अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पर सुरक्षा के लिए तरू और तकनीक का उपयोग होगा
बीएसएफ सूत्रों के अनुसार 100 से 150 ऊंचे रेत के टीलों के कारण प्रहरियों को कुछ नजर नहीं आता और पाकिस्तानी घुसपैठिये इसका लाभ उठाकर हमारी सीमा में प्रवेश कर जाते है ।
जयपुर, [नरेन्द्र शर्मा] । पाकिस्तान से सटी राजस्थान की 1070 किलोमीटर लम्बी सीमा पर घुसपैठ रोकने के लिए बीएसएफ ने अब तकनीक और तरू का उपयोग करने का निर्णय किया है । इसी के तहत तारबंदी में 440 वॉल्ट का कोबरा करंट छोड़ने के साथ ही शििफ्टंग सेंड डयूंस अर्थात सरकते रेत के टिलों में अब स्थानीय प्रजातियों के पेड़ लगाने का निर्णय किया है ।
तारबंदी में कोबरा करंट छोड़ने का काम तो प्रारम्भ हो गया वहीं अब अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे जैसलमेर जिले के शाहगढ़ बल्ज क्षेत्र में 32 किमी.के शििफ्टंग सेंड डयूंस एरिया में पेड़ लगाकर रेत के टीलों को शिफ्ट होने से रोकने के प्रयास किए जाएंगे । बीएसएफ अधिकारियों का सोच है कि पेड़ के सहारे तारबंदी को भी रोका जा सकेगा, तेज हवाओं के बीच उड़ने वाली रेत के कारण कई बार मजबूत होने के बावजूद भी उखड़ जाती है।
जैसलमेर जिले की 472 किमी.लम्बी सीमा पाकिस्तान से सटी हुई है । इस सीमा में सबसे अधिक संवेदनशील
शाहगढ़ बल्ज क्षेत्र की सीमा है । इस क्षेत्र में बीएसएफ ने आठ फीट ऊंची फेंसिंग कर रखी है,लेकिन कई बार यह सही ढंग से कारगर साबित नहीं हो पाती है,क्योंकि यहां तेज हवाओं के बीच एक ही रात में रेत के टीले एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो जाते हैं। इन रेत के टीलों की ऊंचाई 100 से 150 तक होती है । इनके नीचे ताऱबंदी और बीएसएफ की तरफ से लगाए गए रिफ्लेक्टर भी दब जाते है । ऐसी स्थिति में बीएसएफ के जवान लकड़ियां गाड़कर सीमा की रक्षा करते है ।
बीएसएफ सूत्रों के अनुसार 100 से 150 ऊंचे रेत के टीलों के कारण प्रहरियों को कुछ नजर नहीं आता और पाकिस्तानी घुसपैठिये इसका लाभ उठाकर हमारी सीमा में प्रवेश कर जाते है । बीएसएफ अधिकारियों का मानना है कि पड़े लगाए जाने से रेत पहले के मुकाबले कम उड़ेगी और यदि उड़ेगी भी तो हमें हमारी सीमा का ज्ञान रहेगा । वर्तमान में रेत के नीचे तारबंदी दबने से कई बार बॉर्डर तय करने मे जो परेशानी होती है वह अब पेड़े लगने के बाद नहीं होगी । बीएसएफ की जोधपुर रेंज के आईजी अनिल पालिवाल का कहना है कि शाहगढ़ बल्ज क्षेत्र में शििफ्टंग सेंड ड्यूसं की समस्या से निपटने के लिए वृक्षारोपण और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करने का निणर्य लिया गया है ।