Mayor: राजस्थान में पार्षद बने बिना मेयर बनने का प्रावधान कायम, सरकार ने जारी नहीं की संशोधित अधिसूचना
Rajasthan Government. राजस्थान सरकार ने निकाय अध्यक्ष के चुनाव को प्रावधान किया कि यदि कोई महापौर या निकाय अध्यक्ष बनना चाहता है तो उसके लिए पार्षद होना जरूरी नहीं है।
मनीष गोधा, जयपुर। राजस्थान में बिना पार्षद बने महापौर या निकाय अध्यक्ष बनने के नियम पर सत्तारूढ़ कांग्रेस और प्रतिपक्षी भाजपा में राजनीति तो खूब हुई, लेकिन यह नियम आज भी कायम है। सरकार ने नियम पर सवाल उठने के बाद स्पष्टीकरण का एक प्रेसनोट तो जारी कर दिया, लेकिन संशोधित अधिसूचना जारी नहीं की और पुरानी अधिसूचना के आधार पर ही निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई। मंगलवार को नामांकन दाखिल करने का काम भी पूरा हो गया।
राजस्थान में मौजूदा सरकार ने निकाय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर यह प्रावधान किया था कि यदि कोई महापौर या निकाय अध्यक्ष बनना चाहता है तो उसके लिए पार्षद होना जरूरी नहीं है। पार्षद या अन्य कोई भी व्यक्ति जो महापोर बनने की योग्यता रखता है, वह महापौर या निकाय अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकता है। इस नियम को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस में ही जमकर घमासान मचा था और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से लेकर सरकार तीन-चार मंत्री सार्वजनिक तौर पर इस प्रावधान के खिलाफ हो गए थे। भाजपा ने भी इसका काफी विरोध किया और इसके खिलाफ आंदोलन की घोषणा की।
सभी तरफ से सवाल उठे तो सरकार की ओर से स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने एक प्रेसनोट के जरिये स्पष्टीकरण जारी किया, जिसमें कहा गया था कि आगामी चुनाव में पार्षदों में से ही निकाय प्रमुख चुने जाएंगे। इस प्रावधान का इस्तेमाल उसी परिस्थिति में किया जाएगा जब निकाय अध्यक्ष की सीट एससी, एसटी व ओबीसी व महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो और इस वर्ग का पार्टी का कोई उम्मीदवार चुन कर न आ पाए। ऐसी स्थिति में इस प्रावधान के तहत राजनीतिक दल अपने अन्य किसी कार्यकर्ता को निकाय प्रमुख का उम्मीदवार बना सकेंगे।
सरकार के स्पष्टीकरण जारी करने के बाद कांग्रेस में भी सब शांत हो गए और प्रतिपक्षी भाजपा भी शांत बैठ गई। इसका कारण यह है कि जो गली छोड़ी गई है, इसका फायदा दोनों ही राजनीतिक दल उठाएंगे। इस बीच पुरानी अधिसूचना से ही निकाय चुनाव की प्रक्ति्रया शुरू भी हो गई और मंगलवार को नामांकन दाखिल करने का काम पूरा हो गया।
बनी हुई है दुरुपयोग की आशंका
स्वायत्तशासन विभाग के सूत्रों का कहना है कि सरकार ने चाहे स्पष्टीकरण जारी कर दिया, लेकिन अधिसूचना में बदलाव नहीं किया। ऐसे में कोई बिना पार्षद बने निकाय अध्यक्ष का चुनाव लड़ना चाहे तो उसे रोका नहीं जा सकता। ऐसे में निकाय अध्यक्ष के चुनाव में धनबल के इस्तेमाल की आशंका पूरी तरह बनी हुई है। छोटी नगरपालिकाओं में इसका दुरुपयोग होने की आशंका सबसे ज्यादा है।
नामांकन दाखिल करने का काम पूरा
निकाय चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का काम पूरा हो गया। मंगलवार को सभी 49 नगरीय निकायों में सभी राजनीतिक दलों और निर्दलीय प्रत्याशियो ने नामांकन दाखिल किए। कुल 2105 सीटों के लिए सोमवार तक साढे़ तीन हजार से ज्यादा नामांकन आ चुके थे। मंगलवार को आखिरी दिन होने के कारण बड़ी संख्या में नामांकन दाखिल हुए। इसकी सूचना अपडेट करने का काम देर रात तक जारी था। अब बुधवार को नामांकन पत्रों की जांच होगी और आठ नवंबर तक नाम वापसी का मौका मिलेगा। मतदान 16 नवंबर को होगा।