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राजस्थान के इन इलाकों में पेट भरने की मजबूरी में रोटी के लिए खुद को रख देते हैं गिरवी

मजदूरी नहीं मिलने पर भूखे मरने की नौबत से बचने और परिवार को दो जून की रोटी के लिए परिवार के मुखिया खुद या किसी सदस्य को गिरवी तक रख देते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 14 Jun 2019 01:03 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jun 2019 01:03 PM (IST)
राजस्थान के इन इलाकों में पेट भरने की मजबूरी में रोटी के लिए खुद को रख देते हैं गिरवी
राजस्थान के इन इलाकों में पेट भरने की मजबूरी में रोटी के लिए खुद को रख देते हैं गिरवी

उदयपुर, संवाद सूत्र । लिंबोड़ी गांव के मोहना हो रमिया खड़िया हों या चुडई गांव का लाल, दोनों के ही परिवार के हालात एक जैसे हैं। जिस दिन काम मिल जाए तो भोजन मिल जाता है, नहीं मिला तो भूखा रहना होता है। ऐसे हालात इनके परिवारों के ही नहीं, बल्कि राजस्थान के मेवाड़-वागड़ के सैकड़ों आदिवासी परिवारों के हैं। ये अरावली की उजाड़ पहाड़ियों के बीच बसे हुए हैं। इन परिवारों के भरण- पोषण का एकमात्र जरिया मजदूरी ही है। मजदूरी नहीं मिलने पर भूखे मरने की नौबत से बचने और परिवार को दो जून की रोटी के लिए परिवार के मुखिया खुद या किसी सदस्य को गिरवी तक रख देते हैं।

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भीषण गर्मी में काम नहीं मिलने से इन दिनों उदयपुर संभाग के प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर के साथ उदयपुर के आदिवासी बहुल हिस्सों में कई आदिवासी परिवारों में भूखमरी के हालात हैं। कई परिवारों ने अपने बच्चों तक को मजदूरी के एवज में गिरवी रख दिया है।

प्रतापगढ़ जिले के रमिया खड़िया बताते हैं कि यह पीड़ा केवल उनकी अकेले की नहीं है, अरावली की बंजर घाटियों के बीच बसे दो दर्जन से अधिक गांवों के लोगों की पीड़ा है। इन दिनों काम नहीं मिल रहा है। गांव के ज्यादातर बच्चे और युवा दलालों के माध्यम से बाहर काम करने गए है। इसके एवज में उनके परिवारों को मिली एकमुश्त राशि उनके भरण-पोषण के लिए सहारा बनती है। यह एक तरह से गिरवी रहना होता है। एकमुश्त मजदूरी ले लिए जाने की वजह से वहां से काम किए बिना लौटना मुश्किल होता है।

खेती नहीं हो पाती, मजदूरी ही सहारा

बंजर पहाड़ियों के बीच बसे ज्यादातर गांवों में कृषि योग्य भूमि नहीं है। विशेषकर आदिवासी सैकड़ों सालों से समतल भूमि पर रहने की बजाय पहाड़ियों पर ही रहते आए हैं। पहाड़ी के बीच 100-200 वर्ग फीट समतल जमीन मिल गई तो वहां साल में एक बार मक्का की फसल ले लेते हैं। यह कुछ महीनों के जीवन यापन के लिए पर्याप्त होती है। बाकी समय मजदूरी ही सहारा है।

महाराष्ट्र- गुजरात के कारोबारियों के यहां गिरवी रहकर करते है काम

इस तरह की पीड़ा भोग रहे आदिवासियों ने बताया कि गिरवी रहकर काम करने की उनकी मजबूरी हाल की नहीं, बल्कि दशकों पुरानी है। महाराष्ट्र और गुजरात के कारोबारियों से वे एकमुश्त राशि लेकर उनके यहां काम करते हैं। इसी तरह अपने बच्चों को भी ऐसे कारोबारियों के यहां भेजने के बदले में रुपए लेने लगे हैं।

पनपे दलाल, निरक्षरता का उठाते हैं लाभ

महाराष्ट्र- गुजरात के साथ ही मध्य प्रदेश के कुछ कारोबारियों को न्यूनतम मजदूरी पर श्रमिक उपलब्ध कराने के लिए कुछ लोगों ने दलाली शुरू कर दी है। इन आदिवासियों की निरक्षरता, मजबूरी और मेहनतकश होने का लाभ दलालों ने उठाना शुरू कर दिया है। वे कारोबारियों से एकमुश्त राशि लेकर अपना हिस्सा काटकर इन आदिवासियों को दे देते हैं। गिरवी रखने का चलन बढ़ने के साथ ही मारवाड़ और मप्र के गड़रिये भी यहां से बच्चे गिरवी रखने के लिए ले जाने लगे।

कारोबारी नहीं, गड़रिये करने लगे बच्चों को परेशान

नाम नहीं बताने की शर्त पर एक दलाल ने बताया कि कारोबारियों के यहां काम करने में लोगों को कभी मुश्किल नहीं आई। उनके व्यापारिक संस्थानों में काम करने के बाद मजदूरों को आराम का वक्त मिल जाता है परंतु गड़रिये गिरवी रखे गए बच्चों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते। उनसे दिनभर चरवाहे के रूप में काम लेते हैं। जब आराम का वक्त होता है तब उनसे पानी लाने से लेकर खाना पकाने तक का काम करवाया जाता है।

इन गांवों में हालात ज्यादा विकट

उदयपुर संभाग के आदिवासी बहुल जिलों बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर जिले में अरावली पर्वतमाला के बीच बसे चुंडई, बोरतालाब, मैमखोर, भैंठेसला, परखेदा, बलागुदा, बावड़ीखेड़ा, बजनी, दबरा, पर्खदा, डॉटर, कनेरा, कटारों का खेड़ा, लिम्बोड़ी, अंबाघाटी आदि गांव में हालात काफी मुश्किल हैं।

बच्चों का लौटना इसलिए मुश्किल

गिरवी रखे बच्चे चाहकर भी अपने घर लौट नहीं पाते। वैसे भी उनका कारोबारियों और गड़रियों के चंगुल से बचना मुश्किल होता है और यदि वे वहां से निकल भी जाते हैं तो वे अपने घर का पूरा पता ही नहीं बता पाते। यदि गांव पता है तो तहसील या जिला ही नहीं बता पाते, इसलिए घर लौटना मुश्किल होता है। कुछ बच्चे घर लौट आने में सफल रहे लेकिन अब वे अपने परिजन के साथ रहना नहीं चाहते।

राजस्थान बांसवाड़ा केे महिला एवं बाल विकास विभाग उप निदेशक पार्वती कटारा ने कहा-  चर्चा में आया था कि कुछ बच्चों को गिरवी रखा गया लेकिन विभाग को किसी तरह की कोई शिकायत नहीं मिली।

उदयपुर रेंज आईजी प्रफुल्ल कुमार ने कहा- बच्चों के गिरवी रखे जाने की बात सामने आने पर बांसवाड़ा पुलिस ने एक दलाल को पकड़ा है। उससे पूछताछ जारी है। बच्चों को काम पर ले जाने के मामले में पुलिस समय-समय पर कार्रवाई करती रही है। 

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