Rajasthan Political Crisis: गहलोत सरकार को शर्तों के आधार पर ही समर्थन देगी बीटीपी
Rajasthan Political Crisis डूंगरपुर जिले की चौरासी से बीटीपी विधायक राजकुमार रोत का कहना है कि उनकी पार्टी कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस ले चुकी है। वह नहीं चाहते कि राज्य में फिर सियासी संकट आए लेकिन गहलोत सरकार को समर्थन देने से पहले वह चिंतन अवश्य करेंगे।
उदयपुर, संवाद सूत्र। राजस्थान के सियासी संकट के बीच भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के विधायक भी नजर रखे हुए हैं। इस बार बीटीपी शर्तों पर ही अपना समर्थन देगी। बीटीपी विधायकों का कहना है कि पहले गहलोत सरकार ने उनके साथ वादाखिलाफी की थी। डूंगरपुर जिले की चौरासी से बीटीपी विधायक राजकुमार रोत का कहना है कि उनकी पार्टी कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस ले चुकी है। वह नहीं चाहते कि राज्य में फिर सियासी संकट आए, लेकिन गहलोत सरकार को समर्थन देने से पहले वह चिंतन अवश्य करेंगे। बीटीपी इस बार अपनी शर्तों के आधार पर ही गहलोत सरकार को समर्थन करेगी। उनका कहना है कि राज्य में फिर पहले की तरह सियासी संकट जैसे हालात हैं और उनकी पार्टी इस पर नजर जमाए हुए है। उनके दोनों विधायक पार्टी के फैसले का निर्णय करेंगे।
उन्होंने कहा कि निर्दलीय विधायकों से भी संपर्क बनाए हुए हैं। निर्दलीय तथा बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के विधायक के निर्णय पर भी उनकी नजरें हैं। विधायक रोत ने कहा कि भारतीय ट्राइबल पार्टी यूं तो गहलोत सरकार से नाराज हैं। पहले गहलोत ने उनके क्षेत्र में विकास का वादा किया था, लेकिन अभी तक उनके विधानसभा क्षेत्र में विकास नहीं हो पाया। इसलिए इस बार समर्थन से पहले यह तय करेंगे कि यदि गहलोत सरकार उनकी शर्तों को पूरा करने में सफल रहने का विश्वास दिलाती है तो ही वह उनके समर्थन कर सकेंगे। हालांकि उन्होंने कहा कि पिछली बार जब राजस्थान में जो घटनाक्रम हुआ और कांग्रेस सरकार संकट में आई, तब बीटीपी और बीएसपी के विधायकों ने साथ देकर सरकार बचाने का काम किया था। किन्तु इसके बावजूद कांग्रेस सरकार ने हमारे साथ भी दगाबाजी की।
कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने पंचायती राज चुनाव में भाजपा का समर्थन किया और जिला परिषद में सर्वाधिक सदस्यों के बावजूद भाजपा को समर्थन देकर उनका जिला प्रमुख बनवा दिया। यह बात भूल नहीं पाए हैं। अगर इस बार भी ऐसा होता है वह सोच-समझकर ही कदम उठाएंगे। विधायक रोत ने कहा कि वह डूंगरपुर में अपनी जड़ें जमा चुके हैं। चार विधानसभाओं में दो उनके कब्जे में हैं और एक विधानसभा में उनका प्रत्याशी कम अंतर से हारा था और जबकि एक अन्य विधानसभा में वह सीधे मुकाबले में थे। इस बार पूरे उदयपुर संभाग में वह अपनी पार्टीं की जड़ें मजबूत करने में लगे हैं। संभाग के हर जिले में संगठन की मजबूती में लगे हैं।