Rajasthan: सीमा पर रेगिस्तान में पांव के निशान से घुसपैठियों को पहचान लेते हैं "खोजी"
सीमा पर रेगिस्तान में पांव के निशान से घुसपैठियों को पहचान लेते हैं खोजी बीएसएफ के जवानों के साथ ही कुछ स्थानीय लोग भी करते हैं खोजी का काम
जयपुर, जागरण संवाददाता। रेगिस्तान में पांव के निशान की जांच करते हुए लोगों का पता लगाने में महारत हासिल रखने वाले "खोजी" राजस्थान के मरूस्थल से गायब होते जा रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल ( बीएसएफ ) के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर बाड़ लगाई जाने और बेहद सख्त सुरक्षा के कारण पिछले कुछ समय से ये "खोजी " गायब हो रहे हैं।
दरअसल,ये "खोजी" इंसान ही होते हैं जो मरूस्थल पर पड़े पांवों के निशान से लोगों के बारे में पता लगाने के लिए प्रशिक्षित होते हैं। इन खोजियों में किसी भी व्यक्ति के पांव, चलने व बात करने की ढंग से उसकी पहचान करने की क्षमता होती है। बीएसएफ के अधिकारियों का कहना है कि यह काफी थका देने वाला काम है। इसके लिए उच्च स्तर की बुद्धिमता, व्यक्ति के वजन का हिसाब लगाने की क्षमता, मरूस्थल पर छूटे पांव के अलग-अलग निशानों के माध्यम से उनकी पहचान करने की काबिलियत की जरूरत होती है।
अधिकारियों का कहना है कि कुछ सालों पहले तक बीएसएफ की सीमा चौकियों के पास बड़ी संख्या में "खोजी" होते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे इनकी संख्या कम होती जा रही है। पाकिस्तान से सटी राजस्थान की 1070 किलोमीटर की सीमा पर अब मात्र 25 "खोजी" ही बचे हैं। ये खोजी प्रतिदिन सुबह 5 बजे पैदल गश्त करते हैं। इस गश्त के दौरान रेत में पैरों के निशान से यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि रात के अंधेरे में अवैध रूप से कोई घुसैपठिया आया था या नहीं।
यदि किसी निशान से इन्हे शक होता है तो फिर उसका पीछा करते हुए आगे बढ़ते हैं। प्रत्येक खोजी ढ़ाई घंटे में पैरों के निशान पर निगरानी रखते हुए 10 किलोमीटर की दूरी तय करता है। बीएसएफ के एक अधिकारी ने बताया कि पैरों के निशान की गहराई और जमीन पर किस तरह से पैर रखता है, यह हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है।
इस अधिकारी ने बताया कि बीएसएफ भर्ती खोजियों के अलावा कुछ स्थानीय लोगों को भी नौकरी देती है जो कई पीढ़ियों से "खोजी" के रूप में काम करते हैं। बुजुर्ग लोग अपना कौशल बच्चों को देते हैं, हालांकि अब इनकी संख्या कम होती जा रही है।