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एक ऐसा भी मंदिर है, जहां भगवान की नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन की पूजा की जाती है

बांसवाड़ा जिले में उदयपुर-बांसवाड़ा हाईवे के बीच एक ऐसा भी मंदिर है जहां भगवान की नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन की पूजा की जाती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 20 May 2019 03:29 PM (IST)Updated: Mon, 20 May 2019 03:29 PM (IST)
एक ऐसा भी मंदिर है, जहां भगवान की नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन की पूजा की जाती है
एक ऐसा भी मंदिर है, जहां भगवान की नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन की पूजा की जाती है

उदयपुर, सुभाष शर्मा। बांसवाड़ा जिले में उदयपुर-बांसवाड़ा हाईवे के बीच एक ऐसा भी मंदिर है, जहां भगवान की नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन की पूजा की जाती है। यह मंदिर बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब पचास किलोमीटर दूर लसाड़ा गांव के तालाब की पाल पर बना है। जिसके निर्माण को लेकर अनोखी कहानी है।

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ग्रामीण बताते हैं कि बात साल 1979 की है। लसाड़ा के समीप भीमगढ़ गांव में डूंगरपुर जिले के लीमड़ी (आसपुर तहसील) से एक बारात आई थी। शादी के बाद बारात बड़े धूमधाम से विदा हुई। पालोदा गांव के आगे लसाड़ा तालाब की पाल पर गुजरते समय बारातियों से भरी बस का एक्सीडेंट हो गया। इस सड़क हादसे में लीमड़ी गांव के दूल्हा मोतीसिंह और भीमगढ़ गांव की दुल्हन सुशीला कंवर की मौके पर ही मौत हो गई थी। तब मोतीसिंह की उम्र 22 साल तथा दुल्हन सुशीला की उम्र बीस साल थी।

हादसे में एक अन्य बच्ची की भी मौत हुई और अन्य आठ लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस सड़क की ओर लसाड़ा तालाब है और दूसरी ओर खाई बनी हुई है। यहां से तालाब की पाल से ही गुजरना होता है। इसके बाद यहां आए-दिन दुर्घटनाएं होती रही। हालांकि विकट मोड की वजह से यहां दुर्घटना की आशंका बनी रहती थी। फिर भी स्थानीय लोगों और प्रबुद्धजनों से चर्चा के बाद यहां साल 2005 में मंदिर निर्माण का निर्माण लिया गया।

ग्रामीणों ने तय किया कि यहां बनाए जाने वाले मंदिर में किसी देवी-देवता या भगवान की प्रतिमा नहीं, बल्कि दूल्हा-दुल्हन की प्रतिमा लगाई जाएगी। ग्रामीणों की सहमति के बाद यहां मंदिर बनाया गया और दूल्हा-दुल्हन की प्रतिमाएं विराजी गईं। ग्रामीणों का दावा है कि यहां मंदिर बनने के बाद इस जगह पर दुर्घटनाएं होनी बंद हो गई। इससे स्थानीय लोगों ही नहीं, बल्कि इस मार्ग से गुजरने वाले वाहन चालकों की आस्था भी इस मंदिर से जुड़ती गई।

बाराती दर्शन करके ही गुजरते हैं आगे

भीमगढ़ के शंकरलाल चौहान बताते हैं कि जबसे इस मंदिर में दूल्हा-दुल्हन की मूर्तियां स्थापित की हैं, तब से यहां से गुजरने वाली हर बारात के लोग रुककर मंदिर में दर्शन करते हैं। मंदिर में स्थापित दूल्हा-दुल्हन को शृंगार का चढ़ाने के बाद ही आगे बढ़ते हैं। कुंवारे लडक़े-लड़कियों को भी सगाई या शादी में किसी प्रकार का विघ्न आ रहा है तो यहां आकर विघ्न दूर होने की मन्नत मांगते हैं। 

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