बहिष्कृत कर दिया था। दोनों एक साथ रहे और इनका परिवार भी बढ़ा, लेकिन परिजनों और समाज ने इन्हें नहीं अपनाया।
कुछ दिनों पहले हेमराज का स्वास्थ्य खराब हुआ, उपचार के लिए उसे एमबी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। चार दिन पहले इलाज के दौरान हेमराज की मृत्यु हो गई। हेमराज की पत्नी नंदू ने हेमराज के परिजन और अपने पीहर दोनों पक्षों में इसकी सूचना दी, लेकिन दोनों पक्षों ने ही अंतिम संस्कार पैतृक गांव में करने से इनकार कर दिया।नंदू के पिता आ भी गए, लेकिन शव ले जाने से उन्होंने भी इनकार कर दिया। परेशान नंदू अपने छोटे बच्चे के साथ परिजनों के आने का इंतजार करती रही, लेकिन कोई नहीं आया।
पुलिस ने भी परिजनों से संपर्क कर काफी समझाया और शव ले जाने को कहा, लेकिन कोई परिजन आगे नहीं आया। मंगलवार को पुलिस के जरिए नंदू ने उदयपुर की स्वयं सेवी संस्था महाराणा प्रताप सेना से संपर्क कर निवेदन किया। महाराणा प्रताप सेना की मदद से मृत्यु के चार दिन बाद मंगलवार को हेमराज का अंतिम संस्कार हो सका।