Rajasthan Politics: तीन दशक में गहलोत ने कई दिग्गजों को घर बैठाया और खुद ही बन गए कांग्रेस के एकमात्र चेहरा
तीन दशक में गहलोत ने कई दिग्गजों को घर बिठाया और खुद ही बन गए कांग्रेस के एकमात्र चेहरा पहली बार सचिन पायलट ने गहलोत को आंख दिखाई
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक हमेशा कहते रहे है कि राजस्थान में कांग्रेस का मतलब गहलोत है। तीन दशक से गहलोत प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा बने हुए हैं। समर्थकों ने उन्हे "मारवाड़ का गांधी" और "जादूगर" जैसे नाम दिए हैं। प्रदेश की पूर्व मंत्री बीना काक ने चार दिन पहले ही एक शेर सुनाया ''जादूगर तुम अनोखे हो, निराले हो, शिकारी शिकार को बनाने वाले हो...''।
बीना काक का ये शेर गहलोत पर बिल्कुल सही साबित होता है। गहलोत ने पिछले तीन दशक में कई दिग्गज कांग्रेसियों का राजनीतिक रूप से शिकार किया। ये वे दिग्गज थे, जिनकी कभी तूती बोलती थी। गहलोत ने धीरे-धीरे सभी दिग्गज नेताओं को राजनीतिक रूप से कमजोर कर पार्टी पर मजबूत पकड़ बना ली। प्रदेश में एक दौर ऐसा आया कि गहलोत के अलावा कांग्रेस का कोई बड़ा नेता नहीं बचा। साढ़े छह साल पहले सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनकर आए तो गहलोत ने उन्हे अधिक गंभीर नहीं लिया। लेकिन जैसे-जैसे पायलट अपने समर्थकों की टीम तैयार करने लगे तो गहलोत खेमे ने उनके खिलाफ मुहिम शुरू कर दी।
2018 में विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर गहलोत व पायलट में जमकर विवाद हुआ । दोनों के बीच आधी-आधी टिकटों का बंटवारा हुआ । चुनाव परिणाम आने के बाद जब सीएम बनने का मौका आया तो गहलोत ने अपने राजनीतिक कौशल के चलते पायलट को मात दे दी । तभी से दोनों के बीच खींचतान बढ़ गई और उसी का परिणाम है कि अब पायलट ने बगावत कर दी ।
इन दिग्गजों का किया शिकार
हरिदेव जोशी, परसराम मदेरणा, नवल किशोर शर्मा,शीशराम ओला, रामनिवास मिर्धा व रामसिंह विश्नोई जैसे कद्दावर नेताओं को गहलोत ने राजनीतिक रूप से कमजोर करने का काम तीन दशक पहले ही शुरू कर दिया था। गहलोत ने पार्टी आलाकमान के यहां से दिग्गज नेताओं का पत्ता कटवाना शुरू किया। सबसे पहले स्व.हरिदेव जोशी को प्रदेश की राजनीति से दूर कर असम का राज्यपाल बनवाया। उसके बाद दिग्गज जाट नेता परसराम मदेरणा को कमजोर किया।
साल,1998 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष परसराम मदेरणा की अगुवाई में विधानसभा चुनाव हुए तो यह माना जा रहा था कि वे ही सीएम बनेंगे। लेकिन जब बारी आई सीएम बनाने की तो पार्टी आलाकमान ने गहलोत को चुना । इसी तरह नवल किशोर शर्मा को कमजोर किया। 1998 में विधानसभा चुनाव लड़कर जीते शर्मा भी सीएम बनने का सपना देख रहे थे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव,पूर्व केंद्रीय मंत्री व गुजरात के राज्यपाल रहे शर्मा बेहद चतुर राजनीतिज्ञ माने जाते थे,लेकिन वे भी गहलोत से मात खा गए। दिग्गज जाट नेता शीशराम ओला व रामनिवास मिर्धा को प्रदेश की राजनीति में गहलोत ने कभी सक्रिय नहीं होने दिया। कर्नल सोनाराम जैसे गहलोत विरोधियों को पार्टी छोड़कर भाजपा में जाना पड़ा। 2008 में राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी थे। जोशी की अगुवाई में चुनाव लड़ने से माना जा रहा था कि पार्टी अगर चुनाव जीती तो वे ही होंगे लेकिन जोशी एक वोट से चुनाव हार गए।
कभी नापसंद थे, अब पसंद बन गए
2013 में गहलोत के सीएम रहते कांग्रेस को 200 में से मात्र 21 सीटें मिली। इससे गहलोत राहुल गांधी की नापसंद बन गए। 2014 में प्रदेश कांग्रेस की कमान सचिन पायलट को सौंपी गई। पायलट राहुल गांधी की पसंद थे। पायलट ने युवाओं को कांग्रेस से जोड़ा। इससे गहलोत की टीम किनारे होने लगी। लेकिन गुजरात के प्रभारी बनने के बाद गहलोत ने अपने संगठन कौशल के चलते वहां कांग्रेस को सक्रिय किया। इससे वे राहुल गांधी की पसंद हो गए।