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रणथंभौर सेंचूरी मामला: पैसों के लिए टाइगर के हमलों की झूठी कहानी गढ़ते है ग्रामीण

राजस्थान के रणथंभौर अभयारण्य में टाइगर हमले के झूठे मामले की बात आई है।ग्रामीण टाइगर अटैक का दावा कर सरकार से मुआवजे के रूप में पैसे लेने के लिए गिरोह बनाकर काम कर रहे है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 04 Jul 2019 01:33 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2019 01:33 PM (IST)
रणथंभौर सेंचूरी मामला: पैसों के लिए टाइगर के हमलों की झूठी कहानी गढ़ते है ग्रामीण
रणथंभौर सेंचूरी मामला: पैसों के लिए टाइगर के हमलों की झूठी कहानी गढ़ते है ग्रामीण

जयपुर, जागरण संवाददाता। राजस्थान के रणथंभौर अभयारण्य में टाइगर हमले के झूठे मामले सामने आने की बात सरकार के समक्ष आई है। आरोप है कि रणथंभौर टाइगर रिजर्व इलाके के आसपास रहने वाले ग्रामीण मुआवजे के लिए फर्जी टाइगर अटैक का दावा कर रहे है। इस बात का खुलासा हुआ है कि ये ग्रामीण टाइगर अटैक का दावा कर सरकार से मुआवजे के रूप में पैसे लेने के लिए गिरोह बनाकर काम कर रहे है।

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टाइगर के हमलों के आते है झूठे फोन

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि पिछले एक साल में टाइगर के हमला करने की कई घटनाएं सामने आई है। इन घटनाओं पर विभाग को संदेह है। एक मामले में बताया गया कि एक किसान पर अभयारण्य के देवपुरा चेकपॉइंट के पास टाइगर ने हमला किया। उसने अपने शरीर में मामूली चोटें दिखाईं। उसे अस्पताल ले जाया गया जहां प्राथमिक उपचार के बाद घर भेज दिया गया।

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्राथमिक जांच में सामने आया है कि इलाके में टाइगर के हमला किए जाने का एक भी साक्ष्य वाला केस सामने नहीं आया है। इलाकों में टाइगर देखे गए लेकिन हमले के कोई निशान नहीं मिले।

वन विभाग के साथ ही जिला प्रशासन के अधिकारियों का भी कहना है कि ग्रामीण टाइगर के हमलों का दावा मात्र मुआवजे के लिए करते है। अधिकारियों ने बताया कि टाइगर के हमले से मौत होने पर राज्य सरकार चार लाख रुपये मुआवजा देती है।

हालांकि गांववाले स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों से टाइगर के हमले से घायल होने का दावा करके मुआवजा मांगते है। दबाव पड़ने पर विभाग के लोग टाइगर फाउंडेशन के फंड से कुछ मामलों में मुआवजा देते है। वहीं जनप्रतिनिधियों के दबाव में सरकार भी मुआवजा राशि दे देती है ।

अधिकारी ने बताया कि पिछले साल 13 साल के एक मेल टाइगर टी-28 को रेस्क्यू कराने पहुंची टीम को लोगों ने घेर लिया था। ग्रामीणों ने घेराव के बाद उन्होंने मुआवजा देने का दबाव बनाया। हालांकि कोई भी टाइगर से हमले से घायल नहीं हुआ था। लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते आखिर विभाग को 30 हजार रुपये देने पड़े थे।

अधिकारियों का मानना है कि अधिकांश मामलों में टाइगर सिर्फ तभी ग्रामीणों पर हमला करता है जब वे उसके वन क्षेत्र में घुसपैठ करते हैं। मुख्य वन संरक्षक और रणथंभौर टाइगर प्रॉजेक्ट सवाई माधोपुर के निदेशक ने कहा कि विभाग के पास टाइगर के हमले की आने वाले 10 में से 7 सूचनाएं झूठी होती है। लोगों को टाइगर, हाइना और तेंदुए में कोई फर्क नहीं नहीं आता है। वे किसी भी जानवर के हमले को भी टाइगर का हमला ही बताते हैं।


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