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Lockdown: कभी हाथी पालते थे मालिकों को, अब मालिक पाल रहे हाथी

Corona crisis. एक हाथी पर रोजाना तीन से साढ़े तीन हजार का खर्च आता है और लेकिन हाथी नहीं चलने के मुआवजे के रूप में इन्हें सिर्फ 600 रुपये मिल रहे हैं।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Thu, 16 Apr 2020 03:46 PM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2020 07:18 PM (IST)
Lockdown: कभी हाथी पालते थे मालिकों को, अब मालिक पाल रहे हाथी
Lockdown: कभी हाथी पालते थे मालिकों को, अब मालिक पाल रहे हाथी

मनीष गोधा, जयपुर। लाॅकडाउन के इस दौर में जब इंसान के लिए खुद को पालना मुश्किल हो रहा है। जयपुर के हाथी मालिक हाथी पाल रहे हैं। एक हाथी पर रोजाना तीन से साढ़े तीन हजार का खर्च आता है और लेकिन हाथी नहीं चलने के मुआवजे के रूप में इन्हें सिर्फ 600 रुपये मिल रहे हैं। यह पैसा भी इनका खुद का इकट्ठा किया हुआ है।

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जयपुर के आमेर महल में हाथी की सवारी पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां आने वाले देशी विदेशी पर्यटकों के लिए हाथी सवारी बहुत बड़ा आकर्षण है। इसी के चलते सरकार ने यहां हाथी गांव विकसित किया है। इस हाथी गांव में 103 हाथी हैं और ये 103 हाथी अपने मालिकों और महावतों के करीब 800 परिवारों का पालन पोषण करते हैं। कोरोना के छोटे से वायरस ने इस भीमकाय जीव के पैर भी रोक दिए हैं ओैर अब यह जीव अपने मालिकों पर निर्भर हो गया है। लाॅकडाउन के चलते सब कुछ बंद है और हाथी अपने ठाणों में आराम कर रहे हैं, लेकिन आराम के बावजूद उन्हें खाने को तो चाहिए। लाॅकडाउन में सब कुछ महंगा हो गया है। हाथियों का प्रिय भोजन गन्ना जो पहले 400 रुपये क्विंटल आ रहा था। अब 700 से 750 रुपये क्विंटल हो गया है। सूखा ज्वार को 400 रुपये मण मिल रहा था, जब 600 रुपये मण हो गया है, लेकिन फिर भी यहां के हाथी मालिक इन्हें पाल रहे हैं।

हाथी गांव कल्याण समिति के अध्यक्ष बल्लू खां कहते हैं कि इन हाथियों ने हमें बरसों तक पाला है। अब संकट में इन्हें कैसे छोड़ दें। इन्हें तो चारा देना ही है। बल्लू खां कहते हैं कि लाॅकडाउन का संकट तो अब आया है, कोरोना के संक्रमण ने तो इस बार हमें जनवरी से ही परेशान कर दिया था। पिछले साल जनवरी फरवरी में हाथियों की दस हजार राइड हुई थी, इस बार चार हजार भी नहीं हुई। अब लाॅकडाउन आ गया और मौजूदा हालात में अगले छह महीने तक पर्यटन की स्थिति सुधरने के आसार नहीं दिख रहे है।

उन्होंने बताया कि हाथियों की देखभाल के लिए ही वर्ष 2005 में हाथी कल्याण कोष बनाया था। पहले हम इसमें हर राइड के शुल्क में से बीस रुपये कोष में जमा कराते थे। इन दिनों 70 रुपये प्रति राइड लिया जा रहा था। यह कोष वन विभाग के पास है। हमने मिल कर यह तय किया था कि जो हाथी रिटायर हो जाएंगे, उनके लिए इस कोष से 300 रुपये प्रतिदिन दिया जाएगा। लाॅकडाउन को देखते हुए वन विभाग ने अब सभी हाथियों के लिए 600 रुपये प्रतिदिन का खर्च बांध दिया, लेकिन यह बहुत कम है, क्योंकि हाथी पर प्रतिदिन तीन से साढ़े तीन हजार रुपये का खर्च आता है। हालांकि वन विभाग ने आश्वासन दिया हुआ है कि लाॅकडाउन ज्यादा लंबा चला तो राशि और बढ़ा देंगे, लेकिन खर्च तो फिर भी पूरा नहीं पडेगा, क्योंकि चारे और गन्ने के दाम भी बढ़ गए हैं।

उन्होंने कहा कि वन विभाग के अधिकारी पूरी सहायता कर रहे हैं। महावतों को राशन दिया गया है। हमारे लिए भी राशन की व्यवस्था की गई है, लेकिन आगे संकट ज्यादा गहरा दिख रहा है, इसलिए सरकार को कुछ सोचना चाहिए।

वहीं, जिला वन अधिकारी सुदर्शन शर्मा का कहना है कि लाॅकडाउन को देखते हुए हमने राशि बढाई है, लेकिन यह सिर्फ मुआवजा है, हाथियों को पालना तो हाथी मालिकों को ही है। फिर भी संकट बढ़ा तो और सहायता करेंगे। महावतों के लिए विभाग ने राशन की व्यवस्था की है और हर संभव सहायता की जा रही है। उम्मीद है कि 20 अप्रैल के बाद चारा भी सस्ता हो जाएगा। 

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