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Jaipur 2008 Blast Case: जयपुर बम धमाकों के पीड़ितों की कहानी, उन्हीं की जुबानी

Jaipur 2008 Blast Case. जयपुर बम धमाकों ने ना जाने कितने परिवारों को जिंदगी भर ना सह पाने का दर्द दे दिया।

By Sachin MishraEdited By: Published: Wed, 18 Dec 2019 03:54 PM (IST)Updated: Wed, 18 Dec 2019 03:54 PM (IST)
Jaipur 2008 Blast Case: जयपुर बम धमाकों के पीड़ितों की कहानी, उन्हीं की जुबानी
Jaipur 2008 Blast Case: जयपुर बम धमाकों के पीड़ितों की कहानी, उन्हीं की जुबानी

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। Jaipur 2008 Blast. 11 साल सात माह पहले जयपुर के लोगों को मिला दर्द अब भी नासूर बना हुआ है। शहर के लोगों में 13 मई, 2008 को शाम को सिलसिलेवार हुए आठ बम विस्फोटों की कड़वी यादें आज भी हैं। इन बम धमाकों ने ना जाने कितने परिवारों को जिंदगी भर ना सह पाने का दर्द दे दिया। बुधवार को कोर्ट द्वारा आरोपितों को दोषी करार दिए जाने के बाद पीड़ित परिवारों ने कहा कि इस फैसले का हम 11 साल से इंतजार कर रहे थे। बम विस्फोट में 71 लोगों की मौत होने के साथ 185 लोग घायल हो गए थे। ब्लास्ट में अपनों को खोने वालों के लिए यह न्याय एक राहत की उम्मीद है। लेकिन, आज 11 साल बाद भी इनके जख्म नहीं सूख रहे हैं। ऐसे ही कुछ लोगों ने "दैनिक जागरण" को बताई पीड़ाः

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दोषियों को फांसी पर लटकाया जाएः लियाकत खान 

शहर के जौहरी बाजार में पानी-पताशी का ठेला लगाने वाले विनोद सिंह बम ब्लास्ट में अपना एक पैर गंवा चुका है। दूसरे पैर में भी आठ छर्रे लगे थे। विनोद ने बताया कि ब्लास्ट वाले दिन शाम को तीन बहनें मेरे ठेले पर पताशी खाने आई थी। मैं उन्हें पताशी खिलाने की तैयारी ही कर रहा था कि अचानक ब्लास्ट हुआ और तीनों की मौत हो गई। मैं बुरी तरह से घायल हो गया। इस धमाके में मरने वाली तीनों बहनें असमा खान, सुमेरा खान और एनी खान नियमित रूप से वहां आती रहती थी। वे तीनों बहनें सांगानेरी गेट हनुमानजी के मंदिर में दर्शन भी करती थी। तीनों बहनों के पिता लियाकत खान का कहना है कि दोषियों को हमारी आंखों के सामने फांसी पर लटकाया जाना चाहिए।

दहशत के उन पलों को नहीं भूले हैं राजेंद्र साहू  

बम धमाकों में अपनी पत्नी सुशीला को खोने वाले जयपुर के सोड़ाला निवासी राजेंद्र साहू ने कोर्ट के फैसले पर संतोष जताते हुए कहा कि मैं आज भी दहशत के उन पलों को भूल नहीं पा रहा हूं। उन्होंने बताया कि बम धमाकों में गंभीर रूप से घायल हुई सुशीला चार साल तक बिस्तर पर रही और आखिरकार एक मई, 2012 को उसकी मौत हो गई। उन्होंने कहा कि चांदपोल हनुमानजी के मंदिर के पास हुए बम धमाकों में सुशीला के सिर में गहरी चोट लगने के कारण उसकी बीमारी के चलते मौत हो गई।

कोर्ट के फैसले से मिली राहतः पूनम

हमें राहतबम ब्लास्ट में अपने आठ साल के भाई शुभम को खोने वाली उसकी बड़ी बहन पूनम ने रोते हुए कहा कि आज मेरा भाई 19 साल का हो जाता। पूनम ने कहा कि मैं हर दिन अपने भाई को याद करती हूं, चाहे राखी और या भाई दूज या उसका जन्मदिन। एक भाई को खोकर बहन के साथ क्या होता है यह आतंकी नहीं जान सकते। पूनम ने कहा कि कोर्ट के फैसले से हमें राहत मिली है। शुभम अपनी बहन के साथ सांगानेरी गेट स्थित अपनी नानी के घर गया था। 13 मई को बम ब्लास्ट वाले दिन वह अपने मामा के लड़के के साथ सांगानेरी गेट हनुमानजी के मंदिर में दर्शन करने गया और इसी बीच वहां ब्लास्ट हो गया। इसमें शुभम की मौत हो गई। तब से लेकर आज तक पूरा परिवार सदमें में है। शुभम के पिता कहते हैं कि आज मेरा बेटा जिंदा होता तो वो हमारा बोझ उठाता, लेकिन अब मैं उसकी याद में रोते हुए परिवार को पाल रहा हूं।

दोषियों को हो फांसी

ब्लास्ट में शहर के उनियारों के रास्ते निवासी रामप्रसाद की भी मौत हो गई थी। उनकी बहू का कहना है कि दोषियों को फांसी होनी चाहिए। सीरियल ब्लास्ट में हमारे घर का मुखिया चला गया। इसके बाद परिवार की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई। देवर फूल माला की दुकान लगाते हैं। इसी दुकान के सहारे पिछले कई साल से घर चल रहा है। हादसे के बाद से कर्जे वाले भी लगातार परेशान करने लगे। हमारे बच्चे कैसे पल रहे हैं, हम ही जानते हैं। आज हम कैसे अपना गुजारा कर रहे हैं, कोई दूसरा नहीं समझ सकता। हमारे बच्चे अनपढ़ रह गए। उनकी पढ़ाई का खर्च तक नहीं उठा सके। 

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