Rajasthan: ऋग्वेद और उपनिषदों में भी है मूर्तिकला की जानकारी
उदयपुर में आयोजित मूर्ति कला की राष्ट्रीय कार्यशाला में आए डेक्कन कॉलेज पूना के प्रो. जीबी डेगलूरकर ने बताया ऋग्वेद और उपनिषदों में भी है मूर्तिकला की जानकारी।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। उदयपुर में आयोजित मूर्ति कला की राष्ट्रीय कार्यशाला में आए डेक्कन कॉलेज पूना के प्रो. जीबी डेगलूरकर ने बताया ऋग्वेद और उपनिषदों में भी है मूर्तिकला की जानकारी। मूर्तिकला के बारे में हमें ऋग्वेद और उपनिषदों में भी जानकारी मिलती है। जो हमें उस समय की सामाजिकता के बारे में बताती है। यह कहना है कि डेक्कन कॉलेज पूना के प्रो. जीबी डेगलूरकर का, जो उदयपुर के जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में आयोजित मूर्तिकला विषयक कार्यशाला में भाग लेने आए हैं।
प्रो. डेगलूरकर का कहना है कि मूर्तिकला के साक्ष्य पुरातन काल से मिलते हैं। जिसमें समय और काल के अनुसार चली आ रही परम्पराओं की जानकारी मिलती है। मूर्तिकला एक विरासत है जिसके अध्ययन से उस काल के बारे में पता लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किसी भी विरासत को जीवंत रखने के लिए जरूरी है, उस विषय के जानने वाले का जीवंत रहना। व्यक्ति यदि अपनी परम्परा, संस्कृति, धर्म, मानवता एवं सच्चे इंसान के स्वरूप को मृत्युपर्यन्त तक बनाए रखे तो निश्चत है कि वह जीवंत विरासत को आगे लेजाने में सक्षम है।
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मिट्टी, पत्थर और धातु की मूर्तियां मिलती हैं राजस्थान में इतिहासकार डॉ. विष्णु माली बताते हैं कि राजस्थान में मिट्टी के अलावा, पत्थर तथा धातुओं की मूर्तियां मिलती हैं। उदयपुर के निकट आहड़ सभयता में निकली मूर्तियां पकी हुई मिट्टी से निर्मित हैं। जबकि समूचे राजस्थान में काले, सफेद, भूरे, हल्के सलेटी, हरे और गुलाबी पत्थर के अलावा पीतल तथा अन्य धातुओं की मूर्तियां विभिन्न स्थानों में मिलती रही हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि पत्थर की मूर्तियों में शैव, वैष्णव तथा शाक्त संप्रदाय की मूर्तियां पाई जाती है। उन्होंने बताया कि उदयपुर के निकट सास-बहू मंदिर, जगत के अंबिका मंदिर तथा एकलिंगनाथ मंदिर में रामायण महाकाव्य की विभिन्न घटनाओं को लेकिन छवियां मौजूद हैं। भगवान शिव की छवियों के साथ राम-बलराम, परशुराम की भी छवियां पाई जाती हैं।