Rajasthan: उदयपुर के गोविंद खारोल ने अपनी शारीरिक कमजोरी को बना लिया ताकत
Govind Kharol राजस्थान में उदयपुर के गोविंद खारोल ने अपनी शारीरिक कमजोरी को अपनी ताकत में तब्दील कर लिया और आज वह दूसरों को भी सीख दे रहे हैं। बचपन से दिव्यांग गोविंद खारोल की कहानी संघर्षों से भरी है। आज लोग उनके आगे नतमस्तक हो जाते हैं।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। Govind Kharol: जिनके सपनों में जान होती है, उन्हें मंजिल अवश्य मिलती है। पंखों से नहीं बल्कि हौसलों से उड़ान भरी जाती है। हमें ऐसे भी लोग मिलेंगे, जिन्होंने इन पंक्तियों को अपने जीवन में उतार लिया है। ऐसे ही बुलंद हौसले वाले हैं उदयपुर के गोविंद खारोल। जिन्होंने अपनी शारीरिक कमजोरी को अपनी ताकत में तब्दील कर लिया और आज वह दूसरों को भी सीख दे रहे हैं। बचपन से दिव्यांग गोविंद खारोल की कहानी संघर्षों से भरी है। आज लोग उनके आगे नतमस्तक हो जाते हैं। गोविंद की पहचान आज बेहतर साइकिलिस्ट, फोटोग्राफर, फुटबॉलर, फिल्ममेकर, रनर, ट्रेवलर के रूप में है। वह कहते हैं सामान्य आदमी जहां सौ करने में सक्षम है तो वह एक सौ एक काम करने की योग्यता रखते हैं। हालांकि इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्हें कई संघर्षों से गुजरना पड़ा।
बचपन से सकारात्मक सोच ने उनका हौसला बढ़ाता रहा। अब गोविंद तीस साल के हैं तथा उनकी साइकिलिंग देखकर अच्छे-अच्छे साइकिलिस्ट भी दंग रह जाते हैं। अपने दिव्यांग इकलौते हाथ से जब वह साइकिल चलाते सड़क से गुजरते हैं तो लोग मुड़कर देखने लगते हैं। साइकिलिंग के साथ उसने फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, ट्रैकिंग, रनिंग, फिल्म मेकिंग का हुनर भी सीख लिया। जब कभी समय मिलता दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलते और आज उदयपुर के सबसे बेहतर फुटबॉल खिलाड़ियों में से एक हैं। गोविंद बहुत अच्छा रनर भी है और कई मैराथन में हिस्सा ले चुका है।
सामान्य स्कूल में प्रवेश देने से कर दिया था इनकार
गोविंद बताते हैं कि जब उसने स्कूल में प्रवेश लेना चाहा तो स्कूल प्रबंधन ने उन्हें प्रवेश देने की बजाय राय दी कि उन्हें स्पेशल स्कूल में प्रवेश दिलाया जाए। किन्तु उसकी जिद थी कि वह सामान्य बच्चों की तरह शिक्षा पाना चाहता था। उसकी जिद तथा परिजनों की भरपूर कोशिश के बाद सफलता मिली और वह सामान्य बच्चों की तरह शिक्षा लेने में सफल रहा। जिसका परिणाम यह रहा कि उसे कॉलेज में भी प्रवेश मिल गया और उसने शिक्षा में स्नातक डिग्री हासिल कर ली।
टेलीफोनिक इंटरव्यू में मिली नौकरी लेकिन सामने आते ही कर दिया था मना
गोविंद ने बताया कि उसने एक निजी कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया। टेलीफोन पर लिए इंटरव्यू के बाद उन्हें नौकरी भी मिली, लेकिन जब नौकरी जोइन करने पहुंचे तो देखते ही काम पर रखने से इनकार कर दिया। कुछ क्षण के लिए निराशा भी हुई, लेकिन अपने आप को संभाल लिया।
अपने आप से जमकर करता था लड़ाई
गोविंद का कहना है कि बचपन में उसके सहपाठी उससे दोस्ती करने से कतराते थे। यही स्कूल तक चलता रहा। कॉलेज में आने के बाद दोस्ती के बारे में जाना। इससे पहले उसकी खुद के साथ लड़ाई चलती रहती थी। जब सहपाठी उसे शामिल नहीं करते तो वह निराश नहीं होता, बल्कि अपनी उस प्रतिज्ञा को पूरी करने में जुट जाता कि उसकी दिव्यांगता नहीं, बल्कि उसके कामों के चलते आगे से उसके दोस्त बनेंगे। जिसमें वह सफल रहा। कॉलेज में होने वाले हर कार्यक्रम हिस्सा लेना शुरू किया और दोस्तों ने उसकी मदद भी की। मित्र के जरिए प्रोफेशनल फोटोग्राफी तथा वीडियोग्राफी सीखी। साथ ही, फिल्म मेकिंग का काम सीखा जो उसकी आत्मनिर्भरता में सहायक बना।